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पप्पू के पास होने में गुंथे बीसों ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दे
(-हेमन्त दास हिम द्वारा नाटक-समीक्षा)
भागवत शरण झा द्वारा लिखित निर्देशित आधे घंटे का नाटक 'पप्पू पास हो गया' अविश्वसनीय ढंग से दर्जनों ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों को सामने लाता है, उनका विश्लेषण करता है और समाधान भी प्रस्तुत करता है वह भी पूरी रोचकता के साथ अत्यन्त साफ़-सुथरे रूप में. उठाये गए मुद्दे इतने अधिक हैं कि कोई भी चकरा जाए जैसे- संकीर्ण क्षेत्रवाद, दो पीढ़ियों की खाई, बेरोजगारी, गरीबी, पुलिसतंत्र में भ्रष्टाचार, जमाखोरी, धनिकों द्वारा कमजोर आर्थिक वर्ग का शोषण, वकील की लोभ प्रवृति, कालाबाजारी, रोजगार चुनाव में सही दिशानिर्देश का भाव, किसानो के द्वारा आत्महत्या, अनाज वितरण की समस्या, अनाज बदल-बदल कर नहीं उपजाना, सरकारी नौकरी के अलावे रोजगार के विकल्प पर दृष्टि का अभाव, भिक्षावृति और वर्ग-असमानता आदि-आदि. यह सिर्फ भागवत शरण झा और उनके मजबूत दल के बस की बात है कि आधे घंटे में सारे के सारे मुद्दों को अत्यन्त स्वाभाविक, सुग्राह्य ढंग पूर्णता और रोचकता के साथ मंच पर रखने में सफल हो पाए.
जमींदार घराने के गजबदन सिंह का छोटा भाई पप्पू तीन सालों से बीए में फेल होता आ रहा है क्योंकि उसे अर्थशास्त्र में रुचि होने के बावजूद जबर्दस्ती राजनीति शास्त्र में नामांकन करवा दिया गया. तीसरी बार फिर से फेल होने पर गजबदन सिंह हताश हो जाते हैं और अपने छोटे भाई को बहुत भला-बुरा कहते हैं. अपने बड़े भाई के द्वारा विषय बदलवा देने के जुल्म के कारण फेल होनेवाला पप्पू इसे सहन नहीं कर पाता है और प्रतिज्ञा करता है कि जब तक वह बीए पास न हो जाएगा अपने बड़े भाई को मुंह नहीं दिखेगा. वह घर छोड़ के चला जाता है.
इस बीच में एक सिपाही एक चोर का पीछा करता दिखता है. लेकिन चोर अपनी चालाकी से उसे चकमा देकर भागने में सफल रहता है.
पप्पू अगले साल फिर घर आता है और खुश होकर बताता है कि वह बीए पास हो गया है. पूरे घर में खुशी छा जाती है लेकिन असली नाटक तो यहीं शुरू होता है. उसकी माँ, बुआ सब उसे आशीर्वाद देती हैं फिर वह कुछ दिनों के बाद एक नौकरी की लिखित परीक्षा भी पास कर जाता है और सबसे आशीर्वाद लेकर आसाम जाता है इंटरव्यू देने के लिए. जब लौटकर आता है तो वह घायल रहता है और उसकी हालत बहुत बिगड़ी हुई लगती है. पूछने पर पता चलता है कि वहाँ के स्थानीय लोगों ने बिहार से इंटरव्यू देने आये अभ्यर्थियों के साथ बुरी तरह से मार-पीट की.
यह देखकर गजबदन बहुत भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि क्या अपने ही देश में अब हम पराये हो गए. वकील सलाह देता है कि ऐसा अत्याचार करनेवालों पर मुकदमा ठोक देना चाहिए . पर प्रोफेसर प्यारेलाल जो गजबदन के दोस्त हैं, कहते हैं कि मुकदमा तो बाद में ठोकियेगा पहले पप्पू का इलाज तो करा लें.
फिर चोर-सिपाही का दृश्य आता है. भागते चिंदी चोर को सिपाही खतरा सिंह इस बार फिर पकड़ लेता है. पकड़ते ही पूछता है झोले में क्या है, दिखाओ? चिंदी चोर कहता है कि मेरी जान ले लो पर मैं झोले का सामान नहीं दिखाऊंगा. काफी जोर-जबरदस्ती करने पर चोर को झोला दिखाना पड़ता है तो उसमें से निकालते हैं बस थोड़े प्याज और थोड़े दाल के दाने. खतरा सिंह पूछता है ये क्या है. चिंदीचोर कहता है कि वह कोई चोर नहीं मात्र एक आम आदमी है और उसे डर है कि कहीं प्याज और दाल के दाम फिर से बढ़ न जाएँ और ये कहीं उसकी पहुँच के बाहर न हो जाए इसलिए उसने अपने हिस्से का दाल और प्याज बचा के रखा है.
उसी समय पप्पू और गजबदन भी अपने परिवारवालों के साथ वहां पहुचते हैं तो यह दृश्य देख कर दंग रह जाते हैं. तभी पप्पू की आँखे खुल जाती है और वह प्रतिज्ञा करता है कि अब वह नौकरी-चाकरी की तैयारी छोड़कर गाँव जाएगा और वहाँ वैज्ञानिक ढंग से खेती करके अनाज और सब्जी का भरपूर उत्पादन करेगा और उसे सीधे ग़रीबों तक पहुंचाएगा ताकि गरीब लोगों को हमेशा सही दाम पर वो मिलते रहें. गजबदन अपने छोटे भाई के उच्च सोच को देख गदगद हो जाते हैं और उसे गले लगा लेते हैं.
नाटक के एक दृश्य महिलाओं का मोहक भक्ति नृत्य है और भिखाड़ी का करुण दृश्य भी जिसमें वह कहता है कि सेठ कुछ नहीं देना है तो मत तो पर गाली मत दो.
भागवत शरण झा अनिमेष का नाट्य-आलेख गागर में सागर है जो आधे घंटे में बीसों ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों की सफल व्याख्या करता है और उसकी पड़ताल भी. संवादों में सजीवता है और वे इतने स्वाभाविक हैं मानो ये गजबदन का नहीं आपके ही परिवार की बात हो. इतने विलक्षण आलेख हेतु अनिमेष काफी बधाई के पात्र हैं. उनमें निर्देशन क्षमता भी अद्भुत है क्योंकि कुछ महिलाएं और एक पुरुष पात्र बिलकुल पहली बार मंच पर गए थे और निर्देशकीय प्रशिक्षण के कारण ही अच्छा अभिनय कर पाए. साथ ही अन्य अभिनेताओं में संवादों की अदायगी एक क्रिया-प्रतिक्रिया के रूप में आ रही थी जो अभिनेताओं के साथ-साथ निर्देशक की कुशलता को भी दिखता है. राजकुमार भारती (पप्प्पू), भागवत अनिमेष (गजबदन) और हेमन्त दास (चिंदी चोर) मँझे हुए अभिनेता रहे हैं और इस बार भी वो अपनी उत्कृष्ट अभिनय-क्षमता का परिचय दिया.
नवनीत मिश्र (प्रोफ़ेसर) ने अपनी छोटी भूमिका में भी अपनी जगह बना ली. रूबी (सामजिक कार्यकर्तृ) का अभिनय और नृत्य भी पहले से और ज्यादा प्रभावकारी था. उनमें बहुत कलात्मक संभावनाएं हैं और आयकर विभाग ऐसे कलाकारों से समृद्ध हो रहा है. अनिल कुमार (वकील) अपनी भिन्न-भिन्न भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं और हर भूमिका को अपने ख़ास अंदाज से पेश करते हैं. लोगों ने सबसे ज्यादा तालियाँ तब बताई जब वो पप्पू को घायल देख कर कहते हैं कि हमें हिंसा करनेवालों पर मुक़दमा ठोक देना चाहिए. रंजीत (सिपाही खतरा सिंह) ने चिंदी चोर का भरपूर साथ दिया. विजय (भिखाड़ी) का गला बहुत सुरीला है और वो आयकर रंगकर्मी टीम से विशेष आकर्षण हैं.
मुकुंद कुमार, निशा कुमारी, दीपक कुमार, चुनचुन देवी, ममता देवी और अन्य सभी ने अच्छा काम किया. आयकर नाट्य दल की 15 अगस्त, 2017 केंद्रीय राजस्व भवन, पटना के एनेक्सी सभागार में मंचित इस नाटक को लगभग आठ सौ लोगों की सभागार वाली ठसाठस भीड़ ने देखा और हर दृष्य पर तालियाँ गूंजती रहीं.
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इस रिपोर्ट के लेखक- हेमन्त दास 'हिम'
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