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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday 2 August 2017

परिचय दास की भोजपुरी कविताएँ- 'सिनेमा' / अंग्रेजी अनुवाद के साथ ('Cinema' -Bhojpuri poems by Parichay Das with English translation)

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सलीमा प  तीनि गो कबिता
(Three poems on Cinema)
परिचय दास / Parichay Das


दृस्य  में कविता
Poem in visuals 
(English translation of the poem follows the Hindi text)

सलीमा ईगो दृस्य भाखा हवे 
जेम्में हमनी के देख लीहल जाला 
आपन छबि 
अपन दुख-सुख
अपन उछाह
अपन मजबूरी
हमनी के ओम्मन जियल जाला 
Cinema is a visual language
In which whole of our entity is shown
Our image
Our pleasure and pain
Our festivity
Our compulsions
The self beings of ourselves are lived in that

अपन सचाई
अपन कल्पना
अपन फंतासी
अपन सच खाली खुरदुरे यथार्थ ना होला
Our truth
Our dreams 
Our fantasy 
Our entity is not merely a rugged reality

ओम्मन जरूर कुछ अइसन होला
जे से हमनी के  रूपक बनेला 
जे खाली जियले  सच के  सच मानेलें
ऊ  सच के तनी कमतर बनावेलन 
Definitely there is something such 
By which our allegory is created
If you take the lived life as the only reality
Then it would be demeaning of the actuality of life

जिनिगी  एगो  उत्प्रेक्षो हवे
जेम्मे  रंगावली भरल हवे
तब्बे त ऊ रंगन के संकुल हवे
एगो  अइसन  भाखा  रचत पिरिथिवी 
जेम्मे विविध आयाम हवें
Life is also a little bit of credulity
Full of colourful pictorials
And so contains the whole spectrum of colours
An earth creating such a language
Where there are different dimensions

सलीमा नियर हवे जिनिगी 
कुछ ओइसने
कुछ ओसे भिन्न प्रकट- 
अकथ  सब्दन  के   अकार देत....
Life is just like a cinema
Something like that
And something that emanates differently
Shaping the words not spoken.
***

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कथा जइसन
Like a story
(English translation of the poem follows the Hindi text)

सलीमा एगो कथा हवे
कथा से परहूं
कवनो  कथा सम्पूरन ना  होले
एही से  एगो  कथा जहाँ खतम होले
दुसरकी  ऊहें  से सूरू  हो जाले
कथा कुल्हि परस्पर जुड़ल होली सन
कई बेर  एक दुसरे  के  काटत
का कवनो  हिस्सा अपनों  कटि जाला ?
Cinema is a story
And also beyond that
No story happens to be complete
So the point where one story ends
Another begins exactly 
The stories as a whole remain intertwined 
Often cutting across each other
Do some part of ourselves is ever chopped?

जरूरे कटत होखी   
काहें से कि  ओके  देखत तकलीफ काहें होले ?
अफवाह, किंवदंती , असलियत , तारतम्य : 
सब के  जोड़ दिहल जाव त कवनो  कथा बनेले
साइत बनत- बनत बनेले
कई बेर  बिगरियो जाले  
बिगरत   बनेले , बनत बिगरेले 
Sure it must be getting chopped 
As why we feel pain while looking at that
Rumour, legends, reality and sequence
If you add them all, it's a story
Perhaps in several efforts it is formed
Sometimes it goes awry too
It is formed after deformation and deformed after formation

इहे  खटमिट्ठापन त ओके  जीए लायक बनावेला  
जेके कथा कहल जाला
बिल्कुल सिरका नीयर जेम्में  तनी गुरवो होखे
केहू के कथा आपन हवे, अपन कथा केहू दुसरे क
एक अभिन्नता में भिन्नता , भिन्नता में अभिन्नता
कथा  कुल्हि खाली  फिलिमिये में ना होलीं सन
हमार कथा खुद  सलीमा के रील  हईं  सन 
स्मृति में..
अनुभव के अगाध में ! ...
This very sourness makes it livable
Which is called as a story
Perfectly like a vinegar mixed with a little jaggery
 Someones's story is of yours and/ 
 your story is of someone else
An oneness in differences and differences in oneself
The whole story is not only in the very film
Our story does also become like a reel of cinema
In the memory
In the unfathomable experiences.
****


.................................................................................


तिउहार जइसन फिलिम
Like a festival

फिलिम तिउहार  बन जालीं  सन
हमनी के  जिजीविसा  क 
हमनी के  संघर्स  क 
हमनी के सपनन क 
हमनी के धैर्यसील वर्तमान क 
हमनी के  सुदूर भविस्य   क  .
बेहतर फिलिम हमनी भित्तर जिनिगी के भरोस जगावेली सन 
खाली  हमनी अकारथ नइखीं जा
बतावेलीं 
चुनौती भरेलीं  हमनी में
जिनिगी  केतनी अमूल्य हवे 
ई हमनी सहजे  जान लिहल जाला  
थोरिके सतर्कता से उहवाँ
फिलिम क साकार भासा 
 हमनी के बिकाऊ होखला से विरत करेलीं सन
ऊ  अन्वेस  करेलीं  हमनी में  हमनी के विराट
फिलिम  हमनी के दरसावेलीं  
कि लघुता में केतनी  दीर्घता ह
उपस्थित करत अपने प्रतिबिम्बन के समकोन  पर.
..............................................
(भोजपुरी में नीचे पढ़िये) 
कवि-परिचय: परिचय दास भोजपुरी के सबसे बड़े कवियों में से हैं और मैथिली-भोजपुरी अकादमी के सचिव रह चुके हैं. इनकी कविताएँ जीवन-दर्शन की गहराइयों में उतरी हुई कविताएँ हैं
Introduction of the poet: Parichay Das has not only written contemporary discourses but has also attempted to give Indian cultural poetry, Indian citicism and essays a new form. He used a unique style in poetry. He is a peot, novelist, critic, singer, painter and editor. More than 30 literary books in Bhojpuri and Hindi has been authored or edited by him. He had been Secreatary of Hindi Academy, Delhi and Maithili-Bhojpuri Academy, Delhi. A connoisseur of Indian literature, he completed PhD on 'Sociology of the literature from Gorakhpur University and is an MA and D.Lit. in Hindi. 
Parichay Das
76, Din Apartments, Sector-4, New Delhi- 110078
Mobile-09968269237
E.MAIL-- parichaydass@rediffmail.com

कवि-परिचय: परिचय दास समकालीन टिप्पणियन  के अतिरिक्त भारतीय सांस्कृतिक कविता , भारतीय आलोचना और ललित निबंध में नए विन्यास के  प्रयत्न कइले बाड़न. कविता में ईगो बिसिस्ट  सैली क प्रयोग कइलन.  कवि-उपन्यासकार -आलोचक, गायक, अभिनेता, चित्रकार आ संपादक बाड़न . भोजपुरी , हिन्दी में लेखन . थारू जनजाति पर कार्य एवं पुस्तक . संस्कृति, गाँव -समाज, नगर-समाज , ग्रामगीत , ग्रामीण कला , साहित्य, नागरिक बोध आदि पर विस्तृत कार्य.  30  से अधिक पुस्तक लिखित/ सम्पादित .  जन्म: ग्राम - रामपुर कांधी [ देवलास ] , जिला- मऊ नाथ भंजन [ उत्तर प्रदेश ] .गोरखपुर विश्वविद्यालय से साहित्य के समाजशास्त्र में डॉक्टरेट .हिंदी में एम्. ए . तथा डी.लिट् खातिर  7 वर्ष ले  शोध. सार्क साहित्य सम्मेलन , नई दिल्ली में कविता-पाठ के अतिरिक्त भारत की ओर से नेपाल सरकार के नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान , काठमांडू में भोजपुरी पर व्याख्यान. रचना कई विश्वविद्यालयों के एम. ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित. भोजपुरी-मैथिली पत्रिका - 'परिछन' के संस्थापक-संपादक एवं हिन्दी पत्रिका - 'इंद्रप्रस्थ भारती' के संपादक रहलन  . हिन्दी अकादमी, दिल्ली एवं मैथिली-भोजपुरी अकादमी , दिल्ली के सचिव रहलन  .भारतीय साहित्य के मर्मज्ञ . हिंदी अकादमी , दिल्ली सरकार के सचिव रहत भारतीय कविता के महत्त्वाकांक्षी आयोजन आरम्भ करवलन  आ  '' इंद्रप्रस्थ भारती'' साहित्य-पत्रिका के भारतीय कविता के कई गो अंक निकललन ,जेम्में  गुजराती, मराठी, बांग्ला, असमिया, तेलग, कन्नड़, तमिल ,राजस्थानी आदि सगरो भारतीय  भाषा के  कविता के हिंदी अनुवाद प्रकाशित कइलन . भोजपुरी -मैथिली पत्रिका - ''परिछनसमकालीन दृष्टिबोध आ लीक से हट के पत्रिका रहल, जेम्में  रचना आ आलोचना के बरोब्बर सम्मान रहे.


भोजपुरी हिन्दी में लेखन . थारू जनजाति पर कार्य एवं पुस्तक . संस्कृतिगाँव -समाजनगर-समाज ग्रामगीत ग्रामीण कला साहित्यनागरिक बोध आदि पर विस्तृत कार्य.  30  से अधिक पुस्तक लिखित/ सम्पादित .  जन्म: ग्राम - रामपुर कांधी [ देवलास ] जिला- मऊ नाथ भंजन [ उत्तर प्रदेश ] .गोरखपुर विश्वविद्यालय से साहित्य के समाजशास्त्र में डॉक्टरेट .हिंदी में एम्. ए . तथा डी.लिट् खातिर  7 वर्ष ले  शोध. सार्क साहित्य सम्मेलन नई दिल्ली में कविता-पाठ के अतिरिक्त भारत की ओर से नेपाल सरकार के नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान काठमांडू में भोजपुरी पर व्याख्यान. रचना कई विश्वविद्यालयों के एम. ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित. भोजपुरी-मैथिली पत्रिका - 'परिछनके संस्थापक-संपादक एवं हिन्दी पत्रिका - 'इंद्रप्रस्थ भारतीके संपादक रहलन  . हिन्दी अकादमीदिल्ली एवं मैथिली-भोजपुरी अकादमी दिल्ली के सचिव रहलन  .भारतीय साहित्य के मर्मज्ञ . हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार के सचिव रहत भारतीय कविता के महत्त्वाकांक्षी आयोजन आरम्भ करवलन  आ  '' इंद्रप्रस्थ भारती'' साहित्य-पत्रिका के भारतीय कविता के कई गो अंक निकललनजेम्में गुजराती,  मराठी,  बांग्ला,  असमिया,  तेलग,  कन्नड़तमिल ,राजस्थानी आदि सगरो भारतीय  भाषा के  कविता के हिंदी अनुवाद प्रकाशित कइलन . भोजपुरी -मैथिली पत्रिका - ''परिछन'  समकालीन दृष्टिबोध आ लीक से हट के पत्रिका रहलजेम्में  रचना आ आलोचना के बरोब्बर सम्मान रहे.

प्रमुख प्रकाशित पुस्तक  - ';संसद भवन की छत पर खड़ा हो के ';, ';एक नया विन्यास';, ';युगपत समीकरण में';, ';पृथ्वी से रस ले के ';, ';चारुता';, ';आकांक्षा से अधिक सत्वर';, ';धूसर कविता';;, ';कविता चतुर्थी';, ';अनुपस्थित दिनांक';, ';कविता के मद्धिम आंच में';, ';मनुष्यता की भाषा का मर्म '; [सीताकांत महापात्र के रचनात्मकता पर संपादित पुस्तक ] , ';स्वप्न, संपर्क, स्मृति'; [ सीताकांत महापात्र पर संपादित दूसर पुस्तक ], ';भिखारी ठाकुर ' [ भोजपुरी में संपादित पुस्तक ] , भारत की पारम्परिक नाट्य शैलियाँ [ 2 खण्ड में ] , ';भारत के पर्व [ 2 खण्ड में ]आदि .

परिचय दास
76, दिन अपार्टमेंट्स , सेक्टर-4, द्वारका, नई दिल्ली-110078
मोबाइल-09968269237








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