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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Friday, 10 November 2017

संजू दास - मिथिला लोक-कला को आधुनिक शैली से जोड़नेवाली प्रथम चित्रकार से एक भेटवार्ता


  स्त्री का रूप सौंदर्य नहीं बल्कि उसके श्रम और सपनों की तस्वीर
Successful amalgmation of Mithila painting with Modern Art

संजू दास वर्षों से एक विख्यात चित्रकार हैं. इनकी पेंटिग में मिथिला शैली के तत्व तो वर्तमान हैं किंतु वह उससे काफी आगे भी निकल चुकी है और मॉडर्न आर्ट की ओर प्रवृत है. इनकी पेंटिंग काफी मँहगी दामों पर बिकती हैं. . यूँ तो ये दिल्ली में रहती हैं लेकिन हाल ही में बिहार सरकार द्वारा वरीय कला पुरस्कार लेने हेतु आमंत्रण मिलने पर वह पटना आईं हुई थी. कहने की आवश्यकता नहीं कि बिहार मूल की इस कलाकार ने विश्व में बिहार का नाम पेंटिंग की अपनी एक नई शैली को ईजाद करके किया है. साथ ही उनके कला-विशेषज्ञ पति रविन्द्र कुमार दास को भी उनके उचित मार्गदर्शन का श्रेय जाता है. बिहारी धमाका आज उंनकी भेंटवार्ता प्रकाशित करते हुए काफी हर्ष का अनुभव कर रहा है कला के प्रति समर्पित इस युगल को नमन करता है.

1. आप अपना आरम्भिक परिचय दें l कला की ओर कैसे प्रवृत हुईं?


मेरा जन्म 1972 में दरभंगा जिले के कमरौली गावं में हुआ l मिथिला क्षेत्र की आम महिलाओं की तरह ही मैं  भी बचपन से ही घर की दीवारों पर तथा आँगन में अरिपन बनाया करती थी l 1995 में मेरी  शादी पटना आर्ट कालेज के एक प्रशिक्षित कलाकार रविन्द्र  दास से हुई l शादी के बाद से ही धीरे -धीरे आधुनिक कला और समकालीन कलाकारों से मेरा संवाद शुरू हो गया l मेरी पहली प्रदर्शंनी दिल्ली के ग्रीनलेज बैंक चाणक्यपुरी की दीर्घा में हुई l दिल्ली ललित कला अकादमी की दीर्घा में तीन और नन्द लाल बसु कला दीर्घा पटना सहित पांच एकल प्रदर्शंनी आयोजित कर चुकी हूँ  l मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाते हुए पंद्रह बीस वर्षों से दिल्ली स्थित अपने घर में लगातार रचनाशील हूँ और सक्रिय भी l

 2. आपने कला का प्रशिक्षण क्यों नहीं लिया?

हाँ मैंने कोई विधिवत कला शिक्षा नहीं ली l पहले मुझे इस बात का दुःख था पर अब नहीं है क्योंकि मेरा मानना है की कला सीखने के लिए गुरु से ज्यादा लगन की और रियाज की जरूरत है  वह कोई गुरु नहीं करेगा आपको ही करनी पड़ेगी  l मैं सभी लोक या समकालीन कलाकारों को अपना गुरु मानती हूँ जबकि मेरे घर में मेरे पति भी मेरे लिए गुरु की तरह ही  हैंl

3. आपकी कलाकृतिया मिथिला कला से अलग दिखती है जबकि आप कहती हैं मैंने इसी से प्रेरणा ली हैl

शुरूआती दिनों में मैं भी एक आम मिथिला कलाकार थी पर धीरे धीरे मैंने आधुनिक कला को सीखना शुरू कर दिया आज मेरी इच्छा समकालीन कला को जानने की है तकनीक रूप से मिथिला पेंटिंग की कुछ पहचान है, जैसे बड़ी बड़ी आँखें,बार्डर,रेखांकन और सतह पर तैरती हुई आकृतियां ये सब मेरी शुरूआती पेंटिंग में तो स्पष्ट पता चलता था l धीरे धीरे आधुनिक कलाओं के साथ मिलाकर जब प्रयोग करने लगी तो उसके मूल संयोजन शैली और बड़ी बड़ी आँखों को मैंने अपनी पेंटिंग में रहने दिया आज भी मेरी शैली की रचनाओं में अधिकतर आकृतियां तैरती दिखती हैं जिसकी प्रेरणा मिथिला कला से ली गयी है बचपन से लेकर आज तक की स्मृति पर आधारित ये सभी कलाकृतियां जीवन शैली और सामाजिक प्रवृतियों पर मेरी टिप्पणी के रूप में देखा जा सकता जो मेरे कविता-प्रेमयात्रा और मेरे जीवन के अनुभवों पर आधारित है ।

4. अपने पेंन्टिंग की शैली और तकनीक के बारे में कुछ बताएंl

मेरा काम इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि मिथिला लोक कला को आधुनिक कला से जोड़कर सृजन करनेवाली मैं पहली कलाकार हूँ l हालांकी बचपन से मेरे लिए कला कोई अजनबी चीज नहीं थी मगर आधुनिक या समकालीन कला के मुहावरों को समझना और उसे अपनी कलाकृतियों में समेटना कठिन जरूर था l मैंने अपने चित्रों में मिथिला शैली की आत्मा चटख रंगबारीक़ रेखाएंअलंकारिक बेलबूटे और प्रकृति को समेटा l मेरी पेंटिंग का आधार मिथिला कला है तो ट्रीटमेंट आधुनिक सदर्भ और प्रतीक मिथिला के ग्रामीण जीवन से जुड़े हैं l मैंने पहले छोटे छोटे रेखांकनों और जलरंगों से शुरुआत की अब अधिकतर ऐक्रेलिक माध्यम में बड़े बड़े काम करना पसंद करती हूँ l

5. पहली बार ख़ुशी कब मिली?

मुझे ख़ुशी है की मेरी पेंटिंग शुरुआत से ही बिकने लगी l कई देसी-विदेशी संग्रहकर्ताओं के अलावा कला दीर्घाओं ने भी मेरी पेंटिंग ख़रीदी l पर जब मेरे काम को राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा ने अपने संग्रह के लिए ख़रीदा l तब मुझे लगा शायद मेरा काम अब कलाकारों को भी पसंद आने लगा क्योंकि मेरी पेंटिंग तो पहले भी  बिक चुकी थी उसके बावजूद कलाकार समुदाय मुझे लोक कलाकार ही मानते थे

6. आपके अधिकतर पेंटिंग में नारी की प्रधानता रहती हैl कुछ बताइयेl

हाँ, शुरुआत से ही मेरे अधिकतर पेंटिंग में नारी की प्रधानता रहती है l मैं अन्य कलाकारों की तरह सिर्फ स्त्री के रूप सौन्दर्य को नहीं बल्कि उनके श्रम और सपने को चित्रित करती हूँ l क्योंकि मैंने देखा है आज भी गांव से लेकर शहर तक महिलाओं के श्रम या योगदान को नकारा जाता रहा है l मेरे चित्रों में ग्रामीण महिलाये और उनके जीवन संघर्ष तथा उनके मन की उड़ान को छूने की कोशिस की गयी l एक साधारण स्त्री की ग्रामीण संवेदनाओं और शहरी जीवन की जटिलताओं को भी चित्रित किया है l

7. कला बाजार की मंदी से कलाकारों पर क्या असर पड़ा?

सबसे बड़ा असर तो ये दिखता है की बड़े शहरों से कलाकार अब गॉवं और छोटे शहरों म लौट रहे  हैं कला में संघर्ष तभी संभव है जब कलाकार जीवित रहेगा l बहुत ख़ुशी की बात है राज्य सरकारें अब अपने कलाकारों को इस बुरे समय में मदद कर रही है l बड़े-बड़े कलाकार भी अब कला शिविरों में जाने लगे जलरंग और छोटे -छोटे रेखांकन, विडीयो कला और परफार्मिंग कला की मांग बढ़ी है l

8. कला की दुनिया में आप अपने को कहाँ पाती हैं?

कला की दुनिया विशाल समुद्र की तरह है आप जितनी गहराई में जाते हैं आपको और गहराई का अहसास होता है जब तक की आप उसमे विलीन नहीं हो जाते हैं l कला सतत कुछ नया करने या नया कुछ सिखने का नाम हैl हाँ, सफलता आपको विनम्र जरूर बनाती है l
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कलाकार का नाम  - संजू दास 
Name of Artist - Sanju Das
Mobile No– 9899242017
Email- ravindra_sanju@yahoo.com
You may send the responses also to this email- hemantdas_2001@yahoo.com









Sanju  Das with her husband and teacher Rabindra Kumar Das
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