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निर्भीक पत्रकारिता का एक और प्रयास - 'मुक्त फलक'
लोकार्पण के कार्यक्रम की रिपोर्ट - हेमन्त दास 'हिम' द्वारा
पत्रकारिता और
साहित्यधर्मिता दोनो में द्वैध है. एक समाज का परिशोधन करती है तो दूसरा परिष्कार.
यद्यपि दोनो ही समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए आवश्यक हैं किंतु जब एक ही
व्यक्ति दोनो दायित्वों को निभाता है तो अक्सर उसके समाचार को यथावत प्रसारित करने
का दायित्व उसके सृजनात्मक दायित्व को नुकसान पहुँचाता है, ऐसा मानना है लोगों का. कहा जाता है कि नई कहानी का
सूत्रपात करने वाले राजेंद्र यादव के साथ भी यही हुआ. जब उन्होंने हंस नामक
पत्रिका का पुनर्प्रकाशन का भार अपने ऊपर ले लिया तो उनके सम्पादकीय बहुत चर्चित
हुआ करते थे लेकिन उनका अन्य स्वतंत्र लेखन बाधित रहा. कुछ इसी तरह का खतरा
वक्ताओं ने जताया जब श्रीकान्त व्यास जैसे जाने-माने अंगिका और हिन्दी के
व्यंग्य-लेखक, कवि और कथाकार ने 'मुक्त फलक'
नामक मासिक पत्रिका के सम्पादन का दायित्व अपने
ऊपर लिया है. पर वह व्यक्ति विशेष पर भी निर्भर करता है और श्री व्यास की क्षमताओं
को देखते हुए कहा जा सकता है कि वे पत्रकारिता और साहित्य-सृजन दोनो के बीच
सामंजस्य रखते हुए दोनो क्षेत्रों में नये मानकों को गढ़ने में सफल होंगे.
साहित्यकार व पूर्व आइ.ए.एस. अधिकारी जियालाल आर्य ने समाज में व्याप्त गरीबी और विषमता के मुद्दे को उजागर करते हुए श्रीकान्त व्यास के सम्पादन में 'मुक्त फलक' द्वारा पत्रिका को जनता से सरोकार रखनेवाली पत्रिका के रूप में स्थापित करने का प्रयास करने का अनुरोध किया.
पूर्व राजभाषा निदेशक रामविलास पासवान ने पत्रिका के प्रकाशन पर बधाई देते हुए कहा कि समाज में अमीर और गरीब के बीच में खाई बढ़ती जा रही है. एक ओर स्वर्ग सा जीवन है तो दूसरी ओर नरक के समान. इसे संतुलन में लाने की कोशिश करेंगे तो बहुत अच्छा होगा.
बिहार अंगिका अकादमी के अध्यक्ष डॉ. लखन लाल सिंंह आरोही ने कहा कि भयभीत मन से विवेक का क्षय होता है. कवि वचन सुधा पत्रिका भी भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा साहित्य से शुरू होकर राजनीति की ओर मुड़ी. अत: समय के अनुसार राजनीतिक दायित्वों से भी मुँह मोड़ कर नहीं रहा जा सकता. आज जबकि गौरी लंकेश जैसी निर्भीक पत्रकार की हत्या हो रही है ऐसे दौर में पत्रिका निकालना बहुत ही साहस का काम है.
शिक्षाविद व साहित्यकार डॉ. अनिल कुमार राय ने साहित्य के क्षेत्र में हो रही राजनीति की ओर ध्यान आकृष्ट किया और कहा कि यह चिंतनीय है कि किस प्रकार साहित्यकारों के स्वत्रंत्र लेखन को दबाया जा रहा है. 'मुक्त फलक' इन दवाबों से ऊपर उठकर अपनी पहचान बनाये ऐसी शुभकामना है.
साहित्यकर शाहिद जमील ने श्रीकान्त व्यास की संकल्प-शक्ति और जूझारूपन की तारीफ करते हुए कहा कि आज के समय में पत्रिकाएँ बिकती नहीं हैं और विज्ञापन भी नहीं मिलता है उसमें मात्र अपने पीयर ग्रुप की मदद से पत्रिका निकालने का जो बीड़ा श्रीकान्त व्यास ने उठाया है वह प्रशंसनीय है.
साहित्यकार डॉ. सत्यप्रकाश सुमन ने कहा कि मेरा भी अनुभव है कि पत्रिका निकालना कठिन काम है क्योंकि अपेक्षित आर्थिक सहयोग कहीं से नहीं मिल पाता है. एक सुझाव उन्होंने यह दिया कि यदि पत्रिका में सम-सामयिक विषय के अतिरिक्त कुछ साहित्यिकता का पुट भी रहे तो बेहतर होगा.
साहित्यकार वासुदेव मिश्र ने श्रीकान्त व्यास के नई पत्रिका निकालने के कदम को एक साहसिक कदम बताया और अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ दी. उन्होंने कहा कि 'मुक्त फलक' सभी दृष्टिकोण से एक अच्छी पत्रिका साबित होगी ऐसी आशा है.
साहित्यकार रामपाल अग्रवाल ने चुनौतियों को स्वीकार करने पर बधाई दी और पत्रिका के उज्ज्ववल भविष्य की कामना की.
साहित्यकार पुष्पा जमुआर ने पत्रिका के लोकार्पण को प्रसव-पीड़ा से उबरने से तुलना की और कहा कि श्रीकान्त व्यास ने इसके लिए उसी तरह काफी सावधानीपूर्वक प्रयास किये होंगे जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को जन्म देने के पूर्व करती है. उन्होंने कहा कि 'बिहार बंधु' बिहार राज्य से प्रकाशित होने वाली पहली पत्रिका थी परंतु 'मुक्त फलक' भी एक यादगार पत्रिका साबित होगी ऐसी आशा है.
अंत में सभा के अध्यक्ष समाज सेवी अशोक कुमार ने श्रीकान्त व्यास को अपना व्यंग्य-लेखन जारी रखने का अनुरोध किया और कहा कि श्रीकान्त व्यास अब तक इतनी पुस्तकें लिख चुके हैं कि मैं अब तक इतनी उम्र में उनसे आधी पुस्तकें ही लिख पाया हूँ. इससे यह प्रमाणित होता है कि श्रीकान्त व्यास के मानस की साहित्यिक भूमि अत्यंत ऊर्वर है. उन्हें 'मुक्त फलक' के चहुँ ओर विस्तार हेतु लाख-लाख शुभकामनाएँ और बधाई.
अंत में धन्यवाद ज्ञापण के पश्चात सभा की समाप्ति की घोषणा हुई.
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इस रिपोर्ट के लेखक- हेमन्त दास 'हिम'
आप अपनी प्रतिक्रिया या सुझाव ईमेल से भेज सकते हैं जिसके लिए आइडी है- hemantadas_2001@yahoo.com
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मंच पर विराजमान गणमान्य साहित्यकार और शिक्षाविद |
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कार्यक्रम के संचालक - डॉ. अनिल कु. राय |
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कार्यक्रम के संचालक - डॉ. अनिल कु. राय |
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मुक्त फलक पत्रिका के सम्पादक- श्रीकान्त व्यास सभा को सम्बोधित करते हुए |
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मुक्त फलक पत्रिका के सम्पादक- श्रीकान्त व्यास |
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मुक्त फलक पत्रिका के सम्पादक- श्रीकान्त व्यास |
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मुक्त फलक पत्रिका के सम्पादक- श्रीकान्त व्यास सभा को सम्बोधित करते हुए |
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जियालाल आर्य |
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जिया लाल आर्य |
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(बायें से) बीरेंद्र भारद्वाज, पुष्पा जमुआर, कवि घनश्याम, 'आज' के उप-सम्पादक |
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पुष्पा जमुआर |
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कवि घनश्याम 'आज' के उप-सम्पादक के साथ |
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