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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday 28 July 2019

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद एवं स्टे.रा.भा.का.स. के द्वारा कवि गोष्ठी 27.7.2019 को सम्पन्न

तेरे मदिर नयन में / सावन प्रतिपल रोमानी

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सावन की रिमझिम यूँ तो सुहावनी होती है लेकिन इस बार बिहार में झमाझम बारिश ने कहर ढा दिया है। कितने लोग बाढ़ में बह गए।  वैसे भी हर बार जब भी यह सावन आता है तो प्यास बुझाने की बजाय और बढ़ा दिया करता है दिलों में।

सावन के रंग में रंगी और रंग-बिरंगे चुड़ियों की चमक लिए, मेहंदी का बूटा लगी हथेलियों का सौंदर्य लिए श्रृंगारिक कविताएं खूब पसंद की गई तो दूसरी तरफ सावन में प्राकृतिक अपदाएं और शहर में तबाह हो रही जिंदगी की चिंता को रेखांकित करती हुई सावन की गीत-गजलों ने सावन का भरपूर स्वागत किया। मौका था-साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् एवं स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सावन काव्योत्सव का। 

सावन काव्योत्सव का संचालन करते हुए, कवि-कथाकार सिद्धेश्वर ने सावन के सौंदर्य का वर्णन अपनी कविता में किया- 
"घुटने पर सिर रखकर / किसी की प्रतीक्षा  में बनी विरहिणी 
अच्छी लगती हो तुम 
आंसू की धार नहीं किसी की प्रेम वर्षा में 
भींगी हुई लगती हो तुम!" 

मधुर गीतों की रचना करनेवाले मधुरेश नारायण ने सुरीले कंठ से सावनी गीत सुनाकर माहौल को रसमय बना दिया -
"देखो बरसात की आई फुहार
ज्यूं रिमझिम करती आई बहार!"

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ शायर घनश्याम ने सावन के रौद्र रूप को दिखाया -
"खूब बरसा है कहर बरसात में/ बह गए आबाद घर बरसात में! 
गांव - खेत, के चेहरे खिले/ किंतु मुरझाए शहर बरसात में!" 

दूसरी तरफ सावन में श्रृंगार खोजती नजर आयीं युवा कवयित्री कुमारी स्मृति-
"सावन को, पायल में, बिछा सावन 

नवोदित कवि सम्राट समीर का सावनपन देखिए - 
"मन-तरंग है खेल-मेल में/  रिश्तों की गुंजन पावन है 
भीग गई सपनों की चुनर / मेरी आँखों में  सावन है ।" 

युवा कवि कुंदन आनंद ने ऋतु-रानी का स्वागत अपने अनोखे अंदाज़ में किया -
"तुम आयी हो /आनंदित है भू-मंडल यह सारा
स्वागत है ऋतु-रानी तुम्हारा
प्यासी खग-वृंदों की टोली
भटक रही थी सदन-सदन
प्यासे होठ थे सब खेतों के
और प्यासा था हर कानन! "

वरिष्ठ शायर शुभचंद्र सिन्हा ने विरह के आँगन में चरण रखे -"
साँझ भये विरह के आँगन मे
तेरी यादों के जब  चरण पड़े
अश्रुओं  के नवल पुष्पहार ले 
 दौड़े  हाय अभागे नयन भरे। "

मनोज उपाध्याय ने बादल से वर्षा की गुहार करते दिखे -
"सावन के बादल तू आ जा, 
रिमझिम रिमझिम वर्षा ला!" 

प्रभात कुमार धवन ने बूंदों के अक्षुण्ण अस्तित्व का दर्शन कराया- 
नन्हीं बूंद नहीं डरती तपकर, 
अपने अस्तित्व खोने में! 

डॉ. एम के मधु ने सावन को सियासत से जोड़ दिया -
"सियासत का सावन आज घनघोर है, 
जंगल में देखो नाचा मोर है। "  

तथा अमितेश को सावन के झूले याद आ रहे थे-
"पेड़ों पर झूले, सावन की आई बहार 
ऐसी और भी कविताओं ने सावन काव्योत्सव को रंगीन और यादगार बना दिया। 

काव्योत्सव की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि, "कुदरत से हम कटते चले गए! उसका दोहन करते चले गए। इस कारण ही सावन की स्थितियां भी हमारे अनुकूल नहीं रही। उन्होंने इस तरह की  गंभीर गोष्ठियों के सफल आयोजन के लिए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि -" बड़ी-बड़ी गोष्ठी और सम्मेलनों में, जो बात नहीं बनती, इस तरह की  छोटी-छोटी गोष्ठियों में पूरी होती है।

 उन्होंने सावन के गीत सुनाए- 
"तेरे मदिर नयन में / सावन प्रतिपल रोमानी 
इधर रात कटती आंखों में / टपक रही छानी! "

बाहर में पानी की बूंदा-बांदी और पुस्तकालय कक्ष के अंदर में शब्दों की बरसात होती रही बिल्कुल बेखटक।  अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया मो. नसीम अख्तर ने और इस तरह से सौहार्द की अभिवृद्धि करता हुआ यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ
.....

आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
लेखक का ईमेल आईडी- :sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com













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