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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Friday, 29 December 2017

जनवादी लेखक संघ द्वारा संजीव कुमार श्रीवास्तव का एकल काव्य पाठ 24.12.2017 को पटना में सम्पन्न*

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भींगना चाहते हैं हम / तुम्हारे आँसुओं की बारिश में


युवा कवि संजीव कुमार श्रीवास्तव के एकल काव्य पाठ में अनेक जाने-माने साहित्यकार उपस्थित थे जिनमें श्रीराम तिवारी, घमंडी राम, हृषिकेश पाठक, शकील सासारामी, आनंद किशोर शास्त्री, लता प्रासर, शशिभूषण उपाध्याय 'मधुकर', आर. प्रवेश, जफर सिद्दीकी, सुरेश चंद्र मिश्र, हेमन्त दास 'हिम' आदि शामिल थे. अध्यक्षता श्रीराम तिवारी ने की और सञ्चालन घमंडी राम ने किया.

सबसे पहले बीजभाषण घमंडी राम ने किया. इन्होंने जनवादी लेखक संघ की उपयोगिता पर प्रकाश डाला.

फिर संजीव कुमार श्रीवास्तव का एकल काव्य पाठ हुआ. उन्होंने जो कवितायेँ पढ़ीं उनके शीर्षक थे- कविता, तुम, हम जो चाहते हैं, तुम्हारी राह में (प्रेम कवितायेँ), महानगर की ज़िन्दगी: लाइफ इन ए मेट्रो, मासूमों की दुनिया, बगावत (लम्बी कवितायेँ) और हाशिये के लोग. एक पूर्ण कविता और अन्य कविताओं के अंश इस रिपोर्ट में नीचे प्रस्तुत हैं.

हृषिकेश पाठक ने संजीव जी के कविता पाठ में उसके  पद्य से गद्य में रूपांतरण की ओर इशारा किया और कहा कि यह कविता के सार्थक होने की पहचान है. कविता का लक्ष्य सन्देश का सशक्त सम्प्रेषण है न कि सुन्दर शिल्प की बुनावट.

आनंद किशोर शास्त्री ने कहा कि वही अच्छी रचना कर सकता है जो अपने रचनाकर्म में खुद को घुला दे. अनायास इतनी श्रेष्ठ कोटि की कविता उत्पन्न कर पाना सब के लिए सम्भव नहीं है. किन्तु गद्य और पद्य के अंतर को समझना भी उतना ही आवश्यक है.

शकील सासारामी ने कहा कि संजीव श्रीवास्तव की कविताएँ जिंदगी का अक्स होने के साथ-साथ उससे जूझने का प्रयास भी है.

लता प्रासर ने कहा कि इनकी कविताएँ मेरे मनस्थल को छू रही थी. शब्द चयन भावानुकूल है. एक बार इनकी कलम चली नहीं कि कविता अपने आप चल पड़ती है.

शशि भूषण उपाध्याय 'मधुकर' ने मगही में कविता पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की -
आधी आधी रतिया में रोवे मन बतिया

आर.प्रवेश ने संजीव कुमार श्रीवास्तव की कविता की काफी सराहना की और कहा कि भाव और भाषा को मिलाने से शैली का निर्माण होता है. इस दृष्टि से इनकी कविता को उत्कृष्ट कहा जा सकता है.

जफर सिद्दीकी ने संजीव की तारीफ करते हुए कहा कि इन्होंने मुहब्बत के साथ-साथ बगावत की शायरी बड़ी गम्भीरता से की है. बगावत की आवाज उठाना बड़े धैर्य की बात है.

अंत में श्रीराम तिवारी के अध्यक्षीय भाषण के साथ कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की गई.

संजीव कुमार श्रीवास्तव द्वारा पढ़ी गई कविताओं की झलक नीचे प्रस्तुत है-

तुम
(पूर्ण कविता)

जाड़े की अलसाई सुबहों में
 किसी घने कोहरे की तरह
 दिलो दिमाग पर
 छायी रही हो तुम
  
पतली पतली पगडंडियों के बीचोबीच
 उगी हुई हरी दूब पर
 जमी हुई ओस की बूंदों ने
 मखमली सेज बिछा रखी है
 तुम्हारे लिए
 कि उनसे होकर
 कभी तो रोज गुजरा करोगी तुम
  
फूली हुई पीली सरसों
 इतरा उठीं हैं एक बार फिर
 तुम्हारी पारदर्शी
 लाल और नीली चुनरी में
 उमंगों के नए रंग
 जो भरने है उसे
 क्या समेटना नहीं चाहोगी
 उन रंगों को
 अपने दामन में तुम

 गेहूँ की नन्हीं हरी बालियाँ
 होश संभालते ही
 बाट जोहने लगी हैं तुम्हारी
 कि कब आकर उनको
 दुलार किया करोगी तुम

 उगते सूरज ने अभी अभी
 अपनी रश्मियाँ बिखेरनी शुरू की हैं
 सुनहरी आभा उसकी
 करना चाह रही है
 तुम्हारे माथे का श्रृंगार
 क्या इस अभिसार के लिए
 बेकरार नहीं हो तुम

 शीशम के पेड़ों के
 बीच से होकर गुजरती
 सरसराती ठंढी हवा
 रोज सुबह
 कानों में चुपके से
 सरगोशी-सी कर जाती है
 तुम्हारे आने की
 चलो अब तो बता ही दो
 कब आ रही हो आखिर तुम!
 ......

(अन्य काव्यांश)
  
पढ़ना चाहते हैं हम
 अनुभवों के
 एक जीवंत दस्तावेज की तरह तुम्हें
 जो दबी पड़ी हो अरसे से
 धूल की पत्तों में लिपटी
 किसी जंग खाती आलमारी की दराज में
 ......

 भींगना चाहते हैं हम
 तुम्हारे आँसुओं की बारिश में
 जिसमें नमक की तरह घुले हों
 बीते क्षणों के तुम्हारे सारे दु:ख दर्द
 छुपाती आई हो जिन्हें तुम
 बड़ी ही होशियारी से
 दुनिया की निगाहों से अब तक
......

आलेख - लता प्रासर / हेमन्त  दास 'हिम' 
छायाचित्र- लता प्रासर / हेमन्त 'हिम' 
प्रतिक्रिया या सुझाव भेजने हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
कवि संजीव कुमार श्रीवास्तव का मोबाइल- 9990518195, 7564001869
कवि का ईमेल - sanjivkumarsrivastav@gmail.com















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