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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 21 September 2020

अजगैबीनाथ साहित्य मंच, सुल्तानगंज द्वारा अंगिका भाषा पर आधारित आनलाइन कवि गोष्ठी 20.9.2020 को सम्पन्न

 तब तक छै खुशी जब तक छै किसान 

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दिनांक 20.9.2020 रविवार को अजगैवीनाथ साहित्य मंच ,सुलतानगंज के तत्वावधान में अंगिका भाषा पर आधारित आनलाइन अंगिका कवि -गोष्ठी मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य की अध्यक्षता में आयोजित की गई जिसका संचालन मंच के अध्यक्ष व साहित्यकार भावानंद सिंह प्रशांत ने किया और संयोजन मशहूर शायर खडगपुर से  ब्रह्मदेव बंधु ने किया। कार्यक्रम में दर्जनों अंग कवियों ने अपनी -अपनी रचनाओं का पाठ किया। आयोजित कवि-गोष्ठी में सभी आमंत्रित कवियों को मंच द्वारा अंग-रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। कवि -गोष्ठी में भागलपुर, बांका, मुंगेर, खड़गपुर, कहलगांव, गाजियाबाद, खड़गपुर और सुलतानगंज के अंगसपूत कवियों द्वारा कविता का पाठ किया गया।  

सर्वप्रथम भागलपुर के वरिष्ठ कवि व गीतकार राजकुमार ने अंगिका भाषा में माँ सरस्वती की आराधना अपना गीत गाकर किया फिर किसानों की व्यथा पर कहा -
तब तक छै खुशी जब तक छै किसान 
धरती के तोहीं हो भगवान। 
अंग जनपद के सिरमौर कवि त्रिलोकी नाथ दिवाकर ने प्रेम की परकाष्ठा और समर्पित प्रेमी की भूमिका को अंगिका गीत गाकर खूब तालियां बटोरी जिसके बोल थे - 
लाल कुरती पिन्हाय देभौं हे 

वहीं भागलपुर से कवियत्री डा. सुजाता कुमारी ने लाकडाउन में बच्चों की मनमानी पर उसकी बालपन को यूँ उतारा - 
आयको बूतरू बड़ो सियानो 
करथों भरदिन बडो मनमानो 
फिरू अंग जनपद के सम्मान में कहलकै -
अंग मंगल हुऐ ,जग मंगल हुऐ ,
अंग जनपद में प्यार सरल हुऐ । 

कहलगाँव से विख्यात कवि डा. इन्दुभूषण मिश्र देवेन्दु ने बेटी की शिक्षा को प्रसांगिक बताते हुए कहा - 
पढ़ी-लिखी के हम्हु बनवै मिस्टरनी 
गे माय ,भय्या के तों दहैं समझाय ...।

गाजियाबाद से सुप्रिया सिंह वीणा ने अपने गीत में बंटे हुए समाज के मनुष्य के एकलवाद पर प्रहार कर  कहा - उगथ्हैं सुरूज आग लगावै हमरा कि 
धधकी रौदा रौद जमावै हमरा कि । 

अंगिका के सपूत अंतरराष्ट्रीय कवि व हास्यव्यंग्य के प्रतिनिधि रचनकार रामावतार राही ने अपनी रचना से सबको लोहा मनवाया ,उन्होंने व्यंग्य में कहा - 
रोज गिनै छै नमरी बुल्लु ,हम्मे कि ,
तों छो उल्लू,घरो बैठी के फाँको बल्लू ।
पढ़ी -लिखी के तोंहे दुखिया 
ओंगठा छाप बनलै मुखिया।

बांका के कवि विकास सिंह गुलटी ने प्रकृति और पर्यावरण से जुडी रचना 
सुनाई-पीपरो के डारी पर ,
लरूआ के टाली पर ,
फुर -फुर उडै चिरैया ।

अंगिका के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय  कवि सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने मार्मिक रचना पढ़ी-
जहिया सें आँखों के पानी हेरैलै ,
पुरानो - पुरानो कहानी हेरैलै ,
बुतरुआ के रोटी के फेरो में साहब ,
कमैतें -कमैतें जुवानी हेरैलै ,
सुनाकर अपनी रचना से सबको सोचै ले विवस करी देलकै ।

 मुंगेर से अंगिका के कवि शिवनंदन सलिल ने श्रृंगारिक रचना सुनाया - 
खुली गेलै कं खोपा .,
छिरयैलै गजरा ,छोड़ो -छोड़ो पिया जी 
ओझारै ले अचरा ,
सुनाकर मन मोह लिया।

अंग क्षेत्र के प्रतिष्ठित कवि श्यामसुंदर आर्य ने किसानों की बेबसी और वर्तमान में देश की हालात को निशाना बनाया और कहा - 
खेत में खटथैं कम्मर 
टुटलै ,देही के उड़लै खाल ,
हमरो खूनो सें देश चलै छै ,
हमरो हाल बेहाल 
,हम्मे  अपनो कि बतलैहियौं हाल ।

कवि मनीष कुमार गूंज ने समाजिक परिदृश्य की बदहाली पर कहा - 
हिन्ने जरलो ,हुन्ने मरलो ,
कचरा से सगरे छै भरलो ,
जरूरत जेकरा उ फरियावो ,
बेमतलब के नै गरियाबो ।

वहीं अंग जनपद के प्रतिनिधि अंगिका कवि डा. मनजीत सिंह किनवार ने अपने गीत के माध्यम सें समाज के वैविध्यपूर्ण चरित्र को रेखांकित किया जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में युवाओं की बेरोजगारी पर सटीक प्रहार था  - 
कोर -कसर जों रही गेल्हौं नौकरी के तैयारी में 
,इज्ज़त फेनु तें नहिएं मिलथौं ,जीवन भर सोसरारी में,
बिना नौकरिया दूल्हा के आबे हालत कि बतलैहियौं,
हमरो भोगलो बात छिकै आबे तोरा कि समझैहियौं 
कुरसी रहथैं बैठैले जग्हे दै छै गोरथारी में,...।  

अंगिका के वरीय कवि व दर्जनों किताब के रचयिता हीरा प्र. हरेन्द्र ने अपनी कविता के माध्यम से सबको अचंभित कर दिया ,उनके बोल -
केकरा कौने कहा पारतै ,
धरमराज युधिष्ठिर नाकी 
जुआ में बहुओ के हारतै ,
केकरा कौने कहा पारतै । 

वहीं मंच के अध्यक्ष व साहित्यकार भावानन्द सिंह प्रशांत ने भी अंगिका भाषा में दोहा और पावस गीत सुनाकर भाव विभोर कर दिया  दोहा में उन्होने आज  के भौतिकवादी परिवेश पर प्रहार करते हुए कहा -
 नै ऐंगना नै कुइयां ,कना होतै मटकोर। 
बिहौती घर अन्हार छै होटल होय इंजोर ।।
 पावस गीत में उन्होंने कहा - 
बरसै छै रिमझिम सावन के घनमा ,
धियावै तितलो यौवनमा हो ,बरसै छै रिमझिम ...  ।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप में शिवनंदन सलिल ,सुप्रिया सिंह  वीणा और डा. सुजाता कुमारी  व मुख्य अतिथि हीरा प्र. हरेंद्र थे और अति विशिष्ट अतिथि के रूप में डा. इन्दुभूषण मिश्र देवेन्दु उपस्थित थे ।

भागलपुर से वरिष्ठ कवि महेन्द्र निशाकर ने प्रकृति और गाँव पर रचना पढ़कर मन मोह लिया - 
परकृति रानी के गोदी में ,रचल- बसल छै गाँव 
,किन्हौं पोखरी के किनारी ,किन्हैं पीपल के छाँव ।
.....

रपट के लेखक - भावानन्द सिंह 'प्रशान्त'
रपट के लेखक का ईमेल आईडी -
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हिन्दी को सम्मान दो / कवि - बी. एन. विश्वकर्मा के परिचय के साथ

 कविता 

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कवि का परिचय - श्री (डॉ.) बी. एन. विश्वकर्मा एक जुझारू किस्म के और सब के मुँह पर भी खरी-खरी सुनानेवाले एक जीवट वाले व्यक्ति हैं. किन्तु अंदर से ये निर्मल हृदय रखनेवाले और बड़े ही मिलनसार किस्म के आदमी भी हैं. सादगी की प्रतिमूर्ति श्री विश्ववकर्मा जी राष्ट्रीय स्तर पर विश्वकर्मा समाज के प्रतिनिधि रहे हैं और उनके वृहत्तर समुदाय में अत्यंत लोकप्रिय भी रहे हैं. दशकों से अपने समाज के संघठन की कार्यकारिणी के महत्वपूर्ण पद को सुशोभित करते रहे हैं और पिछले लगभग एक दशक से साहित्य के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे हैं.  इन्हें बिहार की हर लोकभाषा और हिंदी के साहित्यकारों के बारे में काफी ज्यादा जानकारी है यूँ कह लीजिए कि ये बिहारी साहित्यकारों की जानकारी रखनेवाले एक एनसाइक्लोपीडिया हैं. पहले इनके बहुमूल्य परामर्श पर हमने "साहित्य संस्कृति संसार बिहार"   नाम का फेसबुक ग्रुप चलाया गया था जो पूरे बिहार में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया था. बाद में राजनीतिक कार्यकरताओं के अति-हस्तक्षेप के कारण उसे बंद कर देना पड़ा. "बिहारी धमाका ब्लॉग" पर जिन साहित्यकारों की लोकभाषा में रचनाएँ हैं उनके बारे में बहुमूल्य परामर्श देनेवाले श्री विश्वकर्मा ही हैं. इनकी स्वयं की अनेक रचनाएँ विशेष रूप से मगही में इस ब्लॉग पर हैं. सक्रिय सामाजिक सरोकार रखनेवाले ये महत्वपूर्ण संस्कृतिनिधि स्वयं इतनी सादगी से रहते हैं और कि इनके भूतकाल के बारे में हमें इन्हीं से जानकारी मिली. इन्होंने बताया कि ये रसायनशास्त्र के प्राध्यापक रहे हैं और इन्होंने उस विषय में पी.एच.डी किया हुआ है. वर्तमान में बिहार की एक अत्यंत महत्वपूर्ण राजनीतिक दल के एक महत्वपूर्ण सांगठनिक अवैतनिक पद पर वर्तमान हैं. इनकी विचारधारा उदार और सबको साथ लेकर चलनेवाली है. (-हेमन्त दास 'हिम')
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Wednesday 2 September 2020

गीतकार शैलेंद्र / लेखक - जितेंद्र कुमार, मृत्युंजय शर्मा

बिहार में जन्म लेनेवाले गीतकार शैलेंद्र
 जिन्होंने राजकपूर ही नहीं देश का दिल जीत लिया

मथुरा में है इनके नाम पर सड़क

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खण्ड-1 / लेखक - जितेंद्र कुमार 

गीतकार शैलेंद्र को मैं भोजपुरिया मानूँ तो आप नाराज नहीं होंगे. उनका परिवार बिहार के भोजपुर जिले का था. उनके पिता ब्रिटिश फौज में नौकरी करते थे. परिवार साथ रखते थे. जब शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त,1923 को हुआ उस समय उनके पिता की पोस्टिंग रावलपिंडी में थी. आज के हिसाब से शैलेंद्र पाकिस्तानी थे. उनके पिता का स्थानांतरण शीघ्र ही मथुरा हो गया. शैलेंद्र की शिक्षा-दीक्षा मथुरा में हुई. मथुरा में ही उन्होंने मैट्रिक और इंटर पास किया. मथुरा में ही रेलवे के मुलाजिम बने. वे दलित परिवार से आते थे. उन्होंने अनाड़ी, आवारा, संगम, श्री 420, गाइड आदि फिल्मों सहित अनेक फिल्मों के लिए लगभग 800 गीत लिखे. बिहार में शैलेंद्र के नाम पर एक प्राथमिक विद्यालय भी नहीं है. बिहार में किसी चौक, किसी सड़क का नाम मशहूर गीतकार शैलेंद्र के नाम पर नहीं है. मेरी इच्छा है कि कम से कम भोजपुर में शैलेंद्र के नाम पर किसी चौक या रास्ते का नामकरण हो. 

एक चीज जानकर अच्छा लगा कि मथुरा की पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता ने 2016 ई. में शैलेंद्र की स्मृति में एक सड़क का नाम गीतकार शैलेंद्र के नाम पर रखा. एक कार्यक्रम का आयोजन'जन सांस्कृतिक मंच'ने मथुरा में किया जिसमें शैलेंद्र के पुत्र दिनेश शंकर और उनकी बेटी अमला को भी आमंत्रित किया.

दिनेश शंकर के अनुसार शंकर जयकिशन, एस डी बर्मन, हसरत जयपुरी, राजकपूर उनके मुंबई स्थित घर में आते थे. कवि गोष्ठियाँ होती थीं. इन काव्य गोष्ठियों में धर्मवीर भारती और अर्जुन देशराज सरीखे लोग शिरकत करते थे.

शैलेन्द्र का निधन 14दिसंबर, 1966 को हो गया, मात्र43वर्ष की उम्र में. संयोग से राजकपूर की जन्म तिथि14दिसंबर ही है. हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझना चाहिए और बचाना चाहिए.

मेरे शहर का प्रत्येक चौक खास लोगों के लिए सुरक्षित है. शैलेंद्र उन ख़ास लोगों में शायद नहीं माने जाते हों!


खण्ड-2 / लेखक - मृत्युंजय शर्मा 

हिन्दी के एक प्रमुख गीतकार शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र का जन्म रावलपिंडी में 30 अगस्त, 1923 को हुआ था। बिहार के आरा जिले के धुसपुर गांव के दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले शैलेन्द्र का असली नाम शंकरदास केसरीलाल था। दो दशक से अधिक समय तक लगभग 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वयं को ऐसे समाहित-सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो। अपने गीतों की रचना की प्रेरणा शैलेन्द्र को मुंबई के जुहू बीच पर सुबह की सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की कोई साधारण-सी बात क्यों न हो वह अपने गीतों के जरिए जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे।

वो मुम्बई जाने के बाद अक्सर 'प्रगतिशील लेखक संघ’ के कार्यालय में अपना समय बिताते थे, जो पृथ्वीराज कपूर के रॉयल ओपेरा हाउस के ठीक सामने हुआ करता था। हर शाम वहां कवि जुटते थे। यहीं उनका परिचय राजकपूर से हुआ और वे राजकपूर की फिल्मों के लिये गीत लिखने लगे। उनके गीत इस कदर लोकप्रिय हुये कि राजकपूर की चार-सदस्यीय टीम में उन्होंने सदा के लिए अपना स्थान बना लिया। इस टीम में थे- शंकर-जयकिशन, हसरत जयपुरी अउर शैलेन्द्र। उन्होंने कुल मिलाकर करीब 800 गीत लिखे और उनके लिखे ज्यादातर गीत लोकप्रिय हुए। 'आवारा हूँ' (श्री 420); 'रमैया वस्तावैया' (श्री 420); 'मुड मुड के ना देख मुड मुड के' (श्री 420); 'मेरा जूता है जापानी' (श्री 420); 'आज फिर जीने की तमन्ना है' (गाईड); 'गाता रहे मेरा दिल' (गाईड); 'पिया तोसे नैना लागे रे' (गाईड); 'क्या से क्या हो गया' (गाईड); 'हर दिल जो प्यार करेगा' (संगम); 'दोस्त दोस्त ना रहा' (संगम); 'सब कुछ सीखा हमने' (अनाडी); 'किसी की मुस्कराहटों पे' (अनाडी); 'सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है' (तीसरी कसम); 'दुनिया बनाने वाले (तीसरी कसम) आदि लोकप्रिय गीत हैं। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से समतामूलक भारतीय समाज के निर्माण के अपने सपने और अपनी मानवतावादी विचारधारा को अभिव्यक्त किया और भारत को विदेशों की धरती तक पहुँचाया।

आम जन की भावनाओं को भी उन्होंने अपनी रचनाओं में सहज स्थान दिया है। आज़ादी के बाद उनकी एक कविता "भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की, देशभक्ति के लिये आज भी सज़ा मिलेगी फांसी की" पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी ये कहकर की ये आम जनों में विद्रोह की भावना जगाती है। उन्होंने दबे-कुचले लोगों की आवाज को बुलंद करने के लिये नारा दिया -”हर जोर-जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है।" यह नारा आज भी हर मजदूर के लिए मशाल के समान है।

मुम्बई में उन्होंने फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कहानी ”मारे गए गुलफाम” पर आधारित ”तीसरी कसम” फिल्म बनायी। फिल्म की असफलता और आर्थिक तंगी ने उन्हें तोड़ दिया। वे गंभीर रूप से बीमार हो गये और आखिरकार 14 दिसंबर, 1967 को मात्र 46 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गयी। फिल्म की असफलता ने उन पर कर्ज का बोझ चढ़ा दिया था। इसके अलावा उन लोगों की बेरुखी से उन्हें गहरा धक्का लगाए जिन्हें वे अपना समझते थे। अपने अन्तिम दिनों में वे शराब के आदी हो गए थे। बाद में ‘तीसरी कसम’ को मास्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारत की आधिकारिक प्रविष्ठी होने का गौरव मिला और यह फिल्म पूरी दुनिया में सराही गयी। पर अफसोस शैलेन्द्र इस सफलता को देखने के लिए इस दुनिया में नहीं थे। शैलेन्द्र को उनके गीतों के लिये तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। 

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लेखक - जितेंद्र कुमार और मृत्युंजय शर्मा
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लेखक - जितेंद्र कुमार 

लेखक - मृत्युंजय शर्मा