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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 4 December 2017

पटना पुस्तक मेला में 3.12.2017 को सम्पन्न हुए कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम

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राम से बड़ी लड़ाई सीता ने लड़ी


रेडियो मिर्ची के आर.जे. अपूर्व का गायन

कला संस्कृति और युवा विभाग, बिहार सरकार एवं सीआरडी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पटना पुस्तक मेले के दूसरे दिन यानी 3 दिसम्बर को अनेक कार्यक्रम हुए.

शुरुआत में ही संगीतमय मधुर ध्वनि से परिसर गुंजायमान हो उठा, रेडियो मिर्ची के अपूर्व ने महिला केंद्रित विषयों पर गीत गाकर नारी के प्रति जागरूकता का संदेश दिया. गीत सुनाने के पहले अपूर्व ने कुछ कविताएँ भी पढ़ीं जो समसामयिक विषयों पर आधारित थीं. गीत के माध्यम से अपूर्व पुस्तकप्रेमियों को पुस्तक मेले के थीम के रंग में अनुरंजित करने में खूब सफल हुए. उनका साथ दे रहे थे बेस गिटार पर शिव, इटैलियन वाद्य कहोन पर अभिजीत और एकँस्टिक गिटार पर आयुष.

कल के कार्यक्रम इस प्रकार हैं-

1. नुक्कड़ नाटक - चांडालिका = 1.30 बजे दोपहर
2. पुस्तक लोकार्पण - विथ यू विदाउट यू- 2.20 अपराह्न
3. पुस्तक परिचर्चा - एक और दुनिया हो तुम - 2.20 अपराह्न
4. नई पुस्तक पर वार्तालाप - विनय कुमार से - 3.30 बजे अपराह्न
5. परिचर्चा - लंदन में हिंदी - 4.30 बजे अपराह्न 

ममता मेहरोत्रा के व्यकतित्व और कृतित्व पर सुजीत वर्मा की बातचीत

बातचीत में यह सामने आया कि ममता मेहरोत्रा के कृतित्व में महिलाएँ केंद्र में हैं. उनका बचपन का पारिवारिक माहौल बिल्कुल स्वस्थ था जिसमें लड़कियों को किसी विषय में आगे बढ़ने की पूरी स्वतंत्रता थी. 1993 से ही इन्होंने वीमेन हेल्पलाइन के साथ काम करना आरम्भ किया तथा डायन बताकर सताना, दलित उत्पीड़न,वेश्या प्रथा आदि बुराइयों के उन्मूलन के लिए जी लगाकर काम किया. इनका मानना है कि स्त्री की सबसे बड़ी लड़ाई अपने आप से है. सभी बुद्धिजीवियों को इस पर सोचना होगा कि नई तकनीक का लाभ हाशिये पर छुटी महिलाओं तक कैसे पहुँचायी जाय. भारतीय सभ्यता के आरम्भिक काल में सबको समान अधिकार था और स्वयंवर की प्रथा इसका बड़ा उदाहरण है. परन्तु पितृसत्तात्मक संस्कृति के हावी होते ही महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देनेवाली यह प्रथा बंद कर दी गई और बाल विवाह को चलन में लाया गया ताकि महिलाओं को पिता की सम्पत्ति से बेदखल कर दिया जाय. उन्होंने नारी समस्या के कुछ विंदुओं को अपने नाटक 'या देवी सर्व भूतेषु' में दिखाया है जिसे हाल ही मंचित किया गया था.  साथ ही उन्होंने खुल कर बिहार सरकार की उस नीति का जोरदार समर्थन किया जिसके तहत दहेज प्रथा और बाल विवाह के उन्मूलन का कार्यक्रम चल रहा है.

रंगमंडप द्वारा नाटक 'औरत' की प्रस्तुति

रंगमंडप संस्था द्वारा सफदर हाशमी लिखित और शारदा सिंह द्वारा निर्देशित नाटक 'औरत' का मंचन भी हुआ. इस नाटक के माध्यम से यह दिखाया गया कि महिला चाहे घरेलू लड़की हो, कॉलेज की छात्रा हो, कामकाजी हो या किसी भी रूप में हो उसे हर मोड़ पर हर परिस्थितियों में पुरुषों का शोषण और प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. अभिनय करनेवालों में थीं रुबी खातुन, बिनीता सिंह, अन्नू प्रिया, पुरुष कलाकार थे रोहित चंद्रा, शिवा, शैलेश कुमार, लवकुश, संयम, राज उपाध्याय, ऋषीकेश झा एवं राजीव रॉय. नाटक दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ने में खूब सफल रहा और लोगों ने करतल च्वनि के साथ इसको प्रकट भी किया.

'राजनीति में महिलाएँ' पर परिचर्चा

महिलाओं के सशक्तीकरण के  लिए महिलाओं को राजनीति में आना ही पड़ेगा. परिचर्चा में बिहार की राजनीतिज्ञ सुहेली मेहता और अमृता भूषण राठौर ने परिचर्चा में भाग लिया जबकि संचालन निवेदिता ने किया. राजनीति में आनेवाली महिलायें कहीं ज्यादा आत्मनिर्भर होती हैं . महिलाओं में अपना अस्तित्व बचाये रखने की जागरूकता होनी चाहिए और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी  तभी वह पितृसत्तात्मक सामजिक संरचना से बाहर निकल पाएगी.

सीता के देश में स्त्री कथा - पाखी परिचर्चा

स्त्री की दशा पर एक और  परिचर्चा आयोजित हुई जिसे 'पाखी' पत्रिका ने प्रायोजित किया था. इस में अरुण कमल, अवधेश प्रीत, अलपना मिश्रा और  'पाखी' के सम्पादक प्रेम भारद्वाज ने भाग लिया. प्रम भारद्वाज ने कहा कि स्त्री और धरती की नियति एक समान है क्योंकि दोनो को बाँटा जाता है. राम से बड़ी लड़ाई लड़ी सीता ने. अल्पना मिश्र  ने कहा कि सीता रूढ़ियों को तोड़नेवाली थी और इसलिए उसने अपनी माँ सुनयना को मुखाग्नि दी थी. अवधेश प्रीत ने कहा कि सीता का चरित्र स्वाभाविक न होकर एक गढ़ा गया पात्र है जिसमें पितृसत्तात्मक सोच का पोषण होता है. अरुण कमल ने कहा कि सीता ही नहींं द्रौपदी, शूपर्नखा और राधा की चर्चा होनी चाहिए ताकि स्त्री को और अधिक जाना जा सके. 
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वीडियो लिंक, पाखी परिचर्चा (सौजन्य- लता प्रासर)- 
आलेख - हेमन्त दास 'हिम' 
छायाचित्र - लता प्रासर, हेमन्त 'हिम', अरबिंद पासवान
विशेष आभार - कुमार पंकजेश, मीडिया प्रभारी, पटना पुस्तक मेला
प्रतिक्रिया भेजने हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com

आलोक धन्वा (मध्य) के साथ अरविन्द पासवान (दाहिने) और लता प्रासर (बायें)
अरुण कमल (मध्य) के साथ लता प्रासर
(बायें से)  लता प्रासर, विभा रानी श्रीवास्तव और अन्य गणमान्य महिला साहित्यकार 



अरविन्द पासवान (दाहिने) अन्य साहित्यकारों के साथ

गणमान्य साहित्यकार




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