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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday 13 June 2017

Preface of Sensuousness, Sexuality & Salvation - Dr. Sujeet Verma with Maithili and Hindi translation (दैहिक प्रेम, कामुकता और मोक्ष की भूमिका - डॉ. सुजीत वर्मा/ मैथिली और हिंदी अनुवाद के साथ)

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Sex in the context of western and Indian literature – Dr. Sujit Verma
सेक्स और साहित्य- पाश्चात्य और  भारतीय  संदर्भ में-  डॉ. सुजीत वर्मा
(मैथिली अनुवाद को अंग्रेजी पैरा के ठीक नीचे और हिन्दी अनुवाद को अंग्रेजी-मैथिली टेक्स्ट के समापन पर एक साथ दिया गया है.)
      Among the basic human urges 'sex' plays important role in human life. This prominent instinct has always influenced society since the primitive era and this element has been briefly discussed in different books. So, being the student of literature I have been also attracted towards it and also perceived it as the systematic plan of nature for creation. But after meeting Prof. U.R., Ananthmurthy a few years back when he was in Bodh Gaya, Bihar, I became more interested on this aspect. Before this I has already read his novel 'Sons and Lovers' which strongly influenced me that time. Those days I had also read 'Lady Chatterley's Lover'. 

      मूलभूत मानवीय लालसा सभ मे काम-वासना सेहो महत्वपूर्ण भूमिका निभावैत छैक. ई महत्वपूर्ण प्रवृति मानव समाज केँ आदि कालहि सँ प्रभावित करि रहल अछि आर अहि तत्वक चर्चा विभिन्न लेखकगण विभिन्न पोथी में संक्षेप मे करने छथि. से, साहित्यक विद्यार्थी होयबाक कारणे हमहुँ एकरा सँ आकर्षित भेल छलहुँ आर एकरा प्रकृतिक रचनाक लेल एक टा व्यवस्थित योजना के रूप में समझने छलहूँ. मुदा किछु वर्ष पूर्व प्रो.यू.आर. अनंतमूर्ति सँ बोधगया मे भेंट करलाक बाद हम अइ विषय सँ और बेसी आकर्षित भs गेलहुँ. एकरा सँ पहिने हम हुनकर रचित पुस्तक 'सन्स एंड लवर्स' पढ़ि लेने छ्लहुँ जे हमरा बड़ प्रभावित करने छल. ओहि दिने हम 'लेडी चैटर्लीज लवर्स' सेहो पढ़ने रही.
    
     I found that both writers have some similarities and some differences on 'Sex as basic human Urge'. So this study aims at showing D.H.Lawrence and Prof. U.R. Ananthmurthy in the perspective of 'sex' as basic human urge. Both the writers have very minute vision and deep sensibility. They have considered very seriously on the personal relation. They have challenged the age old tradition and values which have eclipsed the men's freedom and liberty. Both possess significant position in the realm of fiction writing for their unique art and craftsmanship. 

     हम ई अनुभव करलहुँ जे दूनू लेखक केँ 'काम-वासना मनुष्यक मूलभूत आवश्यकता'क बिन्दु पर किछु समानता आ किछु असमानता छन्हि. तें ई अध्ध्ययन डी. एच.लॉरेंस एवम प्रो.यू.आर.अनंतमूर्तिक दृष्टि सँ काम-वासना केँ मनुष्यक मूलभूत आवश्यक्ता कें रूप में देखबाक उद्देश्य रखैत अछि. दूनू लेखकक दृष्टि अत्यंत तीक्ष्ण एवम सम्वेदनशीलता बड़ गहींर छन्हि. दूनू गोटे मानवीय सम्बन्ध कें  बड़ गम्भीरता सँ विचार कयलनि छथि. दूनू अतीतकाल सँ स्थापित परम्परा आ मूल्य केँ चुनौती देलैन्हि अछि जे कि मानवाक स्वतंत्रता आर अधिकार के ग्रहण लगबैत छैक. दूनू कें कथा-उपन्यास लेखन में हुनकर अप्रतिम कला-कौशल आ शिल्पक लेल महत्वपूर्ण स्थान छन्हि.

     After going through their fictions, it came into light that D.H. Lawrence and U.R. Ananthmurthy both refute social restriction in social relationship, they advocate to protect self identify and try to demolish social ethics and barriers that limit to enjoy this primitive instinct. Lawrence believes in blood more than the intellect. But due to rising intellectualization, reason is becoming more and more important. This has, in turn, destroyed man's spontaneous, instinctive response to life. In the course of his life time he had for long been a very strongly obsessed by his relationship with under-sexed women such as Jessie chambers and Helen Corke. And this obsession turned him to very painful experiences. Such experiences made indelible imprint on Lawrence's mind that has culminated in his last novel 'Lady Chatterley's Lover'. By writing such novel he introduced the sexual obsession in English novel.

     हुनकर उपन्यास कें पढ़बाक पश्चात ई बूझि पड़ैत अछि जे डी.एच. लॉरेंस आ यू.आर.अनंतमूर्ति दूनू सामाजिक सम्बंध मे सामाजिक प्रतिबंध के अस्वीकार करैत छथि. ओ अपन अस्मिताक रक्षा करबाक समर्थन करैत छथि जे सामाजिक सदाचार आ प्रतिबंध के खंडन करैत छै जाहि सँ आदिकालीन मौलिक प्रवृति कें आनंद-भोग मे कोनो बाधा नहिं उत्पन्न भs सकए. लॉरेंस बौद्धिकता सँ बेसी रक्त कें महत्व दैत छथि मुदा बढ़ि रहल बौद्धिकताक प्रभाव मे आबि औचित्यीकरण बेसी सँ बेसी महत्वपूर्ण भेल गेल  अछि. अहि कारणे जीवनक प्रति मानवाक प्रवृतिजन्य तात्कालिक प्रतिक्रिया धीरे-धीरे नष्ट भेल गेल अछि. अपन सम्पूर्ण जीवनकाल मे ओ बड़ पघि कालावधिक लेल अत्यंत न्यून कामाचार वाली जेना जे.सी.चैम्बर्स आ हेलेन कोर्क जकाँ महिलाक संग अपन सम्बंधक पाछू पड़ल रहला आ ताहि कारणें हुनका बहुत कष्टकर अनुभव सहs पड़लैन. ओहि तरहक अनुभव लॉरेंसक मस्तिष्क पर अमिट प्रभाव कयलक जे कि ओकर उपन्यास 'लेडी चैटरलीज लवर्स' मे अभिव्यक्त भेल छैक. अहि तरहक उपन्यास लिख कs ओ अंग्रेजी उपन्यास मे कामाचारक अभिमुखकताक प्रवेश दयलन्हि. 


   By going through his novels I found his next obsession was mother fixation that exhibits in 'Sons and Lovers'. Lawrence lived in the age of extreme industrialization and consumerism, so he ran his pen on its ugliness and sordidness. He strongly revolted it in utter disgust from such unpleasant sights as we notice in Nottinghamshire and neighbouring places. Another notable example of his writing is 'depiction of autobiographical element' in the context of sex. This element goes a long way in our understanding and appreciating his major obsession as well as philosophy of life.

   हुनकर उपन्यास पढ़बाक क्रम मे हम पयलहुँ जे हुनकर दोसर अत्यानुराग मातृ-स्थिरीकरण छैक जे कि 'संस एंड लवर्स' मे देखाइत छैक. लॉरेन्सक काल अत्यधिक औद्योगीकरणक आ उपभोक्तावादक काल छलै तें ओ एकर कुरूपता आ संकीर्णता पर अपन कलम चलौलथि. ओ चरम विरक्ति मे आबि सशक्त रूप सँ ओकरा प्रति विद्रोह कयलनि अछि जे कि नौटिंघमशायर आ आस-पासक क्षेत्रक दृश्य केँ रूप मे प्रकट होयत अछि. हुनकर लेखन मे दोसर ध्यातव्य तथ्य छैक काम-वासनाक बिंदु पर आत्मकथ्यात्मक तत्वक प्रधानता. ई तत्व हुनकर विशाल अत्यानुराग आ जीवन-दर्शन केँ समझै मे बड़ सहायक छैक.


   So far as the Gyanpith Awardee Kannada novelist, Prof. U.R.Ananthmurthy is concerned he has adopted very sharp and clean technique in presenting his theme in his novels. His character Naranappa in his novel 'Samskara' presents a libertine figure. Libertine in term of rejecting all traditional customs in the contrast of present. To enjoy worldly pleasures or Urges by protesting social ethics is the epitome of his novel. 'Urges' offers temptation. That's why Praneshacharya, a conservative and rigid in practicing his religious performances traps in the web of sexual pleasure too. Ananthmurthy by his characters demolishes the old age customs and practices in society. He is in favour of freedom of individual dignity. Transmutation in personality from ascetic to the level of voluptuouness is reflecting in Praneshacharya's character. Among his novel like Samsakara, Awasthe, Bharatipur and his collection of storeies 'Ghatashradha' he is able to depict and explanation in human emotions. His 'Bhartipur' is a fictions village like Raja Rao's Kanathapura and R.K. Narayan's Malagudi . The protagonist Jagannath is reflecting the alter ego of the writer. 'Awasthe' shows the conflict between individual as well as society and focuses on the different aspects of man's life. Krishnappa, the central figure of this novel, is the epitome of change of man's personality. Psychologically this novel appeals more as he remembers his past and he recounts his sexual life which has been presented in flashback technique.

    जतs तक ज्ञानपीठ पुरस्कारप्राप्त कन्नड़ उपन्यासकार डॉ. यू.आर. अनंतमूर्तिक बात छैक तs ओ अपन उपन्यास मे विषयवस्तु केँ प्रस्तुत करबाक लेल बड़ तीक्ष्ण आ स्वच्छ तकनीकक उपयोग कयलनि अछि. हुनकर उपन्यास 'संस्कार' मे एक टा पात्र नारनप्पा अनैतिक गुणवला छैक. अनैतिक होयबा सँ एतs बोध अहि बात सँ छै जे ओ ओइ सभ पुरान परम्पराक खण्डन करैत अछि जेकरा वर्तमान संदर्भ मे कोनो आवश्यकता नहि छैक.


   Ananthmurthy as a novelist employs symbols, mythological allusions and references from Hindu mythology to intensify and heighten the emotional impact of the narrative. In all his characters the focus has been given on the theme of 'quest'. He raises the question of sin and its consequences. The fusion of realism and romance sounds much in his novels. Lawrence and Ananthmurthy both have chosen the theme of sex in their social and cultural background. They write on sex with robust boldness. 

    अनंतमूर्ति उपन्यासकारक रूप मे कथ्य केँ भावनात्मक प्रभाव केँ बढ़ेबाक आ तीक्ष्ण बनेबाक लेल प्रतीक, मिथकीय संकेत एवम् हिन्दु पौराणिक उद्धरणक उपयोग कयलन्हि अछि. हुनकर सभ पात्र मे अन्वेषणक बिषय पर ध्यान केन्द्रित कयल गेल अछि. ओ पाप आ ओकर परिणामक विषय पर प्रश्न उठौने छथि. हुनकर उपन्यास मे यथार्थ आ कल्पनाक विलय देखाइत छैक. ओ काम-वासनाक विषय पर जोरगर साहसक संग लिखलन्हि अछि.


    In the course of writing of this book I got the blessings of my loving mother Smt. Baby Verma and Co-operation of my wife Mrs. Archana and children Aayush and Soumya. I also acknowledge my deepest gratitude to Dr. Subodh Kr. Jha, Dr. Gyandev Tripathi and Mrs. Mamta Mehrotra. Lastly thanks to Mrs. Priya Rani for designing the cover page of this book.

    अहि पुस्तक केँ रचना मे हम अपन माता श्रीमती बेबी वर्माक आशीष पयलहुँ अछि आ हमर पत्नी  श्रीमती अर्चना तथा बच्चा आयुश एवम् सौम्याक सहयोग भेटल अछि. हम अपन हृदयतल सँ डॉ. सुबोध कु. झा, डॉ. ज्ञानेश त्रिपाठी एवम् श्रीमती ममता मेहरोत्राक आभार प्रकट करैत छी. अंत मे श्रीमती प्रिया रानी केँ पुस्तकक मुख्यपृष्ठ केँ डिजाइन करबाक लेल धन्यवाद दैत छी.
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(हिन्दी अनुवाद नीचे प्रस्तुत है-)


     बुनियादी मानव में यौन संबंधों में 'सेक्स' मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इस प्रमुख प्रवृति ने आदिकाल से समाज को प्रभावित किया है और इस तत्व की विभिन्न पुस्तकों में संक्षेप में चर्चा की गई है। इसलिए, साहित्य के छात्र होने के नाते मुझे भी इसके प्रति आकर्षण हुआ और मैंंने इसे प्रकृति की पद्धति का एक अंग समझा। लेकिन कुछ साल पहले प्रोफेसर यू. आर. अनंतमूर्ति से मिलने के बाद, जब वह बोध गया, बिहार में आये थे, मैं इस पहलू पर अधिक रुचि लेने लगा। इससे पहले मैंने उनके उपन्यास 'सन्स एंड लवर' को पढ़ लिया था, जिसने उस समय मुझे बहुत प्रभावित किया था। उन दिनों मैंने 'लेडी चिट्रली के प्रेमी' भी पढ़ा था.

     मैंने पाया कि दोनों लेखकों में कुछ समानताएं हैं और 'सेक्स के रूप में मूल मानव इच्छा' पर कुछ अंतर है। तो इस अध्ययन का उद्देश्य डी.एच.लॉर्नेंस और प्र. यू.आर. मानवमूर्ति के मूलभूत रूप में 'सेक्स' के परिप्रेक्ष्य में अनंतमूर्ति दोनों लेखकों के पास बहुत तीक्ष्ण दृष्टि और गहरी संवेदनशीलता है। उन्होंने व्यक्तिगत संबंध पर बहुत गंभीरता से विचार किया है। उन्होंने उम्र की परंपरा और मूल्यों को चुनौती दी है जिसनेसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में कोई कमी आती है। दोनों अपनी अनूठी कला और शिल्प कौशल के लिए कल्पना लेखन के दायरे में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करते हैं। उनक कथा-उपन्यासों को  पढ‌ने  के  बाद यह प्रकाश में आया कि डी.एच. लॉरेंस और यू.आर. अनंतमूर्ति दोनों सामाजिक संबंधों में सामाजिक प्रतिबंधों का खंडण करते हैं, वे खुद को पहचानने और सामाजिक नैतिकता और बाधाओं को ध्वस्त करने की कोशिश करते हैं ताकि इस आदिम वृत्ति का आनंद लिया जा सके। लॉरेंस बुद्धि से ज्यादा रक्त में विश्वास करते हैं। लेकिन बढ़ती बौद्धिकता के कारण, उनमें आचित्यीकरण अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होता गया है। इसके लिए जीवन में मनुष्य की सहज प्रतिक्रिया को नष्ट कर दिया है। अपने जीवन काल के दौरान, वह लंबे समय तक काम-वासना से विरक्त महिलाओं जैसे कि जेसी चैंबर्स एडी हेलेन कॉर्क के साथ अपने रिश्ते को लेकर पागल बने रहे। और इस जुनून ने उन्हें बहुत दर्दनाक अनुभवों से नवाजा। इस तरह के अनुभवों ने लॉरेन्स के दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी  जो कि उनके अंतिम उपन्यास 'लेडी चिट्रली के प्रेमी' में अभिव्यक्त हुआ है। इस तरह के उपन्यासों के साथ उन्होंने अंग्रेजी उपन्यास में यौन जुनून की शुरुआत की।

    उनके उपन्यासों को पढ़ कर मैंने पाया कि उनका अगला जुनून था मातृ-स्थिरीकरण जो 'सन्स एंड प्रेमी' में प्रदर्शित होता है लॉरेंस अत्यधिक औद्योगिकीकरण और उपभोक्तावाद के युग में रहते थे इसलिए उसने अपनी कलह और कुंठितता पर अपनी कलम चलायी। उन्होंने नॉटिंघमशायर और पड़ोसी स्थानों में पर व्याप्त अप्रिय स्थितियों के प्रति पूरी तरह घृणा में विद्रोह किया। उनके लेखन का एक और उल्लेखनीय उदाहरण सेक्स के संदर्भ में 'आत्मकथात्मक तत्व का चित्रण' है। यह तत्व उनके जीवन-दर्शन और जुनून की हमारी समझ में काफी सहयोगी रहा है।

   जहां तक ​​ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्तकर्ता कन्नड़ उपन्यासकार, प्रो. यू.आर.एनन्थमूर्ति का संबंध है, उन्होंने अपने उपन्यासों में अपनी विषय पेश करने में बहुत तेज और स्वच्छ तकनीक अपनायी है।  अपने उपन्यास 'संस्कार' में उनका एक पात्र नारनप्पा को एक अनैतिक व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। अनैतिक का अर्थ इस संदर्भ है कि इस पात्र ने सभी स्थापित मान्यताओं को अस्वीकार कर दिया है. सभी स्थापित सदाचार सम्बंधी मान्यताओं  का विरोध करते हुए सांसारिक सुखों का भोग करना इस उपन्यास की पराकाष्ठा है. लालसा प्रलोभन प्रदान करती है यही कारण है कि प्रणेशचार्य, अपने कठोर और रूढ़िवादी धार्मिक क्रियाओं को करते हुए यौन आनंद के जाल में भी फंस जाता है। अपने चरित्रों द्वारा अनंतमूर्ति ने समाज में स्थापित पुरातनकालीन परम्पराओं को ध्वस्त करते हैं। वो व्यक्तिगत गरिमा की स्वतंत्रता के पक्ष में है. अनासक्ति से शुरू होकर घोर अनैतिकतावादी की ओर स्वभाव में परिवर्तन को प्रणेशचार्य में दिखाया गया है। उनके उपन्यास 'संस्कार', 'अवस्ते', 'भरतपुर' और उनका कथा-संग्रह 'घाटश्राधा'  मानव भावनाओं का चित्रण कर व्याख्या करने में सक्षम है। उनका 'भारतीपुर' राजा राव के 'कनाथापुरा' और आर.के. नारायनन की मालगुड़ी जैसा एक कल्पित गांव है। नारायण की मालागुड़ी में नायक जगन्नाथ लेखक के प्रतिरूप को प्रतिबिंबित कर रहा है। 'अस्ताठे' व्यक्ति और समाज के बीच विवाद को दिखाता है और मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है। इस उपन्यास की केंद्रीय आकृति कृष्णप्पा, मनुष्य के व्यक्तित्व के परिवर्तन का प्रतीक है। मनोवैज्ञानिक रूप से इस उपन्यास की अपील अधिक होती है क्योंकि वह अपने अतीत को याद करता है और वह अपने यौन जीवन को याद करता है जो फ़्लैश बैक तकनीक में प्रस्तुत किया गया है।

     उपन्यासकार के रूप में अनंतमूर्ति ने कथाओं के भावुक प्रभाव को बढ़ाने और बढ़ाने के लिए प्रतीकों, पौराणिक संकेतों और हिंदू पौराणिक कथाओं के संदर्भों का उपयोग किया है। अपने सभी पात्रों में अंवेषण के विषय पर ध्यान दिया गया है। उन्होंने पाप और इसके परिणामों के सवाल उठाए। यथार्थवाद और रोमांस का मिश्रण उसके उपन्यासों में बहुत अधिक है लॉरेंस और अनंतमूर्ति दोनों ने अपने सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में सेक्स का विषय चुना है। वे मजबूत साहस के साथ सेक्स पर लिखते हैं।

    इस किताब को लिखने के दौरान मुझे अपनी माता बेबी वर्मा  का आशीर्वाद मिला। मेरी पत्नी श्रीमती अर्चना और बच्चों आयुष और सौम्या का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ । मैं अपने हृदयतल से डॉ. सुबोध कु. झा, डॉ. ज्ञानेश त्रिपाठी एवम् श्रीमती ममता मेहरोत्रा के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ. श्रीमती प्रिया रानी को मुख्यपृष्ठ के डिजाइन के निर्माण हेतु धन्यवाद देता हूँ.











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