**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Friday 12 July 2019

मुंशी प्रेमचंद लिखित "दिल की रानी" और रंगमार्च द्वारा उसका 27.6.2019 को पटना में मंचन

प्रेम कहानी के बहाने धर्मांधता का पर्दाफाश
तैमूल लंग और हबीबा बानो

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)


धर्म कोई भी अच्छा ही होता है लेकिन जब उसकी आड़ लेकर हत्या और आतंक जैसे खूंखार अत्याचारों को अंजाम दिया जाता है तो इसमें धर्म की नहीं बल्कि उसका गलत इस्तेमाल करनेवालों का दोष होता है। ऐसे  भटके हुए लोगों को धर्म का सच्चा स्वरूप दिखा कर सुधारा जा सकता है।

बिहार आर्ट थियेटर द्वारा 58वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित पाँच दिवसीय नाट्योत्सव के तीसरे दिन प्रेमचंद की कहानी ‘दिल की रानी’ का मंचन रंग मार्च, पटना के कलाकारों ने मृत्युंजय शर्मा के निर्देशन में किया। यह मंचन 27.6.2019 को कालिदास रंगालय, पटना में हुआ

चौदहवीं सदी का ताकतवर और खूंखार शासक तैमूर लंग अपने जीवन के अंतिम दिनों में कुस्तुनतुनिया के शासक खलीफ़ा वायजीद की सेना को अंकारा के प्रसिद्ध युद्ध में परास्त कर चुका है और पूरी सेना उसके सामने घूटनों पर बंधक है। जन्म से तुर्क तैमूर के पिता ने इस्लाम कुबूल किया था, इसलिए वो इस्लाम का कट्टर अनुयायी है। उसके सामने हारी हुई सेना का सेनापति यजदानी बेडि़यों में जकड़ा खड़ा है। उसी जमात में यजदानी का जवान बेटा जो कि वास्तव में सैन्य भेष में उसकी बेटी हबीबा बानो है, भी शामिल है। अचानक वो तैमूर को ललकारते हुये इस्लाम की सच्ची नसीहत देती है। खुद को कट्टर मुसलमान, विश्व विजेता और कुरान-ए-पाक को कंठस्थ रखने वाला तैमूर उसकी हिम्मत से इतना प्रभावित होता है कि उसे अपने शासन में बज़ीर का पद पेश करता है और हारी हुई पूरी सेना को माफ़ कर देता है। 

इधर हबीबा की माँ और यजदानी इस बात को लेकर बेहद चिंतित होते हैं कि इतने खूंखार शासक के साथ उसकी जवान बेटी कैसे रहेगी? लेकिन हबीबा इस चुनौती को इस जिम्मेदारी के साथ कबूल करती है कि खुदा ने इस्लाम की नसीहतों से भटक कर लूट और आतंक की राह पर चलने वाले एक बादशाह को अगर वो सही रास्ते पर लाती है, तो यह ईमान और इंसानियत पर बहुत बड़ा उपकार होगा। इसके बाद तैमूर हबीबा की नसीहतों, इस्लाम की इल्म का इतना मुरीद हो जाता है कि उसकी बात आंख-मूंद कर मानता है।

 एक बार तैमूर द्वारा पूर्व में अन्य धर्म के लोगों, जिसे वो काफि़र कहता था, के खिलाफ़ लिये गये कई फ़ैसले के खिलाफ़ इंसानियत के पक्ष में हबीबा खड़ी हो जाती है और बगावत कर देती है। तैमूर इससे आहत होता है, परंतु वो हबीबा के इस्लाम संगत तर्को और कुरान में छिपे मानवता के संदेश का मुरीद होता है। और वो गैर धर्मो के सारे अधिकारों, आजादी और विभिन्न लगाये गये करों से मुक्त करने का आदेश देता है। खूंखार मंगोल शासक चंगेज खाँ और विश्व विजेता सिकंदर को अपना आदर्श मानने वाले तैमूर के अन्तर्मन में अपने द्वारा किये गये अत्याचारों, हत्याओं पर पश्चाताप चल रहा होता है और ऐन वक्त पर हबीबा के इस्लाम और कुरान की आयतों में तर्ज किये गये तर्क उसे एक नई राह दिखाती है। दरअसल, पहली नजर में हीं तैमूर, हबीबा की आंखों में झांककर यह जान चुका था कि वो नवजवान एक नेक दिल लड़की है और उसे अपने दिल की रानी बना चुका था। बाद में यही हबीबा बानो इतिहास के पन्नों में तैमूर की बीबी ‘बेगम हमीदा’ के नाम से मशहूर हुई।

प्रेमचंद की कहानी के बहाने धर्म की आड़ में आतंक और लूट की वैश्विक स्तर पर चल रही अंधाधुंध घटनाओं को चित्रित करने का यह प्रयास था। यह नाटक धर्मांधता में आतंक का प्रतीक 14वीं सदी का खूंखार शासक तैमूर के बहाने विभिन्न प्रतीको, प्रासंगिक घटनाक्रम और समकालीन कथ्य से आज आतंकवाद से बदहाल मानवता को प्रेम एवं शांति का संदेश देने की कोशिश करती है। "रंग-मार्च" के अनुभवी कलाकारों के साथ एक अच्छी प्रस्तुति का होना लाज़मी था। 

मंच पर अभिनेता थे तैमूर - राजन कुमार सिंह, हबीबा - नूपुर चक्रवर्ती, यजदानी (हबीबा के पिता) - सोनू कुमार,
नगमा (हबीबा की माँ) - सरिता कुमारी, बज़ीर - समीर रंजन और अन्य भूमिकाओं में थे पंकज सिंह, रवि पाण्डेय, गौतम कुमार, जिशान साबिर, आशीष सिंह, रौनक राज एवं सृष्टि शर्मा

नेपथ्य के कलाकार थे, प्रकाश परिकल्पना - उपेन्द्र कुमार, मंच परिकल्पना - अनुप्रिया, परिधान एवं वस्त्र - सरिता कुमारी,  रूप-सज्जा - नूपुर चक्रवर्ती,  प्रस्तुति सहयोग- प्रग्यांशु शेखर, भृगृरिषी कुमार एवं राज पटेल, सगीत संयोजन / संचालन- रौशन कुमार केशरी, प्रस्तुति नियंत्रक- दिपांकर शर्मा, प्रस्तुति प्रभारी - रविचन्द्र पासबाँ, प्रेक्षागृह प्रभारी -ज्ञान पंडित, विक्की राजवीर, अभिषेक आनंद।  कहानी  मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित थी और नाट्य-रूपांतरण एवं निर्देशन किया था मृत्युंजय शर्मा  ने

प्रेमचंद रचित यह कहानी जिसका सुंदर मंचन हुआ, की प्रासंगिकता आज किसी एक राज्य या देश में नहीं बल्कि पूरे विश्व में हैं जहाँ धर्म के नाम पर आतंक अपना नंगा नाच दिखा रहा है।
............

आलेख - बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
छायाचित्र - "नाटक बाला फोटो" से साभार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
















No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.