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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday, 3 September 2017

लेख्य मंजुषा का काव्योत्सव पटना में 2.9.2017 को सम्पन्न / समीर परिमल की 'दिल्ली चीखती है' की अपार सफलता पर

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शिकायत मैं जो करता हूँ बगावत वो समझता है
('दिल्ली चीखती है' की धमाकेदार सफलता के मौके पर स्थापित और नये कवियों का अनोखा समागम)

      कविता लिखना कोई एकांगी प्रक्रिया नहीं है.  कविता को निखारने के लिए सामान्य जन और प्रवीण कवियों से अंत;क्रिया आवश्यक होती है. इस दृष्टि से लेख्य मंजुषा का युवा और वरीय कवियों के दो समूहों को एक साथ एक मंच पर उतारने की परम्परा निश्चित रूप से बिहार की सांस्कृतिक क्रांति को इंधन देने का काम कर रही है.

     पटना के इंस्टीच्यूट ऑफ इंजीनियर्स के सभागार में 2.09.2017 को एक कवि-गोष्ठी का आयोजन हुआ. यह राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात युवा शायर समीर परिमल के पहले गजल संग्रह 'दिल्ली चीखती है' के पुस्तक की बाजार में अभूतपूर्व सफलता और अपने अलग अंदाजे-बयाँ के लिए जाने जानेवाले ऊर्जावान युवा कवि डॉ. रामनाथ शोधार्थी  के जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित किया गया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता पटना सीटी के लोकप्रिय शायर कवि घनश्याम ने और संचालन गणेश जी बागी ने किया. इस अवसर पर पटना और आस-पास के अनेक चर्चित और युवा शायर एवं गीतकार उपस्थित थे.

कवयित्री वसुन्धरा पाण्डेय ने अपने पहले-पहले अहसास का कुछ इस तरह बयान किया-
"पहली बार जाना / लहरों में सितारों का चमचमाना
फैलते ही जाना बादलों का / टप टपकना शबनम का
घास की नोक पर अटक जाना"

अस्मुरारी नंदन मिश्र ने अपने सुंदर और स्तरीय गीतों की सरिता में सबको सराबोर कर दिया. उसका अंश है-
"पल्लव, पुष्प पराग, ये परिमल / नहीं किसी की राह तकेंगे
मादक सुरभित पवन के झोंके / किसी लहर पर नहीं रुकेंगे
लहरें हैं उल्लास नदी का / लहराने की बात करो"

दिव्याश्री प्रभा की पंक्तियाँ थीं-
"स्त्रियाँ सृजन करती हैं / जीवन रोपती हैं
अपनी मृदुल मुस्कान से / न जाने क्या-क्या सँजोतीं हैं"

ज्योति मिश्रा ने सिमटती दुनिया के साथ रिश्तों की छूटती पकड़ को उकेरा- 
"सिमट गई अपनो की दुनिया / राखी लेकर न आये मुनिया
भेज लिफाफा रस्म निभाये / सावन आँखों से बह जाये"

कुमार पंकजेश ने अपनी नज्म में ईश्वर या खुदा को आने का आह्वान करते हुए कहा कि आज उसे आकर बताना होगा उसे अपना ठिकाना-
"जहाँ भी रहते हो तुम / अब तो आ जाओ क्योंकि
तेरे ठिकाने के सवाल पर   / उजड़ रहे हैं शहर-दर-शहर"

ज्योति स्पर्श ने अपनी मर्मस्पर्शी कविता पढ़ी-
"मुझे सजदे में सर कटने का डर है
मैं फिर भी सर झुकाना जानती हूँ
परिंदों की तरह जीने लगी हूँ
मैं अपना हर ठिकाना जानती हूँ"

हेमन्त दास 'हिम' ने दिल की तुलना खिड़की से करते हुए इस तरह उसकी नजाकत से रू-ब-रू कराया-
"खिड़की लकड़ी की जो एक भी रही होती  
कहता मारो पत्थर ये काँच नहीं है
दोस्तों आजकल जिसका नाम है न्याय 
 उससे बेहतर कोई नंगा नाच नहीं है"

सूरज ठाकुर 'बिहारी' ने पढ़ा-
"मेरी किस्मत कहीं जाकर खो गई यारों
जिसे मैंने अपना कहा / उसी ने सितम ढाया"

युवा कवयित्री नेहा नारायण सिंह ने अन्याय का अंत प्रतिशोध से करने के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया-
"ले लिया दुखते जिगर को उधार समझ
चुका दूँगा एक दिन चक्रवृद्धि व्याज दर से"

कुन्दन आनन्द ने छ्द्म आदर्शों की धज्जी उड़ा डाली इन शब्दों में-
"मुझसे बोले साइकिल है इको-फ्रेंडली / और खुद ही मोटरों से सड़क जाम किये हैं
आप ही कहते थे वो लोग बुरे हैं / फिर देखते ही क्यूँ उन्हें सलाम किये हैं"

डॉ. रामनाथ शोधार्थी जिनका जन्मदिन मनाया जा रहा था ने पढ़ा-
"लौटकर आओ न आओ, है तुम्हारी मर्जी 
 याद रखना मैं खुशामद नहीं करनेवाला
मेरे जैसा ही मेरा दिल है निहायत जिद्दी 
चंद धोखों से कहाँ सुधरनेवाला"

एक दूसरे शेर उनका बड़ा जबरदस्त था-
"बड़ा मैं जैसे-जैसे हो रहा हूँ / मेरे अंदर का भारत घट रहा है"

संजय कुमार ने शारीरिक और आत्मिक रूप के विरोधाभास को उजागर किया-
"खुश होते हैं आईने में वो रूप देख कर / टूट गया आईना आत्मा कुरूप देख कर"
उनकी दूसरी गजल रूमानी थी-
चाहा था उसे दिल से बहुत / पर वो सितमगर हमारा नहीं है
मुहब्बत तुझ से हैं बस तुझी से / तेरे सिवा अब कोई चारा नहीं है"

संचालक गणेश जी बागी ने भोजपुरी रस में सराबोर करते हुए पढ़ा-
"ठेस जब दिल पर न लागल / मन अकुलयल काहे
बात जब कुछो न रहल / आँख लोरायल काहे"

सागर आनंद ने अपनी गज़ल में संदेश दिया-
"बात वाजिब हो अगर / तो कहने की कोशिश कीजिए
रौशनी कम हो अगर / तो जलने की कोशिश कीजिए"

'दिल्ली चीखती है' से शायरी की दुनिया में तहलका मचा देनेवाले शायर समीर परिमल ने अपने विशिष्ट शैली में जानदार शेर पढ़े-
"एक हवेली रोती है दिल के अंदर / जब से तुमने आना जाना छोड़ दिया
सूखे हैं पलकों पर कितने सागर / आँखों ने मोती बरसाना छोड़ दिया"

उनकी एक दूसरी गजल के कुछ शेर इस तरह से थे-
"शरारत मैं जो करता हूँ / अदावत वो समझता है
शिकायत मैं जो करता हूँ / बगावत वो समझता है"

आराधना प्रसाद कड़े पहरे के बावजूद अपने प्रेम का संचार करने में सफल रहीं-
"हवाएँ छू के कह दो खैरियत तुम / लिफाफे पर यहाँ पहरा बहुत है
ये कैसा दिल से दिल का सीधा रस्ता / कि चुप रह के वो कहता बहुत है"

मंचासीन सरोज तिवारी ने सावन की झड़ी में बिरह की वेदना का चित्र खींचा-
"कैसे कहूँ सखि आज मन की बात रे
चमके बिजुरिया सखि / बरसे बदरिया
बिरहन लागे काली रात रे"

देश के विख्यात अज़ीम  शायर संजय कुमार कुंदन ने रहनुमाओं की पोल खोल डाली-
"ये और बात कि रस्ता दिखानेवाले थे 
ये और बात कि वही गुमरही में रहे
तुम्हारे पास पहुँच ही नहीं सके कुंदन 
 अमीर लोग थे, लम्हों की मुफलिसी में रहे"

अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष ने  पूर्व में  सभी कविओं की सुनाई गई रचानाओं पर अपनी राय दी और फिर अपनी कविताएँ पढ़ीं-
"इश्क का रोग लग गया क्या / रेल पटरी पर क्यों नहीं रहती"
उन्हीं की दूसरी कविता की पंक्तियाँ थीं-
"हम जहाँ भर में जला देंगे मुहब्बत के चिराग 
 और देखेंगे कि इन्हें बुझाता कौन है"

सभा में चैतन्य चंदन, एकता कुमारी, प्रेमलता सिंह, सुषमा सिंह, अंजना सिंह, सुनील कुमार और अन्य सुधी  काव्य रसिकगण भी मौजूद थे. अंत में डॉ. रामनाथ शोधार्थी ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापण किया और तत्पश्चात कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की गई.
.......................
इस रिपोर्ट के लेखक - हेमन्त दास 'हिम'
फोटोग़्राफर - डॉ. रामनाथ शोधार्थी और हेमन्त 'हिम'
रिपोर्ट लेखक का ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com





























































 




 



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