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चूहों की कमर से लटकते हैं तमंचे
कवि-गोष्ठी की रिपोर्ट हेमन्त दास 'हिम' द्वारा
पटना जं. रेलवे स्टेशन के समीप महाराजा कोंम्प्लेक्स के द्वितीय मंजिल स्थित टेक्नो हेराल्ड में 'जनशब्द' द्वारा 7.9.2017 को एक काव्य संध्या का आयोजन किया गया जिसके पहले सत्र में वहाँ पधारे दर्जनों कवियों ने तो अपनी-अपनी कवितायें पढ़ीं और दूसरे सत्र में दिल्ली से आये प्रख्यात कवि उद्भ्रान्त ने अपना एकला कविता-पाठ भी किया जिसमें उनहोंने एक-से- बढ़कर एक प्रभावकारी समकालीन कवितायेँ सुनाकर सबको स्तब्ध कर दिया.
आरम्भ में सभी कवियों ने अपना परिचय दिया. फिर एम.के. मधु को आमंत्रित किया गया. उनकी कविता एक सुंदरी पर थी जो चाय की दूकान चलाती है. जिस तरह फानूस के बीच भी शोला उरियाँ (प्रकट) ही रहता है उसी तरह रानी रूपमती चाय का दुकान चलाने के बावजूद भी कवि एम. के.मधु को सचमुच की अति-सुंदर राजमहिषी की तरह उद्वेलित कर पा रही है-
"रूपमती कोई बहुत रूपवान भी नहीं / पर जवान है और थोड़ी गदराई भी
उसके हाथों में जुम्बिश है / जो उछाल दे-देकर / स्पेशल चाय को अंजाम देती है"
वासवी झा ने आज के विकट युग में इच्छाओं की माँ की हालत बाँझ से भी बदतर बताया और कहा-
"इच्छाएँ जन्म लेतीं हैं / हौले-हौले कदम रखतीं हैं / छोटे-छोटे चूजों की तरह
बदतर होतीं हैं / इच्छाओं की माँ की हालत / चूजों की माँ से
वो बेहतर मानती है अपने बाँझपन को"
नरेन्द्र कुमार ने आज के परिदृश्य को रोम के अभिताज वर्गों में तलबारबाजी के कथानक में पिरोया-
"एक झटके में होता सीना चाक / ग्लैडिएटरों का
टप टप गिरता खून / रेत में जा सूखता / लगते थे ठहाके"
असमानता और हिंसा से त्रस्त इस युग में राकेश प्रियदर्शी ने बुद्ध को फिर आने का आह्वाहन किया-
"तुम्हारे आने से फिर लिखा जाएगा / एक नया इतिहास और बनेगी
दया-करुणा की एक नई संस्कृति / जहाँ खून से रंगे
असमानता का कहर बरपाती / दीवार नहीं होगी"
डॉ.बी.एन.विश्वकर्मा ने नेताओं पर अपनी सपाट शैली में निशाना साधा-
"लीडर मेरे देश के बनते बड़े महान / दोनो टाँगें कब्र में पर कुर्सी पर है ध्यान"
दूरदर्शन बिहार के केंद्र निदेशक पुरुषोत्तम.एन.सिंह ने अपनी कविता 'मुम्बई ब्लास्ट: बम का इकबालिया बयान' पढ़कर सबके रौंगटे खड़े कर दिये-
"कि उसकी आँखों में था / चील का चौकन्नापन
और उसके कदमों में शिकारी का सधा अंदाज"
छल-प्रपंच से परिपूर्ण युग में अभी भी कुछ है जो अब भी अपने सच्चे रूप में मौजूद है. हेमन्त दास 'हिम' की गज़ल की पंक्तियाँ थीं-
"एक बच्ची की हँसी पर मैं फिर से रो पड़ा / जिसकी विशुद्धता की कोई जाँच नहीं है
गर्म गज़ल के लिए धुआँ लिया, शराब भी पी / पर अनुभवों से बड़ी कोई आँच नहीं है"
अस्स्मुरारी नंदन मिश्र ने जीवन दर्शन के मूल को किताबी ज्ञानों से दूर प्रकृति की ओर मोड़ते हुए कहा-
"मैंने उगायी दूब, बचाया अन्न / रखा पानी साफ......
मैं जानता हूँ / खत्म होने के बाद भी रह जाऊंगा
इन्हीं मिट्टी, हवा, आकाश में"
प्रत्यूष चंद्र मिश्र ने मशीनीकरण से छीज रहे सहज मानवीय जीवन की चटक को बखूबी प्रतिध्वनित किया-
"बस एक कसक है - माँ के गीतों की... / ताजा चावल के महक की
और सबसे बढ कर भूसी को उड़ाने की / तब सृजन की प्रक्रिया में साहचर्य था
जब ढेंकी थी तो ये सारी चीजें थी"
राजकिशोर राजन ने लफ्फाजी के इस दौर में वास्तविक धरातल पर व्याप्त जड़ता पर मजबूत प्रहार किय-
"एक अघोषित समझदारी / विकसित हो गयी है
हम बोलते रहेंगे,लिखते रहेंगे परिवर्तन के पक्ष में
पर खूंटा हमारा जस का तस रहेगा"
वरिष्ठ कवि शहंशाह आलम ने सहज जीवन के आत्मिक आनन्द का चित्र प्रस्तुत किया-
"बारिश में नहाते हुए / तोते के पंख से भी हलका
महसूस करती है / वह अपनी आत्मा को"
वरिष्ठ कवि मुकेश प्रत्यूष ने हाशिये पर रह रहे लोगों की शक्ति को याद दिलाते हुए पढ़ा-
"पर भूल जाते हैं कभी कभी छोड़ने वाले हाशिया / हाशिये पर ही दिये जाते हैं अंक
निर्धारित करता है परिणाम हाशिया ही / हाशिया है तो हुआ जा सकता है सुरक्षित"
आये हुए कविजनों के कविता-पाठ के बाद चाय का दस मिनट का अवकाश हुआ फिर मुख्य कार्यक्रम शुरू हुआ जो था दिल्ली से आये प्रख्यात कवि उद्भ्रांत का एकल काव्य पाठ. उन्होंने अपने भावपूर्ण अंदाज में अनेक कवितायेँ सुनाई जिनमें 'चूहे' और 'तलाक-तलाक' भी शामिल थे. आगंतुकगण कवि के अपने दमदार तेवर में दर्शकों से आँख में आँख मिलाते हुए पढ़ी गई कविताओं का पूरी तन्मयता के साथ रसास्वादन किया. जब छंदमुक्त कविता का पाठ जब उद्भ्रांत जैसा पगा हुआ रचनाकार जब स्वयं करता है तो पता चलता है कि मुक्तछंद चीज क्या है और क्यों कविता को अपने सन्देश-सम्प्रेषण की उन्मुक्तता के लिए छंदों से मुक्ति आवश्यक है? हम यहाँ ग़ज़लों या गीतों को नीचा नहीं दिखा रहे बल्कि यह कहना चाह रहे हैं कि यदि ठीक ढंग से पाठ हो तो मुक्तछन्द कविता में बला की धार आ जाती है और वह जिस तरह से व्यापक परिप्रेक्ष्य को अपने पूर्ण विस्तार के साथ बेरोकटोक रख पाती है वह छंद का पालन करते हुए बहुत कठिन हो जाता है.
यहाँ हम उद्भ्रांत द्वारा सुनाई गई एक प्रासंगिक कविता 'तलाक-तलाक की कुछ पंक्तियाँ दे रहे हैं और रिपोर्ट के अंत में एक अन्य सुनाई गई कविता 'चूहे' को पूरा प्रतुत कर रहे हैं-
"बड़े परपीड़क क्रूर आनंद से भरा मैं / हैरत भी हुई मन ही मन देख चमत्कार उस शब्द का
जिसका ठीक ठीक अर्थ भी न जानता था मैं / पर जिसने असर किया किसी मारण मंत्र सा"
".... 'खुला' एक बम है जो / उड़ा देगा पर्चाक्खे तुम्हारे मंसूबों के /
इसलिए आइन्दा तीन तलाक के ख्यालात भी / न लाना अपने जेहन में"
'उद्भ्रान्त' की कविताओं के पाठ के बाद वासवी झा ने नारी विषयक 'तलाक तलाक' और अन्य कविताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की और अपना मंतव्य दिया. राजकिशोर राजन और शहंशाह आलम ने भी उनकी कवितओं पर अपने विचार रखे. राजकिशोर राजन ने कहा कि 'उद्भ्रान्त' यूँ तो सभी पूर्ववर्ती महाकवियों यथा दिनकर, बच्चन, महादेवी आदि के सानिध्य में रहे किन्तु उनकी कविताओं में दूर-दूर तक उनका कोई प्रभाव नहीं दिखता है. वे रचना-प्रक्रिया के आरम्भ से लेकार आज तक अत्यंत समाकालीन रहे हैं. दूरदर्शन बिहार के केंद्र निदेशक पुरुषोत्तम एन. सिंंह ने कहा कि 'उद्भ्रान्त' के साथ उन्होंने 1991 के काल में काम करते हुए उन्हें बहुत रचनाशील पाया और जैसे ही वे सेवानिवृत हुए मानो उनकी रचनाशीलता को कोई पर लग गया. अगर उनकी सारी किताबों का सिर्फ नाम लिया जाये तो उसमें सात-आठ मिनट लग जाएंगे. इतनी बड़ी संख्या में उत्कृष्ट रचनाएँ करते चले जाना अद्भुत है.
वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज ने अंत में अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दिया और सभी कवियों द्वारा सुनाई गई कविताओं और विशेष रूप से 'उद्भ्रान्त' की कविताओं पर अपना संक्षिप्त वक्तव्य दिया. उनकी कविता कुछ यूँ थी-
"लहरियों को हिफाजत से संभालती हुई / इन गीतहारिनों के मन में /
अतीत के कबाड़ नहीं हैं / इन अवसाद भरे दिनों में भी / समय से बाहर जाकर
औरतें गीत गा रहीं हैं / आतताइयों के प्राण को कंपकपाती हुई"
अंत में वासवी झा ने धन्यवाद ज्ञापन किया. फिर कार्यक्रम की समाप्ति कि घोषणा कर दी गई.
............
उद्भ्रांत द्वारा सुनाई गई एक सम्पूर्ण कविता नीचे पढ़िए-
चूहे-2
इस उत्तरआधुनिक समय के
सीमेन्ट ने जब
अनेक दुर्लभ जीव-जन्तुओं,
पशु-पक्षियों
की क़ब्रगाहें बनाते और
उनकी संख्या में बेशुमार
कमी लाते हुऐ
उन्हें डायनासोर की
श्रेणी में
इतिहास की किताबों का
हिस्सा बनाने-हेतु
बढ़ा दिए क़दम तब अपनी
दिव्यशक्ति का भरपूर
प्रदर्शन करते हुऐ
चूहे निरन्तर कर रहे हैं
अपनी संख्या में गुणातीत
वृद्धि
सूखे और बाढ़ से सर्वथा
अप्रभावित
टनों चूहेमार गोलियों और
पाउडर
को हज़म करते हुऐ अपने हर
सम्भव
क़त्लेआम से निर्लिप्त
बढ़ाते जा रहे हैं अपना
संख्याबल
होड़ लेते हुऐ चीन से
अब उन्हें भय नहीं
सबसे शक्तिशाली अमेरिका
की
परमाणु नीति से
या फिलिस्तीनी ग़ुरिल्लों
से
या कश्मीर के पृथकतावादी
गुटों से
मणिपुरी, बोडो या तमिल उग्रवादियों से
उनके पेटों का आॅपरेशन
करने पर
निकलेंगी उनमें से
उत्कृष्ट कलाकृतियाँ,
प्राचीन पाण्डुलिपियाँ
अमूल्य ग्रन्थ
महारानी की बेशक़ीमती
साड़ियाँ
नवाबों की पोशाकें
गेहूँ और चावल के गोदाम
ह्विस्की के क्रेट भी
चूहों की कमर से
लटकते हैं तमंचे
और आम चुनाव में
कोई न कोई राष्ट्रीय दल
उन्हें
टिकट अपना दे ही देगा!
चूहों ने बनाया है
अपना एक संघ
और पृथक पार्टी
और गम्भीरता से वैचारिक
मन्त्रणा के
दौर से गुज़र रहे हैं
कि कैसे हथियाई जाए सत्ता
और कैसे
साम्राज्य अपना बढ़ाया जाऐ
?
ग़ुरिल्ला हमला होने पर
वे भाग लेते
हिरनों की तरह चैकड़ी भरते
हुऐ
पर उनकी अलहदा प्रकृति
दिखती उसी समय
जब उन्हें घेर लिया जाता
चारों ओर से
भागने का कोई मार्ग
नहीं उन्हें मिलता जब
तब वे सचमुच हिंसक
आक्रामक हो उठते
क्योंकि उन्हें पता है यह
वेद-वाक्य:
‘हमला ही सर्वाधिक
कारगर सुरक्षा!’
‘मरता क्या न करता’
कहावत को करते चरितार्थ
वे धीरे-धीरे
नामालूम ढँग से
बदल रहे हैं
एक नयी नस्ल में
अवतरित होने
आदमी का परीक्षण करते
परखनली के भीतर
और प्रकाश की गति से
दौड़ते
अनन्त ब्रह्माण्ड में
खोजने के लिए
अभी तक विलुप्त
किसी नए ग्रह को
इक्कीसवीं सदी के
नए कोलम्बस के रूप में
नई सभ्यता के उद्धारक
बनकर!
.....................
कवि उद्भ्रांत का ईमेल - udbhrant@gmail.com
कवि उद्भ्रांत का दूरभाष - 010-2481530, 09818854678
इस रिपोर्ट के लेखक -
हेमन्त दास 'हिम'
रिपोर्ट लेखक का ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
.......
नोट: कवि श्री उद्भ्रांत शर्मा से दूरभाष पर बात हुई. उन्होंने पटना में आयोजित उनके एकल काव्य पाठ में आनेवाले सभी कवियों को साधुवाद कहा है और कहा कि पटना के कवियों से उन्हें बहुत कुछ जानने-समझने का मौका मिला..उस कार्यक्रम में पधारे सभी साहित्यकारों का मैं उनकी ओर से हार्दिक धन्यवाद देता हूँ.
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