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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday, 9 August 2017

'सिक्का', 'चोरी' और 'घूस' नाटकों का प्रदर्शन कला जागरण द्वारा 28.7.2017 को पटना में सम्पन्न

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भ्रष्टाचार के दंश से कराहती गरीब महिला
हेमन्त दास 'हिम' द्वारा नाटक की रिपोर्ट  
      ममता मेहरोत्रा ​​की तीन कहानियों का मंचन 28.7.2017 को पटना में कालिदास रंगालय के कला जागरण द्वारा किया गया। कुल तीन कहानियां एक बार में दिखायी गई  'सिक्का' ने एक महिला की पीड़ादायक स्थिति और समस्याओं को प्रदर्शित किया। सिक्का की कोई जाति नहीं होती है और कोई धर्म नहीं होता है यह उसी का हो जाता है जो इसे पास रखता है और इस तरह से यह जातिवाद और सांप्रदायिकता की बुराइयों से मुक्त है। कहानी 'चोरी' एक ऐसी तस्वीर को प्रस्तुत करती है जिसमें एक गरीब नौकर को दुकान के मालिक द्वारा पीटा जा रहा है क्योंकि उसने अपने दराज से 5000 / = रुपये चोरी किए हैं। मालिक केवल असहाय लड़के को पीटने भर से संतुष्ट नहीं होता,  वह पुलिस को भी फोन करता है और हवालात में लड़के को बंद कर दिया जाता है। उस नौकर की सभी गुजारिश अनसुनी रहती है कि वह एक आदतन चोर नहीं है, बस कुछ रुपये चोरी करने पड़े क्योंकि उसका मालिक मां के इलाज के लिए उसे अग्रिम देने के लिए तैयार नहीं था, जो बहुत ही गंभीर स्थिति में है। पुलिस अधिकारी और दुकान के मालिक बहुत खुश हैं कि उन्होंने इस चोर को अच्छा सबक दिया है। कुछ समय बाद, यह खबर सामने आती है कि नौकर की मां दवा की कमी के कारण मरने वाली है। फिर अंतिम क्षण में दुकान के मालिक ने लड़के को लॉक-अप से मुक्त करने का प्रयास किया और तब तक गरीब की मां की मृत्यु हो गई।

       'घूस' में भ्रष्ट व्यवस्था की नग्नता प्रदर्शित की गई है। एक छोटी लड़की का गांव के मुखिया के बेटे द्वारा बलात्कार किया जाता है लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती है। अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए, लड़की उच्च अधिकारी से मिलती है जो स्वयं महिला है। महिला अधिकारी निस्संदेह लड़की की समस्या को सुलझाने और दोषी लोगों को दंड देने में दिलचस्पी है। लेकिन यहाँ आड़े आता है आपादमस्तक भ्रष्टाचार में लिप्त व्यवस्था की अपारगम्यता। इस ध्वस्त व्यवस्था की नसों में सिर्फ भ्रष्टाचार प्रवाहित हो सकता है और न्याय प्रदान करने के किसी भी प्रयत्न का इस विकृत व्यवस्था में विफल हो जाना तय है। महिला अधिकारी अच्छी तरह से जानती है कि न तो उसके ऊपर के उच्चाधिकारीगण और न ही उसके नीचे के कर्मचारीगण एक ऐसी  निर्दोष पीड़ित लड़की के साथ न्याय करने के काम  में उसका समर्थन करेंगे जिसका न तो कोई गॉडफादर है और जो न ही पैसा खर्च कर सकती है। महिला अधिकारी को दुविधा में देखकर, अल्पव्यस्क  लड़की के माता-पिता सोचते हैं कि उनके पक्ष में आदेश पास करने के लिए महिला अधिकारी पैसा चाहती है। वे उसे कुछ सौ रुपए देते हैं। महिला अधिकारी स्तब्ध रह जाती है और आश्चर्य करती  है कि कैसे ये गरीब लोग स्तर पर भ्रष्टाचार को पूरी तरह से सहन करने के आदी है। कहानी यहाँ समाप्त होती है पर दर्शकों को यह अनुमान लगाने हेतु छोड़ दिया जाता है कि मासूम असहाय लड़की और उसके माता-पिता को और क्या समस्याएं आ रही होंगी.

     यूरेका किम, अदिति सिंह, सोनू राज, तृप्ति कुमारी, अरविंद कुमार, करिश्मा कुमारी, आकाश, गुंजन कुमार, मौसमी भारती, हरे कृष्ण सिंह, मुन्ना, चक्रपाणि पांडे, रणवीजय सिंह, अनुपम, अभिषेक कुमार आदि ने अपने-अपने  पात्रों के साथ न्याय किया। । वस्त्र-विन्यास हीरा लाल रॉय द्वारा मोहम्मद सद्दान ने किया, प्रकाश-संयोजन राजकुमार शर्मा ने किया, उपेंद्र कुमार द्वारा ध्वनि-व्यवस्था एवम संगीत नितेश ने दिया था और मंच-निर्माण प्रदीप गंगुली ने किया था। सुमन कुमार ने इस नाटक का निर्देशन किया। लेखिका प्रेमनाथ खन्ना की बेटी ममता मेहरोत्रा ​​हैं  जिनके पिता की स्मृति में कल जागरण ने तीन दिवसीय नाटक महोत्सव का आयोजन किया था।
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इस रिपोर्ट के लेखक हेमंत दास 'हिम' हैं
इस लेख के लेखक की ई-मेल: hemantdas_2001@yahoo.com



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