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शायरी है संवेदनशीलता की पराकाष्ठा
हमने लफ्ज़ों को बरतने में खून थू दिया /और आप तो देखेंगे शायरी कैसी
हिन्दुस्तान के अजीम शायर संजय कुमार कुंदन ने ये बातें कहीं पटना पुस्तक मेला में आयोजित एक परिचर्चा में जिसमें कासिम खुरशीद और समीर परिमल जैसे देश के नामचीन शायरों ने हिस्सा लिया. संचालन किया अपनी नायाब शैली के लिए जाने जानेवाले युवा शायर डॉ. रामनाथ शोधार्थी ने.
सबसे पहले 'दिल्ली चीखती है' गज़ल संग्रह से देश भर में अपना लोहा मनवाने वाले शायर समीर परिमल ने अपनी बातों को रखा. उन्होंने कहा-
रोज खाली हाथ जब लौटकर आता हूँ मैं
चीखते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
शायरी सिर्फ इश्क और हुस्न की बातें नहीं करती बल्कि सच्ची शायरी वो है जो समाज कि वर्तमान समस्याओं से रू-ब-रू होती हुई उसका विश्लेषण करती है.
परिमल ने एक खास बताई कि कविता तो वीर रस की हो सकती है पर शायरी ने. शायर हमेशा सिर्फ प्यार और मुहब्बत करना जानता है आक्रामक होना उसे आता ही नहीं. शायरी दर-असल संवेदनशीलता की पराकाष्ठा है. जब आपका दर्द समाज के लिए हो जाता है और आप समाज के दुखों से खुद को एकाकार कर लेते हैं तभी शायरी परवान चढ़ती है.
समाज में एकता और भाईचारा बढ़ाने में शायरी का बड़ा योगदान है क्योंकि यह किसी भेदभाव से कोसों दूर रहती है.
सजय कुमार कुंदन ने शायरी क्या है और समाज क्या है पहले इसे समझाया और फिर दिखलाया कि शायरी समाज से निकलता है तो समाज भी शायरी से ही संस्कारित होता है और सुपथ पर अग्रसर होता है. अमगर ताज्जुब की बात है कि समाज प्राय: शाय्ररों को तबज्जो नहीं देता. लोगों के सीने में दिल धड़के कोई यंत्र नहीं इसके लिए जरूरी है कि शायरी से वास्ता रखना चाहिए.
श्री कुंदन ने एक उद्धरण देते हुए कहा कि एक बार कवि सुमित्रानंदन पंत नेअपने माली से पूछा कि उसके कितने बेटे हैं तो उसने कहा कि तीन बेटे हैं और एक शायर हो गया है.
शायरी हमेशा सच बयाँ करती है जो अक्सर हुकूमत को रास नहीं आती. फैज, हबीब जालिक, अहमद फराज़ आदि में से अनेक ने हुकूमत के द्वारा यातनाएँ झेली. हबीब तो कई साल जेल में रहे.वहीं मजाज़ लखनवी काँके के मानसिक रोग अस्पताल में कई साल इलाज करवाते रहे क्योंकि देश में अव्यवस्था देख कर उनका मानसिक संतुलन गम्भीर रूप से बिगड़ गया था.
अगर शायरी सच्ची हो और सही मायने में समाज की सच्चाइयों के प्रति सम्वेदनशील हो तो समाज को भी थोड़ा माद्दा छोड़ना पड़ेगा और शायरों को तरजीह देना होगा. बंगाल में थोड़ी इज्जत होती है पर देश के दूसरे हिस्सों में शायरों की पर्याप्त इज्जत नहीं होती. यही कारण है कि उन्हें अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए कोई दूसरा काम करना पड़ता है और कई बार ऐसे लोगों या संस्थाओं से मदद लेनी पड़ जाती है जिससे शायरी पर्याप्त ऊँचाई तक नहीं पहुँच पाती.
शाय्रर एक कठिन कार्य में लगा होता है पर हालत यह होती है कि -
बहुत मुश्किल है दुनिया का बदलना
तेरी जुल्फों का पेचों-खम नहीं है
संजय कु. कुंदन के बाद आये देश के जाने-माने शायर कासिम खुरशीद जो वर्ल्ड उर्दू कंफ्रेंस के लिए बिहार का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित और प्रशंसित रही हैं और इन दिनों लगातार उर्दू भाषा के कर्यक्रमों में और मुशायरों में इन्हें काफी व्यस्त देखा जा रहा है. ये बराबर कोंफ्रेंस आदि में भाग लेने दिल्ली और अन्य स्थानों पर जाते हैं.
कासिम खुरशीद ने कहा कि शायरी को पैगम्बरी कहा गया है जिसका रिश्ता सीधे-सीधे तकलीफों से होता है-
एक अजीब दर्द का रिश्ता है सारी दुनिया से.
जो शायरी नहीं करते हैं वो भी शायर हैं. जो हम लिख रहे हैं वही शायरी नहीं है जो आप समझ रहे हैं वो भी शायरी है. गर समाज से शायरी को निकाल दिया जाय तो जैसे आपने शरीर से दिल को निकाल दिया.
शायरी ही है जो समाज को तहजीब सिखाती है. इसमें कोमलता भी है और सामाजिक समानता और न्याय से लड़ने की प्रतिबद्धता भी.-
हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा माँगेंगे
एक बाग नहीं एक खेत नहीं हम सारी दुनिया माँगेंगे
कुछ माधुर्य भाव में सराबोर शेर भी कासिम ने पढ़े-
गुलो में रंग भरे
शायरी रवानागी का दूसरा नाम है. जिंदा रखने के लिए शायरी और समाज दोनो को गतिमन रहना चाहिए.-
मुसाफिर के रस्ते बदलते रहे
मुकद्दर में था चलना चलते रहे
सुना है उनको भी हवा लग गई
हवाओं के रुख जो बदलते रहे
अंत में उन्होंने इन शब्दों से अपनी वाणी को विराम दिया-
आज बिछुड़े हैं कल का डर भी नहीं
जिंदगी इतनी मुक्तसर भी नहीं.
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आलेख- हेमन्त दास'हिम'
ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com
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