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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday, 19 December 2017

'साहित्य परिक्रमा' संस्था की कवि गोष्ठी 14.12.2017 को पटना में सम्पन्न

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पंख देना उड़ान भरने को / और उड़ने का हौसला देना


'साहित्य परिक्रमा' संस्था द्वारा पटना के राम गोबिन्द सिंह पथ, कंकड़बाग के गोबिन्द इनक्लैव में 14.12.2017 को एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त अनेक कवियों के साथ अन्य सजग कवियों ने भी भाग लिया. कार्यक्रम  की अध्यक्षता करुणेश ने और संचालन हेमन्त दास 'हिम' ने किया और समंवयकर्ता थे मधुरेश नारायण.  ध्यातव्य है कि नवगठित संस्था 'साहित्य परिक्रमा' के तत्वावधान में पिछले दिनों भी एक कवि गोष्ठी इसी स्थल पर हुई थी.

उक्त कवि गोष्ठी में भाग लेनेवाले कविगण थे- शिवदयाल, भगवती प्रसाद द्विवेदी, जीतेंद्र राठौर, डॉ. श्रीराम तिवारी, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', हेमन्त दास 'हिम', मधुरेश नारायण, हरेन्द्र सिन्हा, लता प्रासर, शशि श्रीवास्तव, मजोज कुमार अम्बष्ट और आशा शरण. 

सभा के आरम्भ होते समय भगवती प्रसाद द्विवेदी को मिले नये सम्मान हेतु सबों ने हार्दिक बधाई दी.  

फिर प्रसिद्ध उपन्यासकार, लेखक और कवि शिवदयाल ने तिनका, खरीदारी, खोज, देखना और अकिल दाढ़ शीर्षक से अपनी कविताएँ सुनाईं और समसामयिक संदर्भों से श्रोतागण को उद्बुद्ध किया. जिसकी झलकी नीचे देखी जा सकती है-
उन्होंने बनाई मशीनें / मशीनों ने बनाए सामान / और सामान
आदमी बनाने लगे / -कुछ कृत्रिम आदमी / कुछ हल्के आदमी (1)

कवि ने / कवि होने का फ़र्ज़ निभाया
बाक़ी को / मनुष्य होने का धर्म निभाना था! (2)

अब तो अकल का होना  
सलामती को जैसे चुनौती देना है / ख़तरे में डालना है।
बेअकल रहने से / जीना हो रहता है आसान
सब ओर होते हैं तब / यार ही यार / बाघ-बकरी सब एक घाट
सबके लिए बस एक हाट / गोया हरेक माल बारह आने! (3)

फिर प्रख्यात समालोचक और कवि डॉ. श्रीराम तिवारी ने आधुनिक वैश्विक कविता के युगनायकों की काव्य धाराओं का संगमन करते हुए अपनी एक लम्बी कविता  पढ़ी जिसकी कुछ पंक्तियाँ निम्नवत थीं-

पाब्लो नेरुदा का बिम्ब-
शरद आ गई है / मेरे पास कपड़े नहीं हैं  / मैं कैसे खाऊंगा 
खाने की मेज नहीं है / अगर यह मजाक है तो कोई बात नहीं 
नहीं है तो समुद्रों पर होगी खून की वर्षा

बंग्लादेश के रफीक आज़ाद का चित्र-
लोग तो बहुत कुछ माँग रहे हैं / बड़ी गाड़ी, पैसा, पद, नाभि के नीचे साड़ी
मेरी माँग बहुत छोटी है / जल रहा है पेट / मुझे भात चाहिए

केदार नाथ पांडेय की मुक्तता का निदर्शन-
हमारे रिश्ते की प्रकाशित होनेवाली पत्रिका की / मात्र एक प्रति छपती है
हमारे भीतर की / संरचना के छापेखाने से (1)
जहाँ जीने का आक्सीजन बहुत कम है / दुर्गतियों के कचड़ा घाट पर
खेत में पड़े एक कुदान की तरह / अपनी मुठभेड़ की विधा में
ये खुद को लाँघ जाते हैं (2)

डॉ. तिवारी के बाद आमंत्रित किया गया राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य पर आधी शताब्दी तक राज करनेवाले और गम्भीर हिन्दी एवं भोजपुरी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर भगवती प्रसाद द्विवेदी. 
भगवती प्र. द्विवेदी ने अपनी पहली कविता में जीवन को सम्पूर्णता प्रदान की-
मैं भी लौट आऊंगा / सम्पूर्णत: तुममें समाने की गरज से / अपना खोया हुआ सर्वस्व पाने को
फिर से अंकुराने को / मैं लौटूंगा / जरूर लौटूंगा / सम्पूर्णता में / मेरे गाँव!

भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अपनी दूसरी रचना में महानगर की छाती पर मूँग दल दिया-
जब महानगर में दोपाया पोतन चौपाया बन / खींच रहा होता है ठेला चरर-मरर
तो लगता है वह चला रहो हो पोतन सड़क पर / या दल रहा हो मूँग
महानगर की काली छाती पर

मनोज कुमार अम्बष्ट ने राह भटके हुए अनाचारी पागल की नैया पार लगा दी इन शब्दों में - 
सच के सूरज को घेरे बैठा / अंधियारे का बादल
आँखों में हया नहीं / अनाचारी है पागल
भटक चुका जो राह अपनी / नैया पार लगाना

मधुरेश नारायण प्रसिद्ध रंगकर्मी होने के साथ-साथ अच्छे कवि भी हैं. 'मन की हसरत' उनकी नई पुस्तक है-
कुछ ऐसे भी हैं / जिनके लिए ये दरवाजे छोटे पड़ गए हैं
शायद उनका कद बढ़ गया / और यह दरवाजा ज्यों का त्यों रह गया

हेमन्त दास 'हिम' गम्भीर कवि होने के साथ-साथ गुद्गुदा कर भी गहरी बात कर जाते हैंं. उनकी व्यंग्यात्मक पंक्तियों को देखिये-
मेरे कम्पूटर का इंटरनेट बड़ा धीमा है 
बिलकुल भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था की तरह
ज्यादा मेगाबाइट वाले फोटो मुश्किल से होते हैं अपलोड 
गहरे संवेदनशील विचारों की तरह

हरेन्द्र सिन्हा ने मुल्क के मिजाज को बदलने का नुस्खा दिया-
मुल्क का मिजाज बदलेगा जरूर / आप दिल से दिल मिलाकर देखिए
आप क्यों गमगीन बैठे हैं जनाब / आप भी कुछ गुनगुनाकर देखिए


लता प्रासर गोष्ठी में उपस्थित एकमात्र सक्रिय कवयित्री थीं जिन्होंने कुछ मुक्तक सुनाये जिनमें से एक यूँ था-
लगता है कलयुगी असर तुम पर हुआ है 
चाँदनी इशारे को समझ रही थी बेअसर
  
फिर इस कवयित्री ने मगही में अपनी रचना सुनाई जिस पर सभी वाहवाही देने से खुद को रोक नहीं पाये.  इस तरह थी पंक्तियाँ-
बूटबा खेसड़िया के सगबा गलैबय रामा हरे हरे।
भतबा पकइबय बउआ के खिलइबय रामा गरे गरे।

सभा के अध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' ने अंत में पूर्व में कवियों द्वारा पढ़ी गई कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी की फिर अपनी कविता पढ़ी-
जो बिछुड़े कुछ न कह पाये / मगर क्या कुछ न कह जाये
जाते जाते उन आँखों का / सारा अश्क बह जाये 
हुआ तो प्यार है उनसे / मगर इजहार ही मुश्किल 
कोई तो हल निकल आये / कि उन तक बात यह जाये
चलो कुछ तुम झुको कुछ हम झुकें / करुणेश झगड़ा क्यों
तुम्हारी बात रह जाए / हमारी बात रह जाए (1)
पंख देना उड़ान भरने को / और उड़ने का हौसला देना
खाके ठोकर अगर गिरा कोई / बढ़ के आगे उसे उठा लेना (2)

शरदकाल के मध्य में इस तरह पूरी गोष्ठी का माहौल व्यक्ति और समाज के चिन्तन से गरमाया रहा और अध्यक्ष की अनुमति से सभा की समाप्ति की घोषणा हुई. 
...
आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - हेमन्त 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
साहित्य परिक्रमा की पहली कवि गोष्ठी की रिपोर्ट यहाँ देखें-   http://biharidhamaka.blogspot.in/2017/08/1182017_13.html





















































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