**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Thursday, 14 December 2017

हृषीकेश पाठक के काव्य संग्रह "लोकतंत्र की धड़कती नाड़ी" का लोकार्पण 12.12.2017 को पटना में सम्पन्न

Main pageview- 52334 (Check the latest figure on computer or web version of 4G mobile)
संवेदनाओं को समझने के लिए कीमीयागिरी की जरूरत नहीं 

पुस्तक लोकार्पण का कार्यक्रम अवर अभियन्ता भवन, पटना में सृजन संगति के तत्त्वावधान में आयोजित किया गया और लोकार्पित पुस्तक हषीकेष पाठक द्वारा  रचित काव्य संग्रह "लोकतन्त्र की धड़कती नाड़ी" आनंदाश्रम प्रकाशन द्वारा प्रकाशित  है.


"जब हो जाता हूँ निरुपाय / असहाय / 
तब थाम लेता हूँ अध्यात्म की डोर / अपने ही हाथों बनायी
प्रस्तर की मूर्ति के समक्ष / झुक जाती है श्रद्धा से मेरी गर्दन"
इन पंक्तियों के साथ विजय गुंजन ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि कवि ने संवेदनशीलता के हर पक्ष को छुआ है. उनकी  छन्दबद्ध कविताओं की बजाय मुकतछन्द कविता ज्यादा सशक्त है. 

उनके बाद मंच संचालक घमंडी राम ने आमंत्रित किया लोकार्पित काव्य संग्रह के रचनाकार हृषीकेश पाठक को. उन्होंने कहा कि प्रस्तुत पुस्तक में कुल छियासठ कविताएँ हैं जो हर रंग की हैं. इसमें अध्यात्म है, प्रेम है, सामाजिक मुद्दे हैं और लोकतंत्र की भी बात है. उन्होंने समाजवाद की पोल खोल डाली अपनी एक कविता "समाजवाद पढ़ रहा था" सुनाकर जिसमें एक भिखाड़ी को सिर्फ सड़क के दाहिनी ओर खड़े होने के जुर्म में सिपाही से पिट कर और गाड़ी द्वारा कुचल दिया जाकर जान गँवानी पड़ी. कुछ पंक्तियाँ यूँ थीं-
"लहूलुहान बीच स‌ड़क पर / अपलक पोस्टर देख रहा था 
 मानो अब भी वह उसी भाव से / वह समाजवाद को पढ़ रहा था"
 उन्होंने एक पुराने समय के आंदोलन करते हुए कहा कि यह बात कि "मंत्री और संतरी का बेटा / एक स्कूल में पढ़ने जाये" 
उन्हें समझ नहीं आ पा रही थी..आखिर ऐसा हो कैसे सकता है?

फिर दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिशासी शम्भू पी. सिंह को आमंत्रित किया गया. उन्होंने माहौल को हल्का करने के लिए अपने स्वयं को मीडियाकर्मी बताते हुए कहा कि मीडियावाले की नजर हमेशा नकारात्मक चीजों की तरफ होती है इसलिए उसका वक्तव्य लेना अक्सर जोखिम भरा होता है. अध्यात्म जीवन में सरलता लाती है. अगर हमने बच्चे की किलकारी समझ ली तो इससे बड़ा अध्यात्म क्या हो सकता है! अगर किसी कविता की व्याख्या करने की आवश्यकता पड़ जाती है तो वह कविता जनता के लिए बल्कि  शोधकर्ता के लिए है. 

उन्होंने "मैना, क्यों गाती प्रभाती' जैसी कविताओं के रचयिता श्री पाठक को प्रकृति से प्रेम करनेवाला एक जनकवि कहा. कवि यूँ तो हर व्यक्ति होता है, कला हर व्यक्ति की जीवन में निश्चित रूप से समाहित है किन्तु जो उसे शब्दों में ढालना सीख जाता है वह बड़ा कवि बन जाता है. श्री सिंह ने कहा कि वो जो भी पंक्ति पढ़ते हैं पाठक जी की वही पंक्ति गूढ़ अर्थ लिये दिखती है. 

फिर भावना शेखर ने अपने विचार व्यक्त किये. उन्होंने कहा कि कि मैंने पहले पाठक जी की पुस्तक पढ़ी है. इनकी कविताओं में संजीदगी होती है. पुस्तक के शीर्षक में लोकतंत्र की नाड़ी के धड‌कने की बात कही गई है और जो धड़कता है उसमें जीवन होता है. अत: हृषीकेश पाठक एक आशावादी रचनाकार हैं. इनकी कविताओं में लोकतन्त्र की व्यथा-कथा और दलितों और कुचले लोगों की व्यथा कथा दिखती है. आज जबकि समाजवाद सिर्फ पोस्टरों पर चिपका रह गया है पाठक जी की कविता बहुत मौजूँ (संतुलित) होते हुए भी उसका सफल व्यक्तीकरण करती प्रतीत होती हैं. 

महफिल की तरफ आते हम तेज कदम आते
आवाज तो दी होती हम तेरी कसम आते
इस शेर के साथ कासिम खुरशीद ने अपने भाषण का आग़ाज़ किया. उन्होंने कहा कि हृषीकेश पाठक की पुस्तक जितनी सहजता से जीवन और समाज की कठिनाइयों की चर्चा करता है वह बहुत खास बात है. उन्होंने यह शेर भी सुनाया जो कुछ इस तरह था-
रुक गए क्यों हादसा देख कर / क्या इस शहर में  तुम आये हो नये?


कमला प्रसाद ने कहा कि सच्चाई और प्रेम से बढ़ कर कोई कविता नहीं है. पाठक जी का गद्य अत्यंत सशक्त है और उनकी गद्यात्मक कविता भी वैसे ही सशक्त बन पड़ी हैं. बक्सर में कायम दरिद्रता के का उन्होने प्रभावकारी चित्र खींचा है. इस कवि की कविताओं में राष्ट्रीयता है और गाँव की चिन्ता भी.

डॉ. रमेश पाठक ने कवि होने से अभिप्राय सिर्फ दिल ही नहीं दिमाग से भी होना बताया. क्या कोई कवि वैज्ञानिक नहीं होता? पुरुष को अमरत्व प्रदान करने की क्षमता नारी में है और कवि की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा-
छूकर मेरे प्राण प्रिये तुम / दो अमरत्व अंक में आकर.

रानी श्रीवास्तव ने हृषीकेश पाठक के सौम्य व्यक्तिव की च्रर्चा करते हुए कहा कि इनके व्यक्तित्व की तरह इनके सोच में भी एक खिंचाव-सा है जिससे पाठक इनकी ओर खिंचता चला आता है. इनकी रचनाएँ साहित्यिक ऊँचाई को मापने की बजाय मुद्दों की बातें करने में ज्यादा अभिरूचि रखती हैं. मंत्री और संतरी के बेटे एक साथ पढेंगे यह सोचते हुए भिखाड़ी पोस्टर देखते हुए खड़ा है और उस पर तमाचा पड़ता है. पुस्तक का शीर्षक सामयिक और सुंदर है जो तमाम विडम्बनाओं के मध्य भी आशा और जीवन की बातें करता है. 

डॉ. शिवनारायण ने पूर्व वक्ता विजय गुंजन की शास्त्रीय व्याख्या का संदर्भ उठाते हुए कहा कि आज का समय संक्रांति का समय है और ऐसे समय में शास्त्रीयता की बजाय सजीदगी और साफनीयती की ज्यादा जरूरत पड़ती है जो गुण प्रस्तुत कवि में हैं. आज की कविता समझनी हो तो बस तीन शब्दों की यात्रा कीजिए- संवेदना, न्याय और प्रतिरोध. हृषीकेश पाठक की कविताओं में प्रतिरोध है अन्याय, विषमताओं और ढोंग के विरुद्ध. यद्यपि कवि ने अपनी कविताओं में संघर्ष, नदी, पर्यावरण, श्रंगार, शहर की जटिलताएँ सब की बातें कीं हैं लेकिन मूल रूप से यह कवि आध्यात्मिक है. 

उन्होंने कहा की लोकार्पित संग्रह में एक कविता समाजवाद पर है जो यूँ तो कवि की काव्य भाषा से मेल नहीं खाती है किन्तु सबसे ज्यादा उसी की चर्चा हुई है. जो कवि हृषीकेश पाठक के समान संवेदनाओं के नजदीक होता है उसे समझने के लिए बहुत कीमियागिरी की जरूरत नहीं पड़ती है.

फिर भगवती प्रसाद द्विवेदी मंच पर आये और उन्होंने कवि के प्रतिकार या प्रतिरोध को समाज में आई विरूपताओं के विरुद्ध बताया. ये मूलत: कथाकार हैं. इनकी हर कविता में एक कथा है और वह कथा निचले पायदान पर दबे कुचले लोगों की कथा है.  रचनाओं में लोक संस्कृति के विध्वंश के दर्शन होते हैं.  कवि का प्रतिरोध उस साजिश के खिलाफ भी है जिसके तहत दलित विमर्श और स्त्री विमर्श को राजनीतिक रूप दे दिया जाता है.

लता प्रासर ने कहा कि कवि ने गाँव की बात की है और मैं इसी बात से बहुत प्रभावित हूँ क्योंकि मैं गाँव से हूँ और मेरा नाता अभी भी गाँव से बना हुआ है. 

संचालक घमंडी राम ने कहा कि हर कवि के मन में एक प्रेमिका होती है और इस प्रेम के उदात्तीकरण से ही कवि महान बनता है. 

सत्यनारायण ने पुस्तक में कविताओं के अनेक रूप की चर्चा की. इसमें अध्यात्म है, समाज में घटती घटनाएँ हैं, राष्ट्र पर भी नजर है तो राष्ट्रप्रेम भी है. इसमें प्रेम की अनुगूँज भी है. उन्होंने आधुनिक समीक्षकों पर चुटकी लेते हुए कहा कि आजकल तो प्रेम पर कविता लिखने पर कर्फ्यू लगा दिया गया है. उन्होंने कवि की पंक्तियों का हवाला देते हुए कहा-
सरला डोम बटोर रहा है / अर्थी के बाँस और कफन 
लाला चमार खींच रहा है / मरे मवेशियों की खाल 
और छान रहा है गोबर से अन्न का एक-एक दाना

अंत में अध्यक्षीय भाषण करने आये शिववंश पाण्डेय को बहुत समय नहीं मिल पाया बोलने को. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि सत्यनारायण जी के बाद किसी का बोलने बुलाना ही व्यर्थ है. श्री पाण्डेय ने कवि की कविताओं के विशिष्टाएँ बताईं और कवि को अपनी शुभकामनाएँ दीं. हृषीकेश पाठक की निम्न पंक्तियाँ को भी लोगों ने खूब सराहा-
जिन्दगी मैंने तुझको तलाशा बहुत 
जब मिली तो जीने की तमन्ना तुम्हारी न थी
कारवाँ तो बहारों का गुजरा बहुत / बहारों की दुनिया हमारी न थी.

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत बाँके बिहारी साव ने किया. प्रवीर कुमार ने वाणी वन्दना, स्वागत गान और काव्य-संग्रह के दो गीत "गीत क्रांति का गाता हूँ और जिंदगी मैंने तुझको तलाशा बहुत" का सस्वर पाठ किया जिससे कार्यक्रम का आकर्षण और बढ़ गया। अध्यक्ष थे शिववंश पाण्डेय, मुख्य अतिथि थे सत्यनारायण और विशिष्ट अतिथि बनाये गये डॉ. शिवनारायण. रामदास आर्य उर्फ घमंडी राम ने कार्यक्रम का संचालन किया.  अंत मेें अवर अभियन्ता परिषद की ओर से आये हुए अतिथियों और  श्रोताओं  के  प्रति  आभार  व्यक्त  किया  गया और अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई.  
.........
आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - हेमन्त 'हिम'
ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com










































No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.