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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Friday, 1 September 2017

दी आर्ट मेकर पटना द्वारा 'जूते' का 28.8.2017 को मंचन और उसकी प्रस्तुति पर समीक्षा बैठक / राजन कुमार सिंह की रिपोर्ट

एक जोड़े जूते से निजात पाने की कोशिश में पैदा हुई बड़ी-बड़ी मुश्किलें
एक सौदागर गुलामी से खुद को निजात दिलानेवाली जूतियों को फटी-पुरानी होने के बावजूद भी सीने से लगाये रखता है पर जब अपनी बेगम की फटकार पर उसे फेंकने की कोशिश करता है तो बड़ी रोचक परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं.

  स्थानीय प्रेमचंद रंगशाला में सांस्कृतिक संस्था दि आर्ट मेकर,पटना ने नंदकिशोर आचार्य लिखित नाटक ' जूते ' का मंचन किया । नाटक की परिकल्पना समीर कुमार एवं निर्देशन नरेंद्र सिंह ने किया। कहानी एक जोड़ी जूतों के इर्द-गिर्द घूमती है जिसमें अबू कासिम बगदाद का एक सौदागर है जो कभी गुलाम हुआ करता था। वह अपनी अक्ल से  एक जोड़ी जूता हासिल करता है और गुलामी से निजात पाकर आजादी की जिंदगी जीने लगता है। मुफ्त में मिले जूतों को अबू अपनी मुकद्दर मानता है और फटी पुरानी हो जाने के बाद भी उसे अपने से अलग नहीं होने देना चाहता। अबू के जूते धोखे से एक दिन काजी के जूतों से बदल जातें है और बदले में उसे सौ जूते खाने की सजा मिलती है। इसके बाद तो उसे अपने जूतों की वजह से बार-बार नुकसान उठाना पड़ता है वह जूते उसके लिए नेमत से बददुआ बन जाती है और उसके सिर पर बरसती है। जूतों से पीछा छुड़ाने की हर कोशिश नाकाम होती है मानो वह जूता उससे अलग होने को राजी ही ना हो। घटनाक्रम में इन जूतों की शिकायत खलीफा तक पहुंचती है और अबू पर मुकदमा चलता है । नाटक का समापन " भर दे झोली मेरी या मुहम्मद, तेरे दर से न जाऊँगा खाली " जैसे उत्साही गाने से हुआ। कुल मिलाकर सहयोग राशि अदा कर नाटक देख रहे दर्शकों के लिए नाटक पूरी तरह पैसा वसूल रहा । इस परंपरा को नाट्य दलों को जारी रखने की आवश्यकता है।

      मंच पर भाग लेने वाले कलाकारों में कुणाल कुमार, वसुधा कुमारी, सूरज सिंह, अभिषेक राज, राहुल कुमार, रौशन कुमार, संतोष राजपूत, मनोरंजन कुमार, सौरभ सोनी, निशांत प्रियदर्शी,  अनुराग आनंद, चंदन कुमार, आकाश कुमार, राजीव कुमार, लालजी प्रसाद, अविनाश कुमार, राजू कुमार, शशांक शेखर थे।

     मंच परे कलाकारों की महत्वपूर्ण और सराहनीय भूमिका रही। बेहतरीन प्रकाश परिकल्पना से उपयुक्त वातावरण का निर्माण करने में राहुल कुमार रवि एवं रौशन कुमार कामयाब रहे वहीं अपने कर्णप्रिय संगीत से सजाया रोहित चंद्रा एवं धीरज दास ने। गायक दल में गौतम गुलाल,उत्तम कुमार, अभिषेक आनंद, मनोज कुमार, अजीत कुमार, राहुल राज ,दीपक कुमार ,प्रशांत कुमार, गीत- अभिषेक आर्या,मंच परिकल्पना एवं रंग वस्तु- संतोष राजपूत, रूप सज्जा- जितेंद्र कुमार जीतू। आयोजन के प्रथम सत्र में आशा,छपरा ने रंगशाला परिसर में नुक्कड़ नाटक ' भोला राम का जीव ' का मंचन मो0 जहाँगीर के निर्देशन में किया।भाग लेनेवाले कलाकारों में चंदन, राहुल, उज्जवल शशांक, तेजप्रताप,अनुराग, रेहान, सन्नी, अजित, अंशु थे।
 (इस रिपोर्ट के लेखक -राजन कुमार सिंह)
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प्रस्तुत नाटक की समीक्षा बैठक की रिपोर्ट

     स्थानीय प्रेमचंद रंगशाला परिसर में नाट्य संस्था "दि आर्ट मेकर" द्वारा मंचित हुए नाटक की समीक्षा बैठक का आयोजन हुआ। एक ऐसी परम्परा की जो लगभग पटना रंगमंच से समाप्त हो चुकी है। इस साहसिक कार्य के लिए समीर कुमार एवं "दि आर्ट मेकर" टीम के सभी कलाकारों को बधाई दी गई। समीर कुमार ने अपने नाटक जूते के मंचन के पश्चात नाटक में हुई त्रुटियों एवं बेहतरी की संभावनाओं की तलाश हेतु विभिन्न दलों के रंगकर्मियों को बुलाया। बातचीत के दौरान आयोजक ने न केवल उनकी बातों को सुना  बल्कि बिंदुवार उसे नोट भी किया। बैठक में 'दि आर्ट मेकर' के कलाकारों के साथ पुंज प्रकाश, सनत कुमार,मनोज कुमार,गौतम गुलाल, उत्तम कुमार,राजन कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।सर्वप्रथम बारी-बारी से नाटक "जूते" से जुड़े सभी कलाकारों ने मंचन के दौरान के अपने अनुभव और कठिनायों को साझा किया। उसके बाद आगंतुक रंगकर्मियों ने प्रस्तुति की बधाई के साथ इस नाटक से संबंधित कथ्य, निर्देशन, शैली, विन्यास,काल,अभिनय, संगीत, प्रकाश, सेट, वस्त्र, रूपसज्जा, रंग वस्तु आदि सभी चीजों पर अपने-अपने सुझाव सार्वजनिक किए। रंगकर्मियों ने अपनी-अपनी परेशानियों को भी साझा किया। जिसके अंतर्गत अभिनेताओं की कटिबद्धता, प्राथमिकता,अनियमितता और समयबद्धता के कारण नाट्य प्रस्तुति पर पड़नेवाले प्रभाव को खोलकर सबके सामने रखा। चूंकि सारे रंगमंचीय आडंबर के केंद्र में अभिनेता ही है इसलिए सबसे ज्यादा बात इन्ही पर हुई। सामूहिक रूप से किसी एक दल या निर्देशक के साथ टिककर काम करने की सलाह दी। रंगमंच अभिनेताओं से धैर्य की अपेक्षा करता है।अंत में समीर कुमार ने नाटक से जुड़े तकनीकी विभाग,संगीत,और मेकअप से जुड़े कलाकारों से अपना काम सही तरीके से न करने एवं पर्याप्त समय न दे पाने के लिए शिकायत से साथ "भरोसा कीजिए, काम हो जाएगा" वाले आश्वासन से भी अपनी नाराजगी जताई और आने वाले दिनों में रंगमंच के लिए चिंता प्रकट की। सभी आगंतुकों का आभार प्रकट करते हुए पुनः अपनी अगली प्रस्तुति में त्रुटियों को सुधार करने की बात कही। कुल मिलाकर दो घन्टे का यह सत्र बेहद अच्छा रहा और अन्य दलों के निर्देशकों ने इस तरह की बैठक को  नाट्य प्रस्तुति के लिए लाभकारी बताया। ज्ञात हो कि समीर मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित हैं। पटना रंगमंच के उभरते युवा रंगकर्मी अभिनय के साथ निर्देशन में भी गहरी रुचि रखते हैं। रंगमंच को इनसे काफी अपेक्षाएं हैं।
(इस रिपोर्ट के लेखक - राजन कुमार सिंह)
रिपोर्ट के लेखक का लिंक- https://www.facebook.com/raajdev.9507271010?lst=100009393534904%3A100001360856965%3A1504260023
आप अपनी प्रतिक्रिया ईमेल के दवारा सम्पादक को भी भेज सकते हैं जिसके लिए आइडी है‌-hemantdas_2001@yahoo.com















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