**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Tuesday, 26 December 2017

प्रगतिशील लेखक संघ की काव्य गोष्ठी सुरेंद्र स्निग्ध को याद करते हुए पटना में 25.12.2017 को सम्पन्न

Main  pageview- 54234 (Check the latest figure on computer or web version of 4G mobile)
समय सर्प टेढ़ा ही चलता / गिरगिट रह-रह रंग बदलता

नोट- चित्र के नीचे हिन्दी में रिपोर्ट है. मगही में रिपोर्ट के लिए यहाँ क्लिक कीजिए-   http://magahipagesbiharidhamaka.blogspot.in/2017/12/blog-post_27.html





नागार्जुन सम्मान; साहित्य सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का साहित्य सेवा सम्मान से सम्मानित और 'छाड़न' उपन्यास के रचयिता सुरेन्द्र स्निग्ध का हाल ही में निधन हो गया जिससे बिहार की साहित्यिक मंडली में गहरा शोक व्याप्त है. 5.6.1952 को पुर्णिया में जन्मे स्व. स्निग्ध ने उक्त उपन्यास के अतिरिक्त कविता संग्रह- पके धान की गंध, कई-कई यात्राएं, रचते गढ़ते / आलोचना- जागत नींद न काजै, शब्द-शब्द बहु अंतरा, नई कविता नया परिदृश्य / कविता संकलन- अग्नि की इस लपट से कैसे बचाऊं कोमल कविता की भी रचना कर साहित्य के पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी. (साभार- hindisamay.com) 
लोगों ने इनके उपन्यास से प्रभावित होकर इन्हें रेणु की परम्परा का साहित्यकार भी कहा.

दिनांक 25 दिसंबर 2017 को प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई के तत्वाधान में लेखराज परिसर, पटेल नगर में दिवंगत कवि सुरेन्द्र स्निग्ध की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा तथा काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा। समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज तथा संचालन प्रलेस की सचिव डॉ रानी श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर रानी श्रीवास्तव ने सुरेन्द्र स्निग्ध की दो कविताओं 'अंतिम एकांत' तथा 'वर्षा' का पाठ किया। वरिष्ठ कवि एवं कथाकार डॉ शिवनारायण ने सुरेन्द्र स्निग्ध के संस्मरण सुनाते हुए उनके प्रारंभिक जीवन तथा संघर्षों पर चर्चा की।

दूसरे सत्र में कवि शिवनारायण, शहंशाह आलम, समीर परिमल, रबिन्द्र के दास, अनिल विभाकर, राजकिशोर राजन, विजय प्रकाश, सुशील भारद्वाज सुजीत वर्मा, ज्योति स्पर्श, नवनीत कृष्ण, गणेशजी बाग़ी, इति मानवी, राजेश कमल आदि ने अपनी कविताओं का पाठ किया।

कवियों द्वारा सुनाई गईं कुछ चुनिन्दा रचनाएँ -

'महाशत्रुओं के वंशज हैं बादशाह
बादशाह भयभीत रहते हैं
शस्त्र-सज्जित प्यादों के घेरे में
चलते हैं बादशाह'  (प्रभात सरसिज)

'ज़िन्दगानी ने ओढ़ ली चादर
इक कहानी ने ओढ़ ली चादर
ग़म की रातों को हमसफ़र करके
हर निशानी ने ओढ़ ली चादर'  (समीर परिमल)

'समय सर्प टेढ़ा ही चलता,
गिरगिट रह-रह रंग बदलता' (डॉ. विजय प्रकाश)

अनिल विभाकर ने 'घड़ियाँ' शीर्षक कविता सुनाकर सबको भावुक कर दिया। शहंशाह आलम ने 'कोहिमा', 'इति माधवी ने 'आत्मसात', डॉ. सुजीत वर्मा ने 'आस्था', ज्योति स्पर्श ने 'पूरक भूमिका', गणेश जी बाग़ी ने 'नियति' शीर्षक कविता सुनाई।

सामूहिक भागीदारी से सम्पन्न यह कार्यक्रम साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। आये हुए साहित्यकारों के प्रति धन्यवाद देते हुए अपर्नेश गौरव ने हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की 
......
आलेख- समीर परिमल और  हेमन्त 'हिम'
छायाचित्र - शहंशाह आलम 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com








No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.