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इसी कमरे में अरमानों का एक बिस्तर रहा होगा
पटना, 21.8.2017. अपने एकल काव्य संग्रह आने के काफी पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त कर चुके शायर समीर परिमल की गज़लों का एकल संग्रह 'दिल्ली चीखती है' का लोकार्पण सामयिक परिवेश पत्रिका और क्लब द्वारा अभिलेख भवन, पटना में आयोजित एक समारोह में हुआ. पुस्तक की गज़लों पर आधारित, श्रुति मेहरोत्रा की आवाज और अरबिंद बैठा की धुन में बने एल्बम 'बेखबर' का लोकार्पण भी हुआ जो प्रख्यात वयोवृद्ध कवि सत्यनारायण, प्रसिद्ध शायर संजय कुमार कुन्दन एवं कासिम खुरशीद, मशहूर साहित्यकार ममता मेहरोत्रा, रेलवे उच्चाधिकारी दिलीप कुमार, बिहार पुलिस के अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह और रचयिता समीर परिमल के कर-कमलों से सम्पन्न हुआ.
सबसे पहले युवा कवयित्री नेहा नारायण सिंह ने मंच से उद्घोषणा कर कार्यक्रम में पधारे हुए सभी आगन्तुकों का स्वागत किया. फिर संचालन हेतु ओजस्वी युवा शायर रामनाथ शोधार्थी को आमंत्रित किया गया जिन्होंने पूरी कार्रवाई का बखूबी संचालन किया. मंच पर वरिष्ठ नामित सदस्यों के आने के बाद उनका पुष्प-गुच्छ से सम्मान किया गया और तत्पश्चात उन सबों के द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत कार्यक्रम का प्रारम्भ हुआ. फिर गज़ल-संग्रह 'दिल्ली चीखती है' का लोकार्पण किया गया.
लोकार्पण के बाद सभी मंचासीन सदस्यों द्वारा पुस्तक और उसके शायर समीर परिमल के बारे में चर्चा हुई. सामयिक परिवेश पत्रिका की प्रधान सम्पादक और मशहूर लेखिका ममता मेहरोत्रा ने सामयिक परिवेश पत्रिका के बारे में बताया कि वह आठ सालों से चल रही है और समीर परिमल के सम्पादक बनने से उसके प्रकाशन में नियमितता आई है. यह पत्रिका विशेष रूप से नए साहित्यकारों को अवसर प्रदान कर उन्हें साहित्यिक जागरूकता प्रदान करने का कार्य कर रही है. उद्देश्य है युवाओं की ऊर्जा को रचनात्मक दिशा प्रदान करना और इस दिशा में यह पत्रिका सफल रही है. साथ ही सामयिक परिवेश एक क्लब का भी कार्य कर रही है और समय-समय पर ऐसे ही अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर युवा प्रतिभाओं और साहित्यिक विभूतियों का सम्मान कर उनका मनोबल बढ़ाने का कार्य किया करती है. अभी मधुबनी में एक टीम भेजी जाने वाली है जो वहाँ आई बाढ़ में लोगों को राहत प्रदान कर सके.
फिर अजीम शायर संजय कुमार कुंन्दन को बुलाया गया. उन्होंने शायराना बारीकीयों का हवाला देते हुए यह बताया कि किस तरह से समीर परिमल की गजलें वो सारा गुण रखती हैं जो एक महान शायर में होता है. उनकी गजलें सियासी तो नहीं है पर सियासत से नावाकिफ भी नहीं है. आम आदमी की जिन्दगी इतनी बदतर है कि उसे जिन्दगी कहना भी उचित नहीं. उन्हीं का एक शेर पढ़्ते हुए उन्होंने कहा-
"हम फकीरों के काबिल तू रही कहाँ
जा अमीरों की कोठी में मर जिन्दगी"
उन्होंने परिमल की एक शेर पढ़ कर बताया कि अमूर्त चीजों का 'पर्सनोफिकेशन' एक बड़ा शायर बड़ी नजाकत से करता है-
जनाजा जो 'परिमल का निकला गली से
मिलाकर कदम रंजो-गम चल पड़े हैं.
इसमें जो रंज और गम को शायर के जनाजे में आदमी की तरह शरीक होने की बात कही गई है उसका संप्रेषण दिल को बेधनेवाला है.
अगली बारी थी एक और मशहूर और वजनी शेर कहनेवाले शायर कासिम खुरशीद की. उन्होंने समीर परिमल की पुस्तक की भूमिका लिखी है और कहा कि भूमिका लिखने में ज्यादा समय इसलिए लगा कि वह यह समझ नहीं पा रहे थे कि समीर परिमल को किन शायरों के सिलसिले से जोड़ा जाय. इनकी शायरी तो महान है लेकिन इतनी मौलिक है कि किसी पुराने शायर से जोड़ना बड़ा कठिन लगा. कासिम ने भी परिमल के अनेक शेरों का हवाला देकर उनकी शायराना खूबियों को श्रोताओं तक पहुँचाया.
एक शेर देखिए-
दरो-दीवार से आँसू टपकते हैं लहू बनकर
इसी कमरे में अरमानों का एक बिस्तर रहा होगा
समीर की किताब तीन खण्डॉं में बँटी हैं- बेचैनियाँ, मंजिले-दीवानगी और दिल्ली चीखती है. किताब का शीर्शक 'दिल्ली चीखती है' पर कासिम ने कहा कि दिल्ली तो बस एक प्रतीक मात्र है- सियासत, शायरी और सभ्यता के केंद्र का. चीखना भी अनेक अर्थों में हो सकता है जो समीर की शायरी को पढ़्ने से स्पष्ट होगा. कासिम ने कहा कि पूरी किताब की भूमिका लिखने के लिए उन्हें बहुत ध्यान लगाकर सारी गज़लों को पढ़ना पड़ा और चूँकि वो स्वयं भी शायर हैं इसलिए यह दावे के साथ कह सकते हैं कि समीर एक कद्दावर शायर हैं और निश्चित रूप से इनकी पूरे देश में पहचान बनेगी.
फिर दिलीप कुमार आये जो रेलवे के बड़े अधिकारी हैं लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि वे समीर परिमल के बचपन के दोस्त हैं. वह दोस्ती तब से लेकर अब तक कायम है. उन्होंने बड़े शायराना अंदाज में कहा कि शायरों को कभी-कभी गुनाह करना पड़ता है और एक ऐसे करीबी दोस्त के कार्यक्रम मुख्य अतिथि के पद को ग्रहण कर उन्होंने गुनाह किया है. दिलीप कुमार ने दिल्ली को बल-प्रयोग करनेवाले शासक या प्रशासक के पर्याय के रूप में देखने को कहा और कहा कि सच में वह चीखती रहती है. दिलीप कुमार भी साहित्यकार हैं और इसलिए समीर परिमल की शायरी के अंदाजे-बयाँ के अनोखेपन को समझ पाते हैं. उदाहरण के लिए एक शेर देखा जा सकता है-
पशेमाँ है वो मुझको जीतकर भी
मुझे भी हार का सदमा नहीं है
तत्पश्चात बिहार पुलिस के मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि वे स्वयँ तो साहित्यकार नहीं है लेकिन जब वो समीर की पुस्तक को पलट कर देख रहे थे तो समझ ही नहीं पाये कि किस गजल को अधिक श्रेष्ठ कहें. हर एक गज़ल एक से बढ़ के एक है. समीर जरूर बहुत बड़े शायर हैं और पूरे देश में सभी इनके दीवाने बनेंगे. उन्होंने समीर परिमल को अपनी हार्दिक बधाई दी और कहा कि उनकी खासियता है कि उनकी शायरी सब को जोरदार ढंग से अपील करती है -चाहे पढ़नेवाला साहित्यिक व्यक्ति हो या नहीं.
इस कार्यक्रम के प्रायोजक थे अविनाश झा. उन्होंने प्रारम्भिक चरण में समीर की गजलों को संगीत देनेवाले अरबिंद बैठा से परिचय करवाया और कहा कि ऐसे कार्यक्रमों को प्रायोजित करना सौभाग्य की बात है. पुस्तक पढ़ने के बाद वो अपने साथियों के साथ इसे प्रायोजित करने के कार्य को सार्थक समझ रहे हैं.
अध्यक्ष स्वयँ अंतिम वक्ता हुआ करते हैं और वही हुआ प्रसिद्ध वरिष्ठतम सत्यनारायण के साथ. उन्होंने समीर परिमल के बारे में कहा कि चाहे मठाधीश गण समीर परिमल को बड़ा शायर कहें न कहें वे मेरे लिए हमेशा बहुत प्रिय शायर रहेंगे. उन्होंने मिर्जा गालिब के एक शेर का हवाला दिया-
वैसे तो और भी हैं जहाँ में सुखनवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि गालिब का है अंदाजे-बयाँ और
जैसे गालिब की किसी से तुलना नहीं हो सकती उसी तरह से समीर भी वह जलता हुआ चिराग है जिसकी रौशनी की तुलना किसी और से नहीं की जा सकती. यह युवा शायर अभी और बढ़ेगा और इसमें और भी निखार आएगा.
कार्यक्रम के दूसरे चरण में 'दिल्ली चीखती है' के शायर समीर परिमल खुद आये और बिना किसी भूमिका के सीधे अपनी शायरी के चंद नमूने पेश किये. वैसे तो पूरे कार्यक्रम के दौरान पूरा सभागार तालियों से गूञता रहा और ठस्सम-ठस्स भरा रहा और यहाँ तक कि पुस्तक के रचयिता के कुछ निजी दोस्तों को भी खड़े रहना पड़ा था. लेकिन समीर परिमल जब स्वयँ पढ़ने आये तो लोग बेताब हो गए और उपस्थित कुछ लोगों को शांत करवाना पड़ा ताकि व्यवस्था कायम रहे.
समीर परिमल द्वारा पढ़ी गई गज़लों के कुछ शेर नीचे दिये पढ़े जा सकते हैं-
तेरी बुनियाद में शामिल कई मासूम चीखें हैं
इमारत बन रही होगी तो क्या मंजर रहा होगा.
प्यार देके भी मिले प्यार जरूरी तो नहीं
हर दफा हम हों खतावार जरूरी तो नहीं
मुझसे इस प्यास की शिद्दत न संभाली जाए
सच तो ये है कि मुहब्बत न संभाली जाए
अंत में सभी मंचासीन गणमान्य साहित्यकारों को प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया और तत्पश्चात कार्यक्रम के संचालक रामनाथ शोधार्थी ने अविनाश झा को धन्यवाद ज्ञापण हेतु बुलाया जिन्होंने सभी आगंतुकों का हृदय से धन्यवाद ज्ञापण किया. मंचासीन सदस्यों के अलावे उपस्थित साहित्यकारों में शम्भू पी. सिंह, प्रभात सरसिज, शहंशाह आलम, डॉ. सतीशराज
पुष्करणा, डॉ. फ़िरोज़ मंसूरी,
नीलांशु रंजन, मनीष कुमार, सुधा मिश्रा,
राजकिशोर राजन, अक्स समस्तीपुरी, सूरज ठाकुर बिहारी, सुजीत वर्मा, पूनम आनंद, विभा सिन्हा, राकेश प्रियदर्शी, अनीश अंकुर, हेमन्त दास 'हिम', कुमार पंकजेश, अस्स्मुरारी नन्दन मिश्र, नरेन्द्र कुमार, नीलम श्रीवास्तव, श्रीकान्त सत्यादर्शी, सिद्धेश्वर, घनश्याम, बी.एन.विश्वकर्मा, वसुंधरा पाण्डेय, विभा रानी श्रीवास्तव, प्रेमलता सिंह, कुन्दन आनंद, ज्योति गुप्ता, प्रीति सेन आदि भी शामिल थे. साथ ही आगन्तुक गणमान्य साहित्यकारों में प्रसिद्ध
लोकगायिका नीतू नवगीत, गणेश जी बाग़ी,
ओम प्रकाश सिंह, सागरिका चौधरी, भावना शेखर,
रेशमा प्रसाद आदि भी थे.
पुस्तक की भूमिका कासिम खुरशीद ने और फ्लैप कुँअर बेचैन ने लिखा है.शुभांजलि प्रकाशन कानपुर द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य रु. 300/= है (सजिल्द). पुस्तक पाने के लिए और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 9934796866 या 9472013051 से प्राप्त की जा सकती है तथा पुस्तक विक्रय हेतु अमेजन, फ्लिपकार्ट,शब्द्नगरी पर भी उपलब्ध है.
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पुस्तक 'दिल्ली चीखती है' के शायर समीर परिमल का ईमेल: samir.parimal@gmail.com
रिपोर्ट के लेखक : हेमन्त दास 'हिम'
आप अपनी प्रतिक्रिया ईमेल से भेज सकते हैं जिस के लिए आइडी है: hemantdas_2001@yahoo.com
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