नये और पुराने अनुष्ठानों का संगम
Confluence of new and old rituals
(हिन्दी में नीचे पढ़िये)
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Mithila culture is still one of the most conservative cultures of India even though the modernisation has cast its effect on it slowly. Some new rituals like Jayamala and Var-vadhu swagat (Reception) have lately become almost an essential ingredient of it. The ceremony of Siddhant (engagement) is still performed in its pristine form. Still, the Battisgama families in Mithila do not ask for dowry in cash or kind and of course, the bridegroom still sports dhoti kurta at least while marrying. Moreover the bridegroom still wears a 'Mour' (cap) of archaic style. And last but not least, the marrying partners are still not permitted to attend their engagement ritual and strangely they still go by the agreement about their marriage made by their family persons in Siddhant ceremony before a gathering belonging to their community.
मिथिला संस्कृति अभी भी भारत की सबसे रूढ़िवादी संस्कृतियों में से एक है यद्यपि आधुनिकीकरण इसके प्रभाव धीरे धीरे पर डाल रहा है. जैसे कि जयमाल और वर-वधु स्वागत (रिसेप्शन) जैसे कुछ नए अनुष्ठानों को इसमें अनिवार्य रूप से जोड़ दिया गया है, सिद्धान्त (सगाई) का समारोह अभी भी अपने प्राचीन रूप में किया जाता है। आज भी, मिथिला में बत्तीसगाम परिवार दहेज में नकदी या वस्तु किसी भी रूप में नहीं माँगते हैं और निश्चित रूप से दुल्हा कम से कम विवाह के दिन धोती-कुर्ता ही पहनता है। इसके अलावा, दूल्हे अभी भी प्राचीन शैली की 'मौर' (मुकुट) पहनता हैं। और तो और, अभी भी विवाह करने जा रहे जोड़े को उनकी सगाई में शामिल होने की अनुमति नहीं होती है और वे अभी भी अपने परिवार के लोगों द्वारा अपने समुदाय के समक्ष सिद्धान्त की रस्म में उनके विवाह के बारे में किये गये सार्वजनिक निर्णय को मानते हैं।
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Pic-2: Siddhant |
In Picture No.2, We see that in the custom of 'Pasahin', the bride is being decorated by beauty ointments being treated on her body. Her cousin brother is also sitting with her for the same as he has also to undergo a separate ceremony called 'Chudakarn' or 'Janeoo'. Though the 'Chudakarn' ceremony has no relation to marriage but it is generally performed along with someone's marriage in family so that a separate function is avoided. the bride and her cousin brother are sitting together for their bodies being rubbed with turmeric powder and other beauty ointments.
पिक्चर नं 2 में हम देखते हैं कि 'पसाहिन' विधि के अंतर्गत दुल्हन को उसके शरीर पर सौंदर्य-प्रसाधनों जैसे हल्दी आदि के लेपों से सजाया जा रहा है। उसके चचेरे भाई भी अपने शरीर पर उसके साथ बैठे हैं क्योंकि उन्हें 'चूड़ाकर्ण' या 'जनेऊ' नामक एक अलग समारोह से गुजरना पड़ता है। यद्यपि 'चूड़ाकर्ण' समारोह का विवाह से कोई संबंध नहीं है लेकिन आम तौर पर परिवार में किसी की शादी के साथ यह सम्पन्न किया जाता है, ताकि इसके लिए एक अलग समारोह से बचा जा सके। दुल्हन और उसके चचेरे भाई भाई के शरीर पर हल्दी पाउडर और अन्य सौंदर्य मलहम से लेप किया जाता है।
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Pic-3: Siddhant
In Picture 3, We see the actual ceremony of Siddhant in which representatives (more oftenly brothers) from the sides of bride and bridegroom are holding a metallic water pot called 'Suvarna' full of holy water while a 'Pajikar' (community registrar) chants some Sanskrit mantras and makes announcement about the fixation of marriage between the two parties. The special thing is that he introduces both parties by their respective male lineages upto seventh generation from paternal and maternal sides. He also makes announcement that there is no brother-sister relationship in any manner between both the marrying parties even after considering the seven generations back.
चित्र 3 में, हम 'सिद्धान्त' के वास्तविक समारोह को देखते हैं जिसमें दुल्हन और दुल्हन के तरफ से प्रतिनिधियों (अधिकतर समय भाइयों) के हाथों में एक '' सुवर्णा '' नामक एक धातु के जलपात्र होते हैं जो पवित्र जल से भरे होते हैं जबकि 'पंजीकर' (समुदाय का रजिस्ट्रार) कुछ संस्कृत मंत्रों को पढ़ने के बाद दोनों पक्षों के बीच विवाह के निर्धारण के बारे में घोषणा कर देता है। खास बात यह है कि वह पैतृक और मातृ तरफ से सातवें पीढ़ी तक अपने-अपने पुरुष वंशजों से वैवाहिक जोड़ों में से प्रत्येक का परिचय देता है। उन्होंने यह भी घोषणा सात पीढ़ियों वापस विचार करने के बाद भी दोनों पक्षों के बीच किसी भी तरीके से कोई भाई-बहन रिश्ता नहीं है और दोनो के बीच विवाह हो सकता है।
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Pic-4: Kumram
In Picture 4, the bridegroom is going for 'Kumaram' just before one day of marriage. The mother of the bridegroom is covering the head of the bridegroom with the end of her saree.
चित्र संख्या 4 में वधु कुमरम विधि हेतु जा रही है जो विवाह के एक दिन पहले होता है. वधु की माता अपने साड़ी के पल्लू से वधु के माथे को ढँके हुए है.
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In picture 7, the head of the bride is anointed with a kind of 'sindoor' in the ritul of Chaturthi. It is noteworthy that the bridegroom is expected to stay at bridegroom's house for at least four days before leaving for his own village with the bride.
चित्र संक्या 7 में चतुर्थी की रस्म में वधु का सिर एक प्रकार के सिंदूर से लेपा जा रहा है. ध्यातव्य है कि दूल्हे से आशा की जाती है कि वधु को अपने साथ ले जाने के पहले वह कमसे कम चार दिनों तक ससुराल में रहे और चतुर्थी पूजन के बाद ही वधु को लेकर अपने गाँव जाये.
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Pic-13: Pujan |
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Pic-14: Vat-vriksha pujan
Picture No. 14 shows as in the ceremony of 'Barsaiat' (Vat-savitri pujan) ceremony the banyan tree is worshipped.
चित्र संख्या 14 में 'वरसाइत ('वट-सावित्री पूजन) विवाह के कुछ दिनों बाद होता है जब वर के पेड़ को पूजा जाता है.
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Pic-15: Vat-vriksh pujan |
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चित्र सौजन्य: शंकर एवम शिखा / Photos courtesy : Shankar and Shikha
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