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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday, 18 December 2017

'जनशब्द' द्वारा कवि गोष्ठी 17.12.2017 को टेक्नो हेराल्ड, पटना में सम्पन्न

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साहित्यिक चर्चा बनाम सामाजिक-राजनीतिक चिकित्सा 


प्यार भरी तकरार से आरम्भ हुई 'जनशब्द' की कवि गोष्ठी पटना जं. के पास स्थित महाराजा कॉम्प्लेक्स के टेक्नो हेराल्ड में गम्भीर काव्य विमर्श और काव्य पाठ के साथ सम्पन्न हुई. पटना में इन दिनों होनेवाली काव्य गोष्ठियों में दूसरा शनिवार और जनशब्द की कवि गोष्ठियाँ अपने समकालीन गंभीर तेवर के कारण जानी जाती है. इनकी सारी गोष्ठियाँ उस स्तर की गहन साहित्यिक चर्चा से भरपूर होती है जो आज के सामाजिक-राजनीतिक परिदृष्य में सबसे नवीनतम महामारी की चिकित्सा करने का माद्दा रखती है. कार्यक्रम के अध्यक्ष थे प्रभात सरसिज एवं मुख्य अतिथि थे रमेश कँवल और अनिल विभाकर. संचालन कर रहे थे राजकिशोर राजन. कार्यक्रम के समन्वयकर्ता थे शहंशाह आलम। भाग लेनेवाले अन्य कविगण थे- संजय कुमार कुंदन, समीर परिमल,  भावना शेखर, घनश्याम, राजेश कमल, अरविन्द पासवान, कुमार पंकजेश, हेमन्त दास 'हिम', अस्मुरारी नंदन मिश्र ,डॉ. रामनाथ शोधार्थी,  डॉ. विजय प्रकाश, अक्स समस्तीपुरी, लता प्रासर, सीमा संगसार, डॉ. एक. के. मधु, ओसामा खान, अमीर हमजा, शाह नवाज, सत्यम कुमार झा, शशांक मुकुट शेखर,  कुन्दन आनन्द, उत्कर्ष अनंद 'भारत', सूरज ठाकुर बिहारी,रोहित ठाकुर, राखी सिंह, नवनीत कृष्ण, रमाशंकर यादव 'विद्रोही' आदि. 

● स्थान : टेक्नो हेराल्ड , 203 महाराजा काॅम्प्लेक्स (द्वितीय तल) , फ्रेज़र रोड, बुद्ध स्मृति पार्क के सामने, पटना ● समय : शाम 4 बजे ● तिथि : रविवार 17 दिसंबर, 2017

कुछ कवियों की पंक्तियाँ यूँ थीं-

वो सारी अधूरी कविताएँ / जो किसी भी कवि के हाथों / मुकम्मल न हुईं कहीं
सदा के लिए मूँदे जाने के ठीक पहले / देखा नहीं प्रिय को अपने 
उन सभी अतृप्त आत्माओं की पुनर्जन्म है खिड़कियाँ. (राखी सिँह) 
...
अब तलक जो भी कहा झूठ कहा है मैंने
सच वही है मैं जिसे बोल नहीं पाता हूँ (डॉ. रामनाथ शोधार्थी)
....
आग लग जाएगी जमाने में / जब ये बेजुबान बोलेंगे
दो निवाले तो जाने दे अन्दर / हम भी हिन्दोस्तान बोलेंगे (समीर परिमल)
....
धनिया जी गिरी पछाड़ खाकर / उठी नहीं अब तक 
दु:ख अफसोस की बारिश में / ठिठुर रहा गाँव (राजकिशोर राजन)
...
भ्रम में हो तुम क्रांति कर्म से / कविताओं से और कला से
किसी निरंकुश राजा का तुम / बाल भी बाँका कर सकते हो 
(डॉ. विजय प्रकाश)
....
ये  सफ़र  कामयाब कब होगा / और पूरा भी ख़्वाब कब होगा
ज़ुल्म अब तो सहा नहीं जाता / बोलिए   इन्कलाब  कब होगा (घनश्याम)
...
...
जब सत्य के समर्थन में / तुम निरा अकेले
जग के विरुद्ध अड़ लो / तो बात समझ जाओ (रमेश कँवल)
....
दूधिया रौशनी में चूता है शहर का खून
उतर आता है लोगो के माथे पर नमकीन पानी
दोपहर का शहर / समय से पहले बूढा लगने लगता है। (सत्यम)
..........
कैसे जीते हैं लोग बाग सब / कैसे पगता है मधुमास?
कैसे गंधों की भीड़ में कोई एक  / जम जाती है किसी की ठंढी कलाई पर (अंचित)
......
फिर ऐसे तर्के- तल्लुक का फायदा क्या ' जब एक कमरे में रहना पड़ेगा दोनो को (अक्स समस्तीपुरी)
,,,,
एक शहर का जिन्दा होता है / दम खींचते हुए 
उन बूढ़े जिन्दा रिक्शेवालों से / जो रखते  हैं पाई पाई का हिसाब
अपनी साँसों का  (सीमा संगसार)
...
एक लम्हा जो बाकी है / इस साँस की खुशबू में
फिर डूब के लिखना है / इस वक्त का अफसाना (ओसमा खान)
.....
काम न आ सकी अपनी वफाएँ / तो क्या हम करें (अमीर हमजा)
......
आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र- हेमन्त 'हिम',शहंशाह आलम, कुंदन आनन्द
अपनी प्रतिक्रिया और आलेख में सुधार हेतु सुझाव भेजिये ईमेल से - hemantdas_2001@yahoo.com
नोट: यह आलेख अधूरा है. इसे पूरा करने के लिए प्रतिभागियों से अपनी कविता की पंक्तियाँ भेजने का अनुरोध है ऊपर दिये गये ईमेल पर. व्हाट्सएप्प नम्बर दिया है ब्लॉग पर ऊपर में. उसपर भी भेज सकते हैं.

 






































































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