सुपौल और सिलचर के साहोत्यकारों ने भी भाग किया
"गुलशन गुलशन खार दिखाई देता है
मौसम कुछ बीमार दिखाई देता है"
मौसम बरसात का यूँ तो बहुत सुहावना होता है लेकिन अक्सर कवियों को गुलशन की हरियाली में खार भी नजर आने लगते हैं. इस बहुरंगी मौसम में कवियों की रचनाएँ भी विविध स्वरूप लेकर बाहर आती हैं.
दिनांक 4.7.2019 को साहित्य परिक्रमा तथा वरिष्ठ नागरिक साहित्यकार मंच,पटना के संयुक्त तत्वावधान में मधुरेश नारायण जी के गोबिंद इंक्लैव अपार्टमेंट, चांदमारी रोड, पटना स्थित आवास पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया.
गज़लकार प्रेम किरण ने अपने जोशीले अंदाज में इन्सान की नाकामियों पर सवाल उठाया-
कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या
हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या?
कोई मैंना है न बुलबुल शाख पर
बागबां भी हो गए सैय्याद क्या?
मधुरेश शरण ने शाम को अपने इष्ट को लौटाने को कहा -
जाओ कहीं दूर मगर लौट के आ जाओ.
डॉ. किशोर सिन्हा ने हसरतों का नई तस्वीर खींची -
हसरतें हरी घास बन कर उगती है आस पास.
घनश्याम ने गुलशन में आजकल सिर्फ ख़ार ही ख़ार दिख रहे हैं -
गुलशन गुलशन खार दिखाई देता है
मौसम कुछ बीमार दिखाई देता है
जाने कैसी हवा चली है जहरीली
जीना अब दुश्वार दिखाई देता है
आगजनी, पथराव, धमाके, खूंरेजी
आतंकित घर-बार दिखाई देता है
विध्वंशक हो गई समय की गतिविधियाँ
संकट में संसार दिखाई देता है.
हास्य कवि विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने दाँव-पेंच की बात की -
दाँव पेंच खूब जानते हो
रात दिन डींग़े हाँकते हो.
सिलचर से पधारे चितरंजन भारती ने पक्षधर होने पर भी लाभ न पाने का दृश्य रखा -
हम साधारण जन
पक्षधर होकर भी क्या मिला?
सुपौल से आये हुए योगेन्द्र हीरा ले अपने मकान की नींव कहाँ पर डालिए, देखिए -
मेरी भी कल्पना थी मकान की
लेकिन नींव ली भावना की कब्र पर.
कुशल संचालन कर रहे सिद्धेश्वर ने खुद से सवाल किया -
मंदिर हो, मस्जिद हो, गुरुद्वारा ऐ सिद्धेश
तूने कहीं भी सर को झुकाया नहीं है क्या?
हरेन्द्र सिन्हा ने बरसात में वसंत की बहार ला दी -
तुम क्या मिले हर पल मेरा जीवन्त हो गया
देखो सनम मौसम हसीं वसन्त हो गया
कोई शकुन्तला तो कोई दुष्यंत हो गया.
शायर शुभचन्द्र सिन्हा पर सितम ही सितम हो रहे हैं -
इक तेरे ख्यालों के सितम हैं बेशुमार
उस पर तेरे न आने के बहाने हैं बहुत.
इनके अतिरिक्त विभारानी श्रीवास्तव, लता प्रासर और शशिकान्त श्रीवास्तव की कविताएँ भी पसंद की गईं.
अंत में गोष्ठी के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी ने पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी करने के बाद अपनी कविता में सफलता पाकर जड़ को भूल जानेवालों को याद किया -
कहाँ गए वो लोग / वो बातें उजालों से भरी
कामयाब जो हुए / उड़नछू होते चले गए.
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
लेखक का ईमेल आईडी - sidheshwarpoet.arat@gmail.com
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपके सहयोग हेतु हार्दिक आभार अनीता जी। जरूर काल देखेंगे आपके ब्लॉग को।
Deleteसार्थक भूमिका सहित पूरी गोष्ठी की बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteसराहना हेतु हार्दिक आभार.
Deleteसार्थक भूमिका सहित पूरी गोष्ठी की बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteबेहद सुंदर रिपोर्टिंग। साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद महोदय.
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