'साहित्य परिक्रमा' संस्था द्वारा पटना के राम गोबिन्द सिंह पथ, कंकड़बाग के गोबिन्द इनक्लैव में 14.12.2017 को एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त अनेक कवियों के साथ अन्य सजग कवियों ने भी भाग लिया. कार्यक्रम की अध्यक्षता करुणेश ने और संचालन हेमन्त दास 'हिम' ने किया और समंवयकर्ता थे मधुरेश नारायण. ध्यातव्य है कि नवगठित संस्था 'साहित्य परिक्रमा' के तत्वावधान में पिछले दिनों भी एक कवि गोष्ठी इसी स्थल पर हुई थी.
उक्त कवि गोष्ठी में भाग लेनेवाले कविगण थे- शिवदयाल, भगवती प्रसाद द्विवेदी, जीतेंद्र राठौर, डॉ. श्रीराम तिवारी, मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश', हेमन्त दास 'हिम', मधुरेश नारायण, हरेन्द्र सिन्हा, लता प्रासर, शशि श्रीवास्तव, मजोज कुमार अम्बष्ट और आशा शरण.
फिर प्रसिद्ध उपन्यासकार, लेखक और कवि शिवदयाल ने तिनका, खरीदारी, खोज, देखना और अकिल दाढ़ शीर्षक से अपनी कविताएँ सुनाईं और समसामयिक संदर्भों से श्रोतागण को उद्बुद्ध किया. जिसकी झलकी नीचे देखी जा सकती है-
आदमी बनाने लगे / -कुछ कृत्रिम आदमी / कुछ हल्के आदमी (1)
कवि ने / कवि होने का फ़र्ज़ निभाया
बाक़ी को / मनुष्य होने का धर्म निभाना था! (2)
अब तो अकल का होना
सलामती को जैसे चुनौती देना है / ख़तरे में डालना है।
बेअकल रहने से / जीना हो रहता है आसान
सब ओर होते हैं तब / यार ही यार / बाघ-बकरी सब एक घाट
सबके लिए बस एक हाट / गोया हरेक माल बारह आने! (3)
खाने की मेज नहीं है / अगर यह मजाक है तो कोई बात नहीं
नहीं है तो समुद्रों पर होगी खून की वर्षा
भगवती प्र. द्विवेदी ने अपनी पहली कविता में जीवन को सम्पूर्णता प्रदान की-
मनोज कुमार अम्बष्ट ने राह भटके हुए अनाचारी पागल की नैया पार लगा दी इन शब्दों में -
बिलकुल भारतीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था की तरह
गहरे संवेदनशील विचारों की तरह
चाँदनी इशारे को समझ रही थी बेअसर
शरदकाल के मध्य में इस तरह पूरी गोष्ठी का माहौल व्यक्ति और समाज के चिन्तन से गरमाया रहा और अध्यक्ष की अनुमति से सभा की समाप्ति की घोषणा हुई.
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छायाचित्र - हेमन्त 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
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