गोष्ठी के लिए तय प्रोग्राम के अनुसार पहले सत्र में ‘दूसरा शनिवार’ के भावी कार्यक्रमों की रूप-रेखा पर बात होनी थी एवं दूसरे सत्र में शायर कुमार पंकजेश एवं रामनाथ शोधार्थी के ग़जलों का पाठ होना था. तो बात शुरू हुई और नरेन्द्र कुमार के द्वारा वरीय कवि प्रभात सरसिज को अपनी राय देने हेतु आमंत्रित किया गया. अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि हम साहित्य की दशा और दिशा तय कर सकते हैं या नहीं. बुरे दिनों में दिशाओं का निरूपण आवश्यक हो जाता है. साहित्य में नए लोगों की आलोचना का कोई केंद्र नहीं है, अतः नए केन्द्रों का निर्माण भी होना चाहिये. रचनाओं की अनुकूल भाव-भूमि पर टिप्पणी होनी चाहिये. केवल गुदगुदी फैलाने एवं तालियाँ बटोरने वाली रचनाएं ही नहीं बल्कि प्रतिरोध एवं राजनैतिक चेतना की कविताओ को सामने आना चाहिये.
संजय कुमार कुंदन ने चर्चा को आगे बढाते हुए कहा कि दूसरा शनिवार में प्रत्यक्ष रूप से कमी दिख रही है. इसे और आर्गनाइज्ड एवं सिस्टमैटिक होना चाहिये. बैनर होना चाहिये और एक माइक का भी इन्तेजाम किया जा सकता है. दूरभाष पर सूचना देते रहना चाहिए. अलग-अलग सदस्यों को इसके प्रसार हेतु जिम्मेदारी देनी चाहिये. डॉ. देवेन्द्र कुमार देवेश ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पढी गयी रचनाओं को छपवाने पर विचार किया जाना चाहिये. कुछ इन्हीं तरह के सुझाओं के साथ प्रथम सत्र की समाप्ति हुई.
दूसरे सत्र में रामनाथ शोधार्थी एवं कुमार पंकजेश ने नज्मों एवं गजलों का पाठ किया. रामनाथ शोधार्थी की ग़जलों पर बात करते हुए संजय कुमार कुन्दन ने कहा कि वे युवा हैं, पर लेखन में नए लोगों की तरह अनगढ़ता नहीं है. छोटी-छोटी अभिव्यक्ति को उठाते हैं और अहसास की गहराई तक जाते हैं. समाज के हर पहलू पर बात करते हुए सियासतदानों पर चोट करते हैं. वहीं कुमार पंकजेश की नज़्मों एवं गजलों में लताफ़त एवं मृदुलता है. उनमें सारे एहसासात संजोये हुए हैं. इन्हें नज्म में कहना कठिन होता है.
समीर परिमल का कहना था कि इन्हें पहले से ही सुनता आ रहा हूँ. रामनाथ ग़जलों में भी प्रयोगधर्मी हैं तथा कुमार पंकजेश की गजलें अंतर् से निकलती है. अस्मुरारी नंदन मिश्र ने कहा कि जबसे ‘दूसरा शनिवार’ से जुड़ा हूँ, रामनाथ शोधार्थी की गजलों में अलग तरह की ताजगी पाता हूँ. फुटकल शेर अधिक अच्छे लगे. उम्मीद है कि उनसे आगे और अच्छी रचनाएं सुनने को मिलेंगी. कुमार पंकजेश ग़जलों में संबंधों पर आत्मीयता से बात करते हैं, चाहे वह चिट्ठी वाली बात हो या बेटियों की.
चर्चा को आगे बढाते हुए अमीर हमजा ने कहा कि रामनाथ ग़जलों में अलग ढर्रे पर कहने का साहस रखते हैं और कुमार पंकजेश गूढ़ बातें कह जाते हैं. घनश्याम जी ने रचनाओं पर बात करते हुआ कहा कि शोधार्थी की गजलें प्रिय लगती हैं और इनके कहने का अंदाज नया है. सामाजिक, पारिवारिक एवं राष्ट्रीय सन्दर्भ आते हैं. पंकजेश जी की रचनाओं में भाव उच्च स्तर पर है. बहर पर थोड़ा ध्यान देना होगा. पहली बार शामिल हो रहीं लता प्राशर रामनाथ शोधार्थी की गजलों पर बोलीं कि वे मानस-पटल पर रहनेवाली एवं आंदोलित करनेवाली रचनाएं हैं. पंकजेश गंभीरता में बात रखते हैं जिसे सामान्यजन को समझने में भले कुछ कठिनाई महसूस हो, पर सुधीजनों को कोइ परेशानी नहीं होगी.
हेमंत दास हिम ने अपनी राय देते हुए कहा कि दोनों उम्दा शायर हैं. पंकजेश आत्मीय संबंधों की बात करते हैं तो शोधार्थी की ग़जलों में संदेश होता है तथा ये समकालीनता की बात करते हैं. अंत में ‘फिर मिलने’ के संकल्प के साथ नरेन्द्र कुमार द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया.
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आलेख - नरेन्द्र कुमार
रिपोर्टर का ईमेल - narendrapatna@gmail.com
फोटोग्राफ- संजय कुमार कुंदन
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