**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Monday, 3 July 2017

'सामयिक परिवेश' द्वारा बज़्म-ए-कासिम खुरशीद का आयोजन सम्पन्न

Blog pageview last count: 20176 (Check the latest figure on  computer or web version of 4G mobile)
आँखों में मगर मेरे फसाने की महक है


     पटना, 2 जुलाई. 2017. अभिलेख भवन,बेली रोड में सामयिक परिवेश नामक साहित्यिक संस्था और हिंदी पत्रिका ने ऊर्दू के प्रसिद्ध शायर कासिम खुरशीद के 60वें जन्मदिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें अनेक वक्ताओं ने कासिम के कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा की. चर्चा के बाद कासिम खुरशीद का एकल काव्य पाठ भी हुआ जिसमें उन्होंने सरल भाषा में दिल को छू लेने वाले शेरों को सुना कर खचाखच भरे सभागार में सब का मन मोह लिया. इस अवसर पर कासिम खुरशीद को कैफ अज़ीमाबादी अवार्ड से भी नवाजा गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे बिहार पुलिस मेन्स एसोशियेशन के अध्यक्ष मृत्युंजय प्रसाद सिंह. इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार सत्यनारायण, ऊर्दू एकादमी के प्रमुख अब्दुल कयूम अंसारी, मृत्युंजय प्रसाद सिंह, अवधेश प्रीत, 'सामयिक परिवेश' की प्रमुख सम्पादक ममता मेहरोत्रा, सम्पादक समीर परिमल, डॉ. विनय कुमार, इम्तियाज करीमी,  मुजफ्फरपुर से आये रमेश ऋतम्भर, आर.पी. घायल, सुजीत वर्मा आदि ने अपने विचार रखे. संचालन वरिष्ठ शायर संजय कुमार कुन्दन तथा धन्यवाद ज्ञापन रामनाथ शोधार्थी ने किया. इस अवसर पर भगवती प्र. द्विवेदी, कुमार पंकजेश, नरेन्द्र कुमार, पूनम सिन्हा, हेमन्त 'हिम' और अनेक प्रसिद्ध साहित्यकार भी उपस्थित थे. इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ.

       कार्यक्रम का आरम्भ करते हुए संजय कु. कुंदन  ने कासिम खुरशीद के सम्बंध में सुल्तान अख्तर द्वारा कही गई पाँच शानदार रुबाइयों को सुनाया.


      फिर साहित्यकार अवधेश प्रीत ने एक शेर सुनाकर अपना वक्तव्य शुरू किया-
"कत्ल होने से कब तक डरेंगे हम
कातिलों के मुहल्ले में घर है मेरा"
उन्होंने कासिम खुरशीद से कई दशकों पुराना सम्बंध बताया और कहा कि उन्होंने कासिम की अनेक कहानियों का अपने पत्र में प्रकाशन किया. विशेष रूप से कहानी 'पोस्टर' और 'शहर के चूहे' ने उन्हें बहुत प्रभावित किया. सच में आदमी पोस्टर ही तो है. बाहर से दिखता है रंगीन और सजा-धजा लेकिन दीवार से लगने वाला दूसरा भाग कितना बदरंग और कुरूप होता है. उन्होंने कहा कि उनके हर शेर में एक फलसफा नजर आता है जो इन्सानियत की रवायत से जुड़ता है.  संवेदनहीनता, समाज और साहित्य दोनो में बढ़ रही है जिसे तोड़ने की जरूरत है. कासिम जैसे शायर इसमें सहायक हैं. उन्होंने कासिम के शेरों को सुनाते हुए कहा-
"रोने दे  मुझे यार पत्थर नहीं हूँ मैं
टूटता कहीं हूँ, उखड़ता कहीं हूँ मैं
टूटे घोंसलों का कोई गिला नहीं
तूफाँ थक गया है लेकिन वहीं हूँ मैं"

     'सामयिक परिवेश की प्रधान सम्पादक ममता मेहरोत्रा ने कहा कि कासिम साहब से उनका परिचय दस साल पुराना है और इस दौरान उनका उनके साथ बहुत मजबूत सामाजिक रिश्ता रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि उनको सम्मान देने का उनके समूह के कार्यक्रम का उद्देश्य रचनाकर्म को बढ़ावा देना है ताकि बड़े सकारात्मक सामाजिक बदलाव लाये जा सकें.

        फिर 'सामयिक परिवेश' के सम्पादक समीर परिमल ने अपना भाषण दिया और बताया कि 'सामयिक परिवेश' सिर्फ एक पत्रिका नहीं बल्कि एक क्लब भी है जो इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता रहेगा. समय-समय पर साहित्यकारों को सम्मानित किया जाएगा और प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाएंगी. उन्होंने बताया कि खन्ना संसमरण प्रतियोगिता का परिणाम जुलाई में घोषित किया जाएगा.

       उसके पश्चात सुजीत वर्मा ने अपना छात्रकालीन संसकरण सुनाते हुए कहा कि किस तरह से वो नरकटियागंज स बेतिया बिना टिकट के गए थे कासिम साहब की गज़लों को सुनने. फिर वरिष्ठ साहित्यकार इम्तियाज करीमी ने अपने विचार व्यकत किये और कासिम खुरशीद के अनेक शेरों को पढ़ा.

       रमेश ऋतम्भर ने कहा कि कासिम खुरशीद अभी इस उम्र में जब कि वो यौवन काल को गुजार चुके हैं, नई गजलें लिखते जा रहे हैं. अधिकांश लोग इस उम्र में गद्य की ओर रुख करते हैं. इसका अर्थ यह है कि कासिम अभी भी हृदय से बिल्कुल शुद्ध, भोलेभाले और नरमदिल इंसान हैं क्योंकि वैसा व्यक्ति ही गज़ल लिख सकता है.

      अब्दुल समद ने कहा कि इस तरह से सम्मनित करने से साहित्यकार का दिल भरता है और इस लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने यह सुझाव दिया कि किसी के जन्मदिन पर जश्न मनाते समय एक स्मारिका भी छापी जाय जिसमें साहित्यकार के बारे में विस्ततृत ब्यौरा हो. उन्होंने कहा कि कासिम खुरशीद लिखने और सुनाने दोनो कला में निपुण हैं और् मूलत: समाज-सुधारक हैं.

     डॉ. विनय कुमार ने अपने साइंस कॉलेज में पढ़ने के दिनों को याद करते हुए अनेक मजेदार वाकये सुनाये और कासिम खुरशीद से उन दिनों से लेकर अब तक के लगाव को बताया. एक शेर भी उन्होंने पढ़ा-
"क्या कहूँ कैसे कहूँ, क्या बात है खुरशीद में
हर किसी के दिल में है वो हर किसी की दीद में"

     मुख्य अतिथि मृत्युंजय प्र. सिंह ने कहा कि कासिम खुरशीद जैसे शायर ने ही इनसान और इनसानियत को दुनिया में जिंदा रखा है. अब्दुल कयूम अंसारी ने अपने विचार व्यक्त करते समय कासिम खुरशीद और उनकी रचनाओं का हवाला दिया.

"ये तिनका जमीं पर से उठा जाएगा
एक चिड़िया घर बनाने को है"
   ऐसे मर्मस्पर्शी शेर लिखनेवाले कासिम को वरिष्ठ साहियकार सत्यनारानण ने  बताया कि बहुत पहले ही पहचान लिया था कि ये एक दिन काफी अच्छा शायर बन सकता है. उन्होंने कहा कि कासिम को लोग बड़ा शायर कहें या नहीं लेकिन वो हमेशा उनके प्रिय शायर रहेंगे. उनके चंद चुनिंदा शेरों को सुनाते हुए कहा-
"मुझे फूलों से, हवा से, बादल से चोट लगती है
अजब आलम है मेरा कि वफा से चोट लगती है"
..
"छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक
सागर जैसा स्वाद है, तू चख कर तो देख"

      सभा के दूसरे सत्र में कासिम खुरशीद ने सभी वक्ताओं के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए अपने शेरों को पढ़ा जिनकी बानगी नीचे दी जा रही है-
1.
आहट सी कोई आई आयी है, आने की महक है
फिर से कोई आस जगाने की महक है
बरसों से सोया था, जगाया जो किसी ने
क्यों ऐसा लगा कि घर को सजाने की महक है
कहता है बहुत डूब के वो अपनी कहानी
आँखों में मगर मेरे फसाने की महक है
रोई तो बहुत आज लिपट कर गमे-हस्ती
हाँ, जख्म कोई मुझसे छुपाने की महक है
मिलने के लिए आया तो उजरत में बहुत था
तब ऐसा लगा मुझको जमाने की महक है
खुरशीद की गज़लों पे अजब रंग है हावी
जो सो गए उनको जगाने की महक है.

2.
ये रस्मे-दुनिया है, निभाते रहते हैं
तुम्हारे बाद भी महफिल सजाते रहते हैं
उन्हें पता है कि महफिल मुझी को ढूँढेगी
सो उनकी वज़्म में मुझको बुलाते रहते हैं
वो बेखबर हैं अभी जलजलों की फितरत से
जो पेड़ काट कर दुनिया बसाते रहते हैं.
जिनको तुमने गुमनामी में छोड़ा है
अक्सर वो सुल्तान बनाते रहते हैं

3.
कैसे निभाएँ तर्के-उल्फत, खुद को क्या समझाएँ
दिल में वो तो उतर गया है, अंदर-अंदर बेचैनी है.

अंत में प्रसिद्ध युवा शायर रामनाथ शोधार्थी ने सभी आये हुए साहित्यकारों और साहित्यप्रेमियों का धन्यवाद-ज्ञापन किया.
..........
आलेख: हेमन्त दास 'हिम'
इस आलेख पर अपनी प्रतिक्रिया या सुधार के सुझाव को ई-मेल द्वारा भेजें- hemantdas_2001@yahoo.com

























No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.