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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday 28 July 2019

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद एवं स्टे.रा.भा.का.स. के द्वारा कवि गोष्ठी 27.7.2019 को सम्पन्न

तेरे मदिर नयन में / सावन प्रतिपल रोमानी

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सावन की रिमझिम यूँ तो सुहावनी होती है लेकिन इस बार बिहार में झमाझम बारिश ने कहर ढा दिया है। कितने लोग बाढ़ में बह गए।  वैसे भी हर बार जब भी यह सावन आता है तो प्यास बुझाने की बजाय और बढ़ा दिया करता है दिलों में।

सावन के रंग में रंगी और रंग-बिरंगे चुड़ियों की चमक लिए, मेहंदी का बूटा लगी हथेलियों का सौंदर्य लिए श्रृंगारिक कविताएं खूब पसंद की गई तो दूसरी तरफ सावन में प्राकृतिक अपदाएं और शहर में तबाह हो रही जिंदगी की चिंता को रेखांकित करती हुई सावन की गीत-गजलों ने सावन का भरपूर स्वागत किया। मौका था-साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् एवं स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सावन काव्योत्सव का। 

सावन काव्योत्सव का संचालन करते हुए, कवि-कथाकार सिद्धेश्वर ने सावन के सौंदर्य का वर्णन अपनी कविता में किया- 
"घुटने पर सिर रखकर / किसी की प्रतीक्षा  में बनी विरहिणी 
अच्छी लगती हो तुम 
आंसू की धार नहीं किसी की प्रेम वर्षा में 
भींगी हुई लगती हो तुम!" 

मधुर गीतों की रचना करनेवाले मधुरेश नारायण ने सुरीले कंठ से सावनी गीत सुनाकर माहौल को रसमय बना दिया -
"देखो बरसात की आई फुहार
ज्यूं रिमझिम करती आई बहार!"

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शायर घनश्याम ने सावन के रौद्र रूप को दिखाया -
"खूब बरसा है कहर बरसात में/ बह गए आबाद घर बरसात में! 
गांव - खेत, के चेहरे खिले/ किंतु मुरझाए शहर बरसात में!" 

दूसरी तरफ सावन में श्रृंगार खोजती नजर आयीं युवा कवयित्री कुमारी स्मृति-
"सावन को, पायल में, बिछा सावन 

नवोदित कवि सम्राट समीर का सावनपन देखिए - 
"मन-तरंग है खेल-मेल में/  रिश्तों की गुंजन पावन है 
भीग गई सपनों की चुनर / मेरी आँखों में  सावन है ।" 

युवा कवि कुंदन आनंद ने ऋतु-रानी का स्वागत अपने अनोखे अंदाज़ में किया -
"तुम आयी हो /आनंदित है भू-मंडल यह सारा
स्वागत है ऋतु-रानी तुम्हारा
प्यासी खग-वृंदों की टोली
भटक रही थी सदन-सदन
प्यासे होठ थे सब खेतों के
और प्यासा था हर कानन! "

वरिष्ठ शायर शुभचंद्र सिन्हा ने विरह के आँगन में चरण रखे -"
साँझ भये विरह के आँगन मे
तेरी यादों के जब  चरण पड़े
अश्रुओं  के नवल पुष्पहार ले 
 दौड़े  हाय अभागे नयन भरे। "

मनोज उपाध्याय ने बादल से वर्षा की गुहार करते दिखे -
"सावन के बादल तू आ जा, 
रिमझिम रिमझिम वर्षा ला!" 

प्रभात कुमार धवन ने बूंदों के अक्षुण्ण अस्तित्व का दर्शन कराया- 
नन्हीं बूंद नहीं डरती तपकर, 
अपने अस्तित्व खोने में! 

डॉ. एम के मधु ने सावन को सियासत से जोड़ दिया -
"सियासत का सावन आज घनघोर है, 
जंगल में देखो नाचा मोर है। "  

तथा अमितेश को सावन के झूले याद आ रहे थे-
"पेड़ों पर झूले, सावन की आई बहार 
ऐसी और भी कविताओं ने सावन काव्योत्सव को रंगीन और यादगार बना दिया। 

काव्योत्सव की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि, "कुदरत से हम कटते चले गए! उसका दोहन करते चले गए। इस कारण ही सावन की स्थितियां भी हमारे अनुकूल नहीं रही। उन्होंने इस तरह की  गंभीर गोष्ठियों के सफल आयोजन के लिए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि -" बड़ी-बड़ी गोष्ठी और सम्मेलनों में, जो बात नहीं बनती, इस तरह की  छोटी-छोटी गोष्ठियों में पूरी होती है।

 उन्होंने सावन के गीत सुनाए- 
"तेरे मदिर नयन में / सावन प्रतिपल रोमानी 
इधर रात कटती आंखों में / टपक रही छानी! "

बाहर में पानी की बूंदा-बांदी और पुस्तकालय कक्ष के अंदर में शब्दों की बरसात होती रही बिल्कुल बेखटक।  अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया मो. नसीम अख्तर ने और इस तरह से सौहार्द की अभिवृद्धि करता हुआ यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ
.....

आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
लेखक का ईमेल आईडी- :sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com













Tuesday 23 July 2019

"एक शाम नीरज के नाम" धरोहर द्वारा पटना में 21.7.2019 को भव्य कार्यक्रम प्रस्तुत

 "कारवां गुजर गया गुब्बार देखते रहें!"
महामहिम राज्यपाल और अन्य गणमान्य थे उपस्थित

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नीरज के गीतों में, प्रेम, विरह, श्रृंगार सबकुछ था। उनके गीत "कारवां गुजर गया गुब्बार देखते रहें, शोखियों में घोली जाए थोड़ी - सी शराब, ये प्यासों का प्रेम सभा है, यहां संभलकर आना जी, ऐ भाई जरा देख कर चलो' जैसी कविताओं को भला कौन भूल सकता है? 

पटना के बी आई ए सभागार में आयोजित और धरोहर संस्था द्वारा प्रस्तुत" एक शाम नीरज के नाम 'समारोह का उद्घाटन करते हुए बिहार के राज्यपाल महामहिम श्री लालजी टंडन ने उपरोक्त विचार प्रकट किया।

कार्यक्रम की शुरुआत 'नीरज' के उन गीतों से हुई, जिसे वीडियो एल्बम के रुप में प्रस्तुत किया - वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आलोक राज ने सुनाया -
"आदमी को आदमी बनाने के लिए 
जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए!"

इस भव्य और यादगार समारोह में, साहित्य से लेकर, राजनीति और विज्ञान सै लेकर ब्यूरोक्रेसी तक के लोगों की जबरदस्त भीड़ थी।

समारोह में गोपालदास 'नीरज' के पुत्र शशांक प्रभाकर की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही जिन्होंने सुनाया-
"मैं सोच रहा/ अगर तीसरा युद्ध हुआ /
इस नई सुबह की नई फसल का क्या होगा.!"

इस समारोह में सांसद आर के सिन्हा, आलोक राज और शशांक प्रभाकर के अतिरिक्त डॉ. गोपाल प्रसाद सिंहा, सूरज सिन्हा, सुरेश अवस्थी,  कुमार रजत, मधुरेश नारायण, राजकुमार प्रेमी, कुमारी राधा, सिद्धेश्वर आदि की उपस्थिति  दर्ज हुई।

सभी विद्वानों ने एक मत से कहा कि - "नीरज की कविताओं में सबकुछ था- प्रेम, विरह, सौंदर्य, दार्शनिकता, आध्यात्म।" नीरज ने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया और फिल्म ग्लैमर वाली दुनिया को छोड़कर वापस अपने शहर अलीगढ़ आ गए।

इस समारोह में आमंत्रित मात्र चार कवियों ने काव्य पाठ कर, 'नीरज' के प्रति श्रद्धा अर्पित किया। शशांक प्रभाकर के बाद सुरेश अवस्थी ने सुनाया- 
"सांई इस संसार में, ऐसे मिले फकीर
भीतर से लादेन है, बाहर बने कबीर! 

कुमार रजत ने कविता की शुरुआत की-
"गीतों-ग़ज़लों का सूरज हो
सुननेवालों को अचरज हो
सूनी महफ़िल की ख्वाहिश है
मंचों पे फिर से नीरज हो।" 

उनकी और एक कविता थी-
"इक जिद्द ने साजिश बड़ी की है
हम कहीं रोए नहीं थे, इश्क ने कहीं गड़बड़ी की है"!
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आलेख - सिद्धेश्वर 
छायाचित्र - सिद्धेश्वर तथा अन्य
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com





 

















Friday 19 July 2019

एक आम पीड़ित भारतीय पति की डायरी / हास्य कथा

हास्य कथा
कैटरीना खूबसूरत है या दीपिका इस पर डिबेट चल रहा है 
मगर मेरे ख्यालों मे तो है श्रीमती का तमतमाया चेहरा

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लेखक - प्रकाश रंजन 'शैल'

सुबह-सुबह कैंडी क्रश की सात लेवलें पार कर गया। दिन शायद अच्छा गुजरे मगर जाने क्यूँ श्रीमती गुस्से मे दिख रही हैं!

सब खैरियत हो अखबार में घुस जाऊँ। मोदी जी ने अच्छे दिनों के लिए कुछ घोषणाएं और कर दी हैं मगर श्रीमती की त्यौरियां चढी हुयी हैं। 

चलूँ  बालकनी में। पड़ोसन सामने बाल संवार रही है। चेहरा खिल उठा है। कनखियों से मगर देखता हूं तो श्रीमती अब भी नाराज दिखती हैं। 

सबेरे निकल लूँ आज। कार्यालय में दिन सामान्य-सा है। कैटरीना खूबसूरत है या दीपिका इस पर डिबेट चल रहा है मगर मेरे ख्यालों मे तो श्रीमती का लाल-लाल तमतमाया चेहरा नाच रहा है।

ओवरटाइम कर लेता हूँ मगर शाम को आफिस से घर लौटते कदम भारी हैं। पटना जंक्शन वाले महावीर मंदिर होते हुए डरते-सहमते वापस लौटा हूँ। श्रीमती बच्चों पर गुस्सा उतार रहीं है आज यकीनन कुछ होने वाला है।

मोबाइल, टीवी खतरनाक हैं सो बच्चों को पढाने को दुबक गया हूं। बीच-बीच मे हालात की बानगी लेता हूँ पर श्रीमती के सामान्य होने के आसार नही दिखते।

भारत ने पाकिस्तान से मैच जीत लिया है। मन खुश होना चाहता है उछलना चाहता है मगर श्रीमती के खौफ से जब्त कर लेता हूं। 
"जान है तो जहान है -
भारत और पाकिस्तान है।"

खाने की मेज पर खामोशी का साया है। पिन-ड्रॉप साइलेंस पसरा हुआ है और श्रीमती जी के तेवर अब भी चढे हुए हैं मेरा मन बुरी तरह से घबड़ाया हुआ है।

सिरहाने मे हनुमान चालीसा रख जल्दी से सो जाना हितकारी है मगर रात खौफनाक डरावने ख्वाबों से भरी हुयी होगी, यह सोच काँप उठता हूँ।

"पत्निम शरणं गच्छामि" - ज्ञान की प्राप्ति होती है और चरणागत हो जाता हूँ। 

"हे बच्चों की अम्मां, यह जो तुमने दुष्टों का संहार करनेवाला रूप धरा है उससे मेरा मन भावी अनिष्ट के लिए सशंकित है। अपने शरण मे आए हुए इस तुच्छ प्राणी का कल्याण करो बच्चों की माते। तुम जिस तरह जिस हाल मे रखोगी मै रह लूंगा किन्तु तुम्हारे मुखमंडल का यह तेज अब न सह सकूंगा प्रिये!"

श्रीमती के चेहरे पर अब मुस्कान है, 
हे दया की मूर्ति तू कितनी महान है।
(- एक आम पीड़ित भारतीय पति के एक आम दिन की ईमानदारी से की गयी डायरी इंट्री)
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लेखक - प्रकाश रंजन 'शैल'
लेखक का ईमेल आईडी - prakashphc@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Thursday 18 July 2019

उर्दू निदेशालय, बिहार सरकार द्वारा महफ़िल- ए-गंग-व-जमन" मुशायरा 16.7.2019 को पटना में सम्पन्न

जब कोई दीया दिल में जलाया जाय / सूरज से जरूरी नहीं कि पूछा जाय

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उर्दू निदेशालय (बिहार सरकार) के तत्वावधान में अभिलेखागार भवन, पटना में आयोजित "महफ़िल-ए-गंग-व-जमन" मुशायरा में, उर्दू - हिंदी के कई प्रतिनिधि शायरों ने, एक से बढ़कर एक शायरी से  समारोह को यादगार बना दिया। इस समारोह में "उर्दू-हिन्दी में भाषाई समरूपता" विषय पर सेमिनार का भी जबरदस्त समायोजन हुआ। 

कलाम शाफिफ ने कहा-
"प्यार का काम भी नफरत से लिया जाता है
अमन के नाम पर क्या-क्या न किया जाता है!
हम कलम वालों को कमजोर न समझों
क्योकि कलम का काम तीरों से भी लिया जाता है। "

 पूर्णिया की मंजुला उपाध्याय के गजल की बानगी देखिए -
"ऊपर-ऊपर खार समंदर होता है
भीतर भीतर मीठा-सा जल होता है!"

कासिम रजा़ ने राष्ट्रीय भावना से माहौल को ओर-प्रोत कर किया -  
"ये अपना वतन है अपना वतन 
हर रंग के फूलों का चमन ! 
खुसरो का गीत भी अपना है
भक्ति संगीत भी अपना है
दिल मोहता है मीरा का भजन!"

यशस्वी शायर नीलांशु रंजन की कविता की रवानगी भी खूब रही -
"सच तो ये है / मेरे साथ, 
फूल भी है / तुम्हारे इंतजार में!"

 कमला प्रसाद का कलाम -
"भाषा बहता हुआ  पानी  है
यह बहती हुई हवा भी है।"

सीतामढ़ी के शायर असरफ का कलाम देखिए -
"नापाक इरादों से हमें डरने की नहीं बात
 नफरत के सियासत को न हम हवा देंगे।

आराधना प्रसाद ने सरगमी आवाज में गजल  की गायिकी की-
"मैं साहिल पे बैठी थी तन्हा तमाशा
मेरी प्यास थी और दरिया तमाशा
सरे राह दामन हवा में उड़ाकर
मुझे तुमने कैसा बनाया तमाशा।"

"भाषा तोड़ने की नहीं, जोड़ने का काम करती है।"
 साहित्य का आकलन सिर्फ़ समीक्षक ही नहीं, पाठक भी करते हैं। 
पाठक को कमजोर नहीं समझना चाहिए।
" मैं बाजार जाता हूं,!" 
- इसे आप उर्दू में क्या कहेंगे? 'बाजार' को आप 'दुकान' कह सकते हैं, किन्तु "जाता हूं" को आप उर्दू में क्या कहेंगे? हिंदी उर्दू की जुबान को जब हम भाषा से जोड़ते हैं, तो 'मिठास' आती है, दोनों सगी बहनें हैं। किंतु जब इसे 'मजहब' से जोड़ते हैं, तब दुराव पैदा होता है।

यह कहना  गलत है कि 'उर्दू' में जो रवानगी है, वह हिंदी' में नहीं।'
" हिन्दी-उर्दू" के बीच 'समरूपता' की नहीं, 'समरसता' की बात होनी चाहिए।
"हिन्दी -उर्दू" में,' संज्ञा 'तो आती है, जाती है, किंतु' क्रिया',' सर्वनाम',' विशेषण' तो दोनों भाषाओं में एक है।"

"कोई बात तो ऐसी है 
कि हमारी हस्ती नहीं मिलती!" 
वह बात है, दोनों भाषाओं में समरूपता की। मजहब जानने वाले कहा करते हैं कि संस्कृत हिंदुओं और फारसी मुसलमानों की भाषा है। सच तो यह है कि धर्म की कोई भाषा नहीं होती। ये बातें भाषा विद्वान समझते हैं।

इस सभागार में बैठे विद्वान और श्रोताओं  जब यहां पर "उर्दू-हिन्दी भाषाई समरूपता" की बात कर रहे हैं, उसी समय न जाने कितने लोग सड़क से लेकर ऑफिस तक गलत कामों में लगे होंगे। भारतीय संविधान की नजर में  हिंदी और उर्दू दो अलग अलग भाषाएं हैं। उर्दूभाषी  वालों ने यह भी स्वीकार किया कि उर्दू बिहार में द्वितीय राजभाषा के रूप में होते हुए भी उर्दू बोलने वालों की कमी हो रही है, जो आज  छठे क्रम से सातवे क्रम में आ गई है।

"दोनों कौमों के बीच इतना जहर घुल चुका है कि दोनों कौम या भाषा एक नहीं हो सकती।" ऐसा अंग्रेज सरकार समझा करती थी। किंतु सदियों की सोच से आगे आज हमारी सोच हैं। बावजूद " भाषा को तहजीब और धर्म से बहुत अलग हम नहीं कर सकते! - ऐसा विचार रखनेवाले उर्दूभाषियों की भी आज कमी नहीं है!"

सब कुछ आप बांट सकते हैं, किंतु नसीब को नहीं बांट सकते। पैसा, जमीन नहीं है तो उसे हम पैसा और जमीन दे रहे हैं। आप भाषा और व्याकरण में ज्यादा उंगली न कीजिए। हमारे पास भाषा की दरिद्रता है। इसे हम क्यों नहीं बांटा करते हैं? मां की आंचल में हमने जिस. भाषा को पढ़ा और जाना, उसे उपेक्षित करना, हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है?! भाषा समरूपता की बात करना और इस चर्चा में हिस्सा लेना, ये दोनों, एक राष्ट्रीय कार्य है।

 मशहूर कवि प्रेमकिरण ने कहा- 
"नफरत ही रह गई है मोहब्बत चली गई 
दो भाईयों के बीच की नफरत न पूछिए
घर की बात थी, अदालत चली गई!"

अरुण कुमार आर्या की गजल-
"गीता का मर्म कुरान का फरमान है दिल में! "
"हिंदी-उर्दू तो है सगी बहनें
इसे मजहब से न जोड़ा जाए!"

संजय कुमार कुंदन"ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की-
"गर्म हवा बाहर से आई आकर है कमरे में बंद
दीवारों के खोल में घुसकर है गोशे-गोशे में बंद।"

"अंधेरे में साए भी साथ छोड़ देता है। 
दुखों की भीड मे हंसना - हंसाना भूल जाती है
गरीबी मुफलिसी में, मुस्कुराना भूल जाती है" - असद सिद्दीकी की ये गजल थी।

एम के बजाज की गंगा-यमुनी मिजाज की गजल सुनाया -
"हिंद की शान है उर्दू / इश्क की जुबां है उर्दू! 
लब चूमने को चाहे / वो जुबां है उर्दू!!"

वरिष्ठ कवयित्री शांति जैन नेप्यार की परिभाषा यों दी-
"प्यार दिन का उजाला नहीं है
प्यार तो रात की चांदनी है 
प्यार है आंसुओं की कहानी और 
"अपना साया भी अजनबी लगे
प्यार से मेरा नाम लेना तुम!"

वरिष्ठ शायर नौसाद औरंगाबादी का तेवर देखिए -
"ये किस शमां कि तहजीब है कि
 जुंबा पर राम-राम न हो, 
दुआ सलाम न हो।" 
"जब कोई  दीया, दिल में जलाया जाए 
सूरज से जरूरी नहीं कि पूछा जाए!"
.....

आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर / आराधना प्रसाद
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - भाग लेनेवाले जिन शायरों की पंक्तियाँ या चित्र शामिल नहीं हो पाये हैं कृपया ऊपर दिये गए ईमेल से भेजिए.
 









    




Sunday 14 July 2019

सुधरे हमारे देश के हालात किस तरह / बाबा बैद्यनाथ झा की ग़ज़ल और कुंडलियाँ

  ग़ज़ल
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ग़ज़लों में भर  सकूँ कहो जज़्बात किस तरह  
सुधरे   हमारे   देश   के  हालात  किस  तरह

उजड़े  ही  जा  रहे  यहाँ  जंगल  पहाड़  भी 
ले साँस  जब हवा नहीं  नवजात किस तरह 

बेटी  हुई  जवान  अब  है   वह  पढ़ी-लिखी 
लाए   ग़रीब  बाप   है  बारात  किस  तरह 

'बाबा'  हमारे  मंच  पर  शायर  कमाल के
ग़ज़लों की हो रही यहाँ बरसात किस तरह
...


              वृक्षारोपण  पर कुण्डलियाँ               



   1
                
भक्षक  बनते   जा  रहे, जंगल  के  हम आप।
कुपित  आज  पर्यावरण, देता  है  अभिशाप।।

देता   है   अभिशाप,  उजड़ते  जाते  जंगल।
प्राणवायु   हो   लुप्त,  कहें   कैसे  हो  मंगल।।

नित्य   लगाएँ  पेड़,  बनें  हम   वन-संरक्षक।
या कर देगी नाश, प्रकृति ही बनकर भक्षक।।


2
                    
होती  ही   है  जा  रही, हरियाली  अब  लुप्त।
मानवीय     संवेदना,   क्रमशः   होती   सुप्त।।

क्रमशः  होती  सुप्त,  नित्य   हम  पेड़ लगाएँ।
हरे   भरे   वन  बाग,  सजाकर  स्वर्ग  बसाएँ।।

करे  प्रकृति तब नाश, धैर्य जब अपना खोती।
कभी अकारण क्रुद्ध,नहीं कथमपि वह होती।।
...

कवि- बाबा वैद्यनाथ झा 
कवि का ईमेल आईडी - jhababa55@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbejodindia@yahoo.com




Friday 12 July 2019

खूब मुझको अब बजाएँ झुनझुना है ज़िन्दगी / कैलाश झा किंकर की दो ग़ज़लें

ग़ज़ल-1

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खूब मुझको अब बजाएँ झुनझुना है ज़िन्दगी
मुफलिसों की चारसू संवेदना है ज़िन्दगी 

नौनिहालों के लिए भी तुम नहीं गंभीर हो
लग रहा चारों तरफ उत्तेजना है ज़िन्दगी 

धन-कुबेरों पर टिकी हैं आज भी उनकी नज़र
कामगारो ! देख अन्धेरा घना है ज़िन्दगी 

आस की खेती हुई पर हर तरफ उल्टा असर
लूटने वालों से करती सामना है ज़िन्दगी 

था जहाँ संतोष धन उसकी जगह ले ली हवस
स्वार्थ में अन्धी बनी दुष्कामना है ज़िन्दगी 

हो रही घटना मुसलसल शर्म से झुकता है सिर
सिरफिरों की सोच में बस वासना है ज़िन्दगी ।
.....

ग़ज़ल-2

खुशी झूमती आशियाँ तक न आयी
कभी बात मेरी जुबां तक न आयी ।

बहन लौटकर जा चुकी माँ से मिल कर
बगल में हूँ फिर भी यहाँ तक न आयी।

पुकारा था उसने मदद को यकीनन
सदा ही मेरे कारवां तक न आयी।

दिलों में वही एक रहता है हरदम
कभी शान जिसकी गुमां तक न आयी।

अदब की ये दुनिया है जन्नत की दुनिया
न कहना ग़ज़ल कह-कशाँ तक न आयी ।
....
कवि - कैलाश झा किंकर 
कवि का ईमेल आईडी - kailashjhakinkar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com