ईहो दुलहवा ते
He has a six-feet height
Wife is just four feet, right?
Always boasts to regale
Is a very naughty male
To women and sisters-in-law
Is big teaser, this fellow
Temper, he always loses
And speaks only abuses
Everybody laughs at him
Gird up his loins on whome
Look, this unique bridegroom!
ईहो दुलहवा ते
He binds up his turban
And knocks with dung, then
Is a chap humouristic
But sometimes he is strict
Uses other's heads but
To break up cocoonut
His size of belly raises
Whoever see do praises
But also disparages
He offers you golgappa
And flies with his plume
Look, this unique bridegroom!
ईहो दुल्हवा ते
Children, he never beats
Offers them lemon sweets
To women like sisters-in-law
Chocolates to make them thaw
The lads of this village
Are envious and says
What to say you buddy
His everyday is on boom
Look, this unique bridegroom!
..........
Original Poem in Angika by - Rajkumar Bharti
Poetic English translation by - Hemant Das 'Him'
अंगिका कविताएँ / कवि- राजकुमार भारती
Angika poems by Rajkumar Bharti
देबाल सेय ऊखाड़ी लाएन के अमारी
भासा औ कुसा संगे घासफूस बटोरी
घर से चोराय के किरासन और गोईठा
घूरा तर बैठल सब खोईल के मुरेठा
जाड़ा के दिन में आगिन जराय के
बड़का बुतरूआ सब पालथी लगाय के
मस्ती करै सभ्भै साथेय मे मिइलके
प्रेम से विभोर लागै सबसेय मिलजुइल के
मिलजुल के फाँकै सभ्भे नबका चूड़ा
मजा जे दै छै बहुते ई घूरा
घूरा-2
चुगली चपाटी भी खुभ्भे चलै छै
बुतरू अ छौरा सब मजा उड़बै छै
बुढबा अरिहिन के जादे चिढबै छै
बाते के ऊपर जे बात मिलबै छै
चोरी के अलुआ त घूरा मे पकै छै
सोंधा-सोंधा खाय मे मजा लगै छै
करै छै मजाके मे सब कुश्ती नूरा
मजा जे दै छै बहुते ई घूरा
घूरा-3
दोसरा खेत के भुट्टा यँहैं पकै छै
चोरी चुपके खाय मे बढिया लगै छै
खेत बाला के संगे हुऐ छै झगड़ा
बूँट गेहूँ के यहाँ ओढ़ा चलै छै
नीम्मक मिरचाय संग चटखारा लगै छै
उड़ै छै चकल्लस कुढाबै छै पूरा
मजा जे दै छै बहुते ई घूरा
आगिन तर बैठ के छुटै छै तुर्रा
कैसन कैसन वहाॅ चलै छै गुलछर्रा
कभीयो कभीयो बुढबा मारै छै हुर्रा
हँसी मजाक अर भी हुऐ छै पूरा
अल्हा और ऊदल संग राजा सहलेश के
चौहरमल के संगे रेशमा के बेश के
नाटक के गप शप छूटै नै अधूरा
मजा जे दै छै बहुते ई घूरा
गेलै जमाना ऊ याद जे सताबै छै
खेल ऊ दोलपता, कबड्डी के आबै छै
नाटक नौटंकी पर दिल अभियो उमकै छै
तखनी के याद से मन अभियो झमकै छै
करेजा मे उठै छेलै हुक पूरा
देखी के सबकय मनचलिया के जूड़ा
कोंची-कोंची कि कि कहिहौन कहानी
याद ऊ समय के लानै छै मुँह मे पानी
कहियो नै होते कहानी ई पूरा
सपना में अभीयो बनै छी जमूरा
मजा जे दै छै बहुते ई घूरा।
.......
Original Poem in Angika by - Rajkumar Bharti
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