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रामलीला वाले राम नहीं बल्कि जन-जन में बसे राम ही सच्चे आराध्य
भक्तिभाव अक्सर
ढकोसलेबाजी की ओर मुड़ जाता है पर मानवीय सहानुभूति का भाव कभी विचलित नहीं होता.
प्रेमचंद की लिखी कहानी और मो.जहाँगीर द्वारा निर्देशित यह नाटक इस बात को पूरी
मार्मिकता के साथ अभिव्यक्त करने में कामयाब रहा.
मोहम्मद जहाँगीर एक युवा होते हुए भी वरिष्ठ निर्देशक होने की क्षमता रखते
हैं. इस सफल प्रस्तुति में उनका कौशल तो दिखा ही अभिनेताओं ने भी अपनी परिपक्वता
का उदाहरण प्रस्तुत किया. राम, सीता और लक्षमण
की भूमिका में गरिमापूर्ण आभा दिख रही थी. पुन: जब वे सामान्य जीवन में आते हैं तो
उनकी मजबूरी और गरीबी की कारुण दशा भी झलकी. एक लड़का जो उनके प्रति न सिर्फ
भक्तिभाव बल्कि मानवीय प्रेम और सहानुभूति का भाव भी रखता है उनकी तीमारदारी में
लगा रहता है, उसने भी अच्छा
अभिनय किया. नर्तकी ने लटके-झटके और चोंचलेबाजी दिखाने में कोई कसर न छोड़ी और
नृत्य-संयोजन भी बढ़िया था. गुल्ली ड्ण्डे का खेल विशेष रूप से लुभावना था.
वस्त्र-विन्यास, मंच सज्जा
आवश्यकता के अनुरूप थी. ध्वनि-प्रभाव थी सही ढंग से काम कर रहा था. हाँ, प्रकाश-संयोजन अच्छा था पर शायद उसमें थोड़ी और
सजगता की गुंजाइश लगती है. संवाद अदायगी के समय पात्र पर सामान्यतया पर्याप्त
रौशनी होनी चाहिए जब तक कि रौशनी कम रखने का कोई बहुत खास कारण न हो.
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नीचे प्रस्तुत है
आयोजकों द्वारा इस नाट्य-प्रस्ततुति की जानकारी:
रंग-मार्च द्वारा आयोजित थियेटरवाला
नाट्योत्सव के चौथे दिन आशा, छपरा द्वारा
प्रेमचंद की कहानी ‘राम लीला’
का मंचन युवा रंगकर्मी मो. जहाँगीर के निर्देशन
में किया गया। ये नाटक एक बच्चे के मन से समाज को समझने की कोशिश है। एक बच्चा
समाज के दोहरे वसूलों को समझ नहीं पाता है, वो रामलीला में राम बने रामलीला समाप्त हो जाती है, तो उसी राम बने व्यक्ति को कोई पूछता तक नहीं।
उसके पास वापस जाने के लिए किराये तक के पैसे नहीं होते जबकि दूसरी ओर नाचने वाली
औरतों पर लोग झूठी शान और रॉब दिखाने के नाम पर पैसे लुटाते हैं, जिसमें उसके पिता भी शामिल होते हैं। वह यह
देखकर बेचैन हो जाता है, वह अपने पिता से
भी पैसे मांगता है, मगर वो इंकार कर
देते हैं, जिससे बच्चे के मन में
पिता के प्रति नफरत भर जाती है।
यह नाटक समाज के ढ़ोंग व पाखंड का पोल भी
खोलता है, जहाँ समाज खुद दोहरा
चरित्र रखता है और हर दूसरा आदमी एक दूसरे को नसीहत देता रहता है। मध्यप्रदेश
स्कूल ऑफ ड्रामा से प्रशिक्षित मो. जहाँगीर ने गायन मंडली के माध्यम से नाटक को
विस्तार दिया है और अभिनेताओं के माध्यम से हीं परिवेश के निर्माण की कोशिश की है।
विभिन्न प्रतीक चिन्हों का भी उन्होंने सफल प्रयोग किया है।
मंच पर अभिनेता- चन्दन कुमार प्रियदर्शी,
अजित कुमार, मो. फुरकान, राहुल कुमार,
शशांक शेखर, उज्ज्वल कुमार और सन्नी कुमार गुप्ता।
कोरस - तेजनारायण, अनुराग, अंशु एवं
राजकुमार।
प्रकाश परिकल्पना - रौशन कुमार
वस्त्र विन्यास
- शिल्पा भारती
संगीत
- अजित कुमार
स्वर -
मो0 आसिफ, स्वरम उपाध्याय, निशा कुमार, उदय कुमार
हारमोनियम
- मो0 आसिफ, ढोलक- हिरालाल, नगाड़ा- अरूण कुमार,
शंख-घूंघरू - नंदकिशोर
रूप सज्जा
- जितेन्द्र जीतू
रंग-वस्तु
- सत्य प्रकाश एवं समूह
प्रायोजित संगीत - राजीव कुमार
कार्ड फोल्डर, प्रचार - प्रदीप्त मिश्रा
फोटोग्राफी
- संदीप कुमार व सत्य प्रकाश
पूर्वाभ्यास प्रभारी - तेजनारायण / प्रेक्षागृह प्रभारी - तरुण कुमार
कहानी -
मुंशी प्रेमचंद
परिकल्पना/निर्देशन - मोहम्मद जहाँगीर
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प्रतिक्रिया भेजने के लिए इमेल आइडी: hemantdas_2001@yahoo.com
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