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लेखक का स्तर रचनात्मक आयतन, उर्वरता और दृष्टि पर निर्भर
ट्रे
कर शाम्भवी के यात्रा वृतांत पर लेखिका से हबीबुल्लाह की बातचीत
लड़कियों को अकेले भारत में घूमने में कोई असुरक्षा नहीं है. एक बार जब वे भारत में यात्रा पर अकेले चली जातीं हैं और सुरक्षित लौट कर आ जाती हैं तो उनका आत्मविश्वास कई गुणा बढ़ जाता है. शाम्भवी ने अपने ट्रेकिंग के अनुभव को साझा किया. हाँ, कहीं यात्रा करने के पहले उस स्थान की पर्याप्त जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए और वहाँ से जुड़ी विशेष बातों को समझ लेना चाहिए. नये स्थान की संस्कृति को अगर आदरभाव से आप देखेंगे तो आत्मसात करने में कोई दिक्कत नहीं होगी.
कल यानी 6.12.2017 के कार्यक्रम
1. दोदिवसीय कविता कार्यशाला प्रात: 9 से 11 बजे तक
2. नुक्कड़ नाटक - 1 बजे दोपहर
3. काव्य पाठ - 2.20 बजे
4. 'नई किताब' के अंतर्गत
गीताश्री से सुनीता गुप्ता की बातचीत - 3.30 बजे अपराह्न
5. 'राष्ट्रवाद' पर चर्चा -उर्मिलेश और कृष्णकान्त ओझा
6. प्लूटो, तक्षशिला पब्लीकेशन - 4.30 बजे अपराह्न
एचएमटी द्वारा प्रस्तुत नाटक पालकी पालना
बाल-विवाह के बुरे परिणामों को बतलाता यह नाटक के लेखक थे विनोद रस्तोगी और निर्देशन था सुरेश कुमार हज्जू का.
संजय कुन्दन के 'तीन ताल' पर स्मिता की बातचीत
यह उपन्यास उदारीकरण के बाद कोरपोरेट हाउस, व्यापारिक संस्थान और मीडिया हाउस में आयी नैतिक गिरावटों को दिखाता है. साथ ही सोशल मीडिया की भूमिका पर कड़े सवाल उठाता है जिसने लोकतन्त्र का ऐसा विस्फोट कर दिया है कि उसका प्रयोग अराजकता को फैलाने में होने लगा है.
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छोटे शहरों की बड़ी रचनाशीलता' पर डॉ. अल्पना मिश्र और नीलिमा सिंह से सुशील कु.भारद्वाज का वार्तालाप
सुशील कुमार भारद्वाज के प्रश्न के उत्तर में डॉ. अल्पना मिश्र ने कहा कि छोटे शहर या बड़े शहर के लेखक होने से उसकी स्तरीयता का सम्बंध नहीं होता. वह तो लेखक के रचनात्मक आयातन, उर्वरता और दृष्टि पर निर्भर करता है. हाँ बड़े शहरों में रहकर अपनी संवेदनशीलता को बचाये रखना एक बड़ी चुनौती है. नीलिमा सिंह ने बताया कि छोटे कस्बों या शहरों से सम्बंध रखते हुए भी नागार्जुन, रेणु, शिवपूजन सहाय और दिनकर ने जो रचनाएँ लिखीं वो कालजयी हो गईं.
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विशेष आभार - कुमार पंकजेश, मीडिया प्रभारी
आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
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