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किरण सिंह का दूसरा काव्य संग्रह 'प्रीत की पाती' का लोकार्पण 24 दिसम्बर'17 को पटना के बिहार इंडस्ट्रीज एसोशिएशन के सभागार में हुआ. अध्यक्षता हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने की. पुस्तक का लोकार्पण करनेवालों में सत्यनारायण, उषा किरण खान, पी.के.राय, रानी श्रीवास्तव आदि प्रमुख थे.
सबसे पहले वातायन प्रकाशन के राजेश शुक्ल ने आये हुए गणमान्य अतिथियों और उपस्थित साहित्यप्रेमियों का स्वागत किया. फिर 'आजकल' पत्रिका की पूर्व सम्पादिका सीमा ओझा और साहित्यकार नंदा प्रियदर्शिनी को मंच संचालन का भार दिया.
साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त पद्मश्री उषा किरण खान ने स्त्री विमर्श की ओर ध्यान खींचते हुए इंगित किया कि स्त्रियों का लेखन कार्य चुनौती भरा होता है क्योंकि उन्हें घर के अंदर भी इस हेतु प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. लिखनेवाली महिलाओं को कोई पानी पिलानेवाला भी नहीं होता है जबकि पुरुषों को लिखने हेतु घर के सदस्यों द्वारा ख्याल रखा जाता है. कवयित्री ने अपनी उम्र के इस पड़ाव में जब घर को व्यवस्थित कर लिया और बच्चे कुछ बड़े हो गये तो तब जाकर अपने कैशोर्य में रोक दी गई भावनाओं को पुनर्जीवित किया है.
पूर्व उर्जा सलाहकार पी.के.राय का विचार था कि कवयित्री किरण सिंह की कविताओं में छायावादी प्रेम की झलक मिलती है. वर्ण, अक्षर, शबद, छन्द, भाव की गूँज हर जगह मिलती है. उन्होंने यह कहते हुए कि वे इंजिनियरिंग के छात्र हैं इसलिए साहित्य नहीं समझते, ठीक इसको झुठलाते हुए एक बहुत अच्छी और अद्यतन साहित्यिक समझ रखने का परिचय दिया. उन्होंने पुस्तकों के अनेक अंशों को उद्धृत करते हुए गुण-दोषों की निष्पक्ष विवेचना प्रस्तुत की.
श्री राय ने कहा कि कवयित्री ने अदालत, मुकदमा, एफआइआर आदि कर्णकटु शब्दों का प्रयोग बखूबी करते हुए एक अनोखे तरह का श्रंगार भाव उत्पन्न करने में सफलता पाई है. कविताओं में गत्यात्मकता है एकरसता नहीं है. प्रकृति के तमाम उपादानों द्वारा प्रीति के अवयवों की उपमा दी गई है. नारी संघर्ष एकरेखीय नहीं है बल्कि अनेक संदर्भों से गुुँथा-लिपटा है. यह भी कहा कि कवयित्री का ग्रामीण सरोकार प्रमुखता से परिलक्षित होता है.
नंदा प्रियदर्शिनी ने संचालिका के रूप में उद्बोधन करते हुए कहा कि किरण की कविताओं में सिर्फ समर्पण ही समर्पण है.
प्रिय मैं ठहरी बाबरी मैं क्या जानूँ प्रीत
तुम ही मेरे छन्द हो, तुम ही मेरे गीत
इन शब्दों के साथ कवयित्री किरण सिंह ने कहा कि भावनाएँ मनमौजी होती हैं. काम करते समय भी भावनाएँ आती रहतीं हैं. भाव श्रंगार है.
पहना कर पायल की बेड़ी
कंगन की हथकड़ियाँ
सिंदूरी संस्कृति में लिखकर
उम्र कैद मुझे कर दिया (पृ.10)
साहित्यकार और प्राध्यापक डॉ. रानी श्रीवास्तव ने प्रेम पर कविता लिखना आज के दौर में एक साहस भरा कदम बताया. पृष्ठ संख्या 10 पर दी गई एक कविता का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि कवयित्री ने बार-बार बेड़ी, हथकड़ी और कैद जैसी उपमाओं का प्रयोग किया है लेकिन इनका उद्देश्य नकारात्मक न होकर सकारात्मक है. ये बेड़ियाँ तो हैं किन्तु प्रेम की हैं. यह कैद तो है लेकिन पति के अपनत्व से भरी देख-रेख की है.
डॉ. श्रीवास्तव को लोकार्पित पुस्तक में पति के प्रति समर्पण के साथ-साथ उपालम्भ भी दिखा. उन्होंने संदेश दिया कि जिस तरह से चलते रहना जिंदगी है लिखते रहना सच्चा रचनाकर्म.
कवयित्री के पुत्र ऋषि आनंद ने बताया कि उनकी माँ की सोशल साइट्स पर बहुत ज्यादा फोलोइंग है. लोग इनके साहित्यिक पोस्ट को विशाल संख्या में पढ़ते हैं. चुटकी लेते हुए ऋषि ने कहा कि माँ की साहित्यिक प्रशंसक इतने ज्यादा हैं कि उन्हें भी माँ से ईर्ष्या होने लगी है. सारे श्रोतागण इस बात पर हँस पड़े.
साहित्यकार हृषिकेश पाठक ने कहा कि किरण सिंह की पहली पुस्तक 'मुखरित संवेदनाएँ' भी उन्होंने पढ़ीं हैं जो महिला सशक्तीकरण की बात करती है. किंतु लोकार्पित पुस्तक तो पूरी तरह से प्रेम के रंग में डूबी है. पर इस प्रेम में केवल मनुहार नहीं बल्कि चेतावनी भी है.
श्री पाठक के बाद एक और गणमान्य वक्ता ने अपना अच्छा व्याख्यान दिया. फिर अंत में सभा के अध्यक्ष सत्यनारायण ने अपनी बातें रखीं. उन्होंने आलोचकों के द्वारा आज के समय में प्रेम और विशेषकर एंद्रिक प्रेम पर कर्फ्यू लगा देने जैसी स्थिति होने की बात कही. कुछ पंक्तियाँ जो उन्होंने पुस्तक से पढीं यूँ थीं-
पायल लगे है बेड़ी
प्यारी सजा देता है
कंगन के संग चूड़ी लगती है हथकड़ी सी
पर प्रेम तो है छलिया कैदी बना लेता है
...
रूप अक्सर मैं अपना बदलती रही
आप में ही हमेशा मैं ढलती रही
अंत में धन्ययवाद ज्ञापण के साथ कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा हुई.
......
आलेख- हेमन्त दास ''हिम
छायाचित्र- हेमन्त 'हिम'
ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com
नोट्- इस आलेख में कुछ सुधार किये जा सकते हैं.
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