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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday, 18 July 2019

उर्दू निदेशालय, बिहार सरकार द्वारा महफ़िल- ए-गंग-व-जमन" मुशायरा 16.7.2019 को पटना में सम्पन्न

जब कोई दीया दिल में जलाया जाय / सूरज से जरूरी नहीं कि पूछा जाय

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उर्दू निदेशालय (बिहार सरकार) के तत्वावधान में अभिलेखागार भवन, पटना में आयोजित "महफ़िल-ए-गंग-व-जमन" मुशायरा में, उर्दू - हिंदी के कई प्रतिनिधि शायरों ने, एक से बढ़कर एक शायरी से  समारोह को यादगार बना दिया। इस समारोह में "उर्दू-हिन्दी में भाषाई समरूपता" विषय पर सेमिनार का भी जबरदस्त समायोजन हुआ। 

कलाम शाफिफ ने कहा-
"प्यार का काम भी नफरत से लिया जाता है
अमन के नाम पर क्या-क्या न किया जाता है!
हम कलम वालों को कमजोर न समझों
क्योकि कलम का काम तीरों से भी लिया जाता है। "

 पूर्णिया की मंजुला उपाध्याय के गजल की बानगी देखिए -
"ऊपर-ऊपर खार समंदर होता है
भीतर भीतर मीठा-सा जल होता है!"

कासिम रजा़ ने राष्ट्रीय भावना से माहौल को ओर-प्रोत कर किया -  
"ये अपना वतन है अपना वतन 
हर रंग के फूलों का चमन ! 
खुसरो का गीत भी अपना है
भक्ति संगीत भी अपना है
दिल मोहता है मीरा का भजन!"

यशस्वी शायर नीलांशु रंजन की कविता की रवानगी भी खूब रही -
"सच तो ये है / मेरे साथ, 
फूल भी है / तुम्हारे इंतजार में!"

 कमला प्रसाद का कलाम -
"भाषा बहता हुआ  पानी  है
यह बहती हुई हवा भी है।"

सीतामढ़ी के शायर असरफ का कलाम देखिए -
"नापाक इरादों से हमें डरने की नहीं बात
 नफरत के सियासत को न हम हवा देंगे।

आराधना प्रसाद ने सरगमी आवाज में गजल  की गायिकी की-
"मैं साहिल पे बैठी थी तन्हा तमाशा
मेरी प्यास थी और दरिया तमाशा
सरे राह दामन हवा में उड़ाकर
मुझे तुमने कैसा बनाया तमाशा।"

"भाषा तोड़ने की नहीं, जोड़ने का काम करती है।"
 साहित्य का आकलन सिर्फ़ समीक्षक ही नहीं, पाठक भी करते हैं। 
पाठक को कमजोर नहीं समझना चाहिए।
" मैं बाजार जाता हूं,!" 
- इसे आप उर्दू में क्या कहेंगे? 'बाजार' को आप 'दुकान' कह सकते हैं, किन्तु "जाता हूं" को आप उर्दू में क्या कहेंगे? हिंदी उर्दू की जुबान को जब हम भाषा से जोड़ते हैं, तो 'मिठास' आती है, दोनों सगी बहनें हैं। किंतु जब इसे 'मजहब' से जोड़ते हैं, तब दुराव पैदा होता है।

यह कहना  गलत है कि 'उर्दू' में जो रवानगी है, वह हिंदी' में नहीं।'
" हिन्दी-उर्दू" के बीच 'समरूपता' की नहीं, 'समरसता' की बात होनी चाहिए।
"हिन्दी -उर्दू" में,' संज्ञा 'तो आती है, जाती है, किंतु' क्रिया',' सर्वनाम',' विशेषण' तो दोनों भाषाओं में एक है।"

"कोई बात तो ऐसी है 
कि हमारी हस्ती नहीं मिलती!" 
वह बात है, दोनों भाषाओं में समरूपता की। मजहब जानने वाले कहा करते हैं कि संस्कृत हिंदुओं और फारसी मुसलमानों की भाषा है। सच तो यह है कि धर्म की कोई भाषा नहीं होती। ये बातें भाषा विद्वान समझते हैं।

इस सभागार में बैठे विद्वान और श्रोताओं  जब यहां पर "उर्दू-हिन्दी भाषाई समरूपता" की बात कर रहे हैं, उसी समय न जाने कितने लोग सड़क से लेकर ऑफिस तक गलत कामों में लगे होंगे। भारतीय संविधान की नजर में  हिंदी और उर्दू दो अलग अलग भाषाएं हैं। उर्दूभाषी  वालों ने यह भी स्वीकार किया कि उर्दू बिहार में द्वितीय राजभाषा के रूप में होते हुए भी उर्दू बोलने वालों की कमी हो रही है, जो आज  छठे क्रम से सातवे क्रम में आ गई है।

"दोनों कौमों के बीच इतना जहर घुल चुका है कि दोनों कौम या भाषा एक नहीं हो सकती।" ऐसा अंग्रेज सरकार समझा करती थी। किंतु सदियों की सोच से आगे आज हमारी सोच हैं। बावजूद " भाषा को तहजीब और धर्म से बहुत अलग हम नहीं कर सकते! - ऐसा विचार रखनेवाले उर्दूभाषियों की भी आज कमी नहीं है!"

सब कुछ आप बांट सकते हैं, किंतु नसीब को नहीं बांट सकते। पैसा, जमीन नहीं है तो उसे हम पैसा और जमीन दे रहे हैं। आप भाषा और व्याकरण में ज्यादा उंगली न कीजिए। हमारे पास भाषा की दरिद्रता है। इसे हम क्यों नहीं बांटा करते हैं? मां की आंचल में हमने जिस. भाषा को पढ़ा और जाना, उसे उपेक्षित करना, हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है?! भाषा समरूपता की बात करना और इस चर्चा में हिस्सा लेना, ये दोनों, एक राष्ट्रीय कार्य है।

 मशहूर कवि प्रेमकिरण ने कहा- 
"नफरत ही रह गई है मोहब्बत चली गई 
दो भाईयों के बीच की नफरत न पूछिए
घर की बात थी, अदालत चली गई!"

अरुण कुमार आर्या की गजल-
"गीता का मर्म कुरान का फरमान है दिल में! "
"हिंदी-उर्दू तो है सगी बहनें
इसे मजहब से न जोड़ा जाए!"

संजय कुमार कुंदन"ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की-
"गर्म हवा बाहर से आई आकर है कमरे में बंद
दीवारों के खोल में घुसकर है गोशे-गोशे में बंद।"

"अंधेरे में साए भी साथ छोड़ देता है। 
दुखों की भीड मे हंसना - हंसाना भूल जाती है
गरीबी मुफलिसी में, मुस्कुराना भूल जाती है" - असद सिद्दीकी की ये गजल थी।

एम के बजाज की गंगा-यमुनी मिजाज की गजल सुनाया -
"हिंद की शान है उर्दू / इश्क की जुबां है उर्दू! 
लब चूमने को चाहे / वो जुबां है उर्दू!!"

वरिष्ठ कवयित्री शांति जैन नेप्यार की परिभाषा यों दी-
"प्यार दिन का उजाला नहीं है
प्यार तो रात की चांदनी है 
प्यार है आंसुओं की कहानी और 
"अपना साया भी अजनबी लगे
प्यार से मेरा नाम लेना तुम!"

वरिष्ठ शायर नौसाद औरंगाबादी का तेवर देखिए -
"ये किस शमां कि तहजीब है कि
 जुंबा पर राम-राम न हो, 
दुआ सलाम न हो।" 
"जब कोई  दीया, दिल में जलाया जाए 
सूरज से जरूरी नहीं कि पूछा जाए!"
.....

आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर / आराधना प्रसाद
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - भाग लेनेवाले जिन शायरों की पंक्तियाँ या चित्र शामिल नहीं हो पाये हैं कृपया ऊपर दिये गए ईमेल से भेजिए.
 









    




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