लड़की के आकर्षण का जाल
फिर भी, चक्रधर इन असुविधाजनक विचारों पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहता है और सोचता है कि लूसी उसे बहुत प्यार करती है और इसीलिए वह उसे लगातार प्रेम पत्र भेजती है। अंततः वह खुद हिम्मत जुटाता है और एक चल रही पार्टी के बीच लूसी की ओर बढ़ कर उसे स्पर्श करता है उसके प्रति अपने प्रेम का इजहार कर देता है। लूसी गुस्से से लाल हो जाती है तो चक्रधर उससे पूछता है कि ऐसा है तो उसने उसे प्रेम पत्र भेजे ही क्यों? इस पर लूसी कहती है कि उसने कभी ऐसे पत्र नहीं लिखे हैं और धमकी देती है कि वह उसकी इस धृष्टता के लिए प्रिंसिपल से शिकायत करेगी।
अब चक्रधर होश में आता और अपने दोस्तों से पूछता है कि उन्होंने उनके साथ इतना बुरा खेल क्यों खेला? दोस्तों को अब पछतावा होता है क्योंकि लड़की के द्वारा प्रिंसिपल को शिकायत होने से चक्रधर को महाविद्यालय से निकाला जा सकता है। वे लूसी से बात करते हैं लेकिन वह तरस नहीं खाती है फिर अंत में वह दो में से एक करने को कहती है- या तो चक्रधर पाँच हजार रुपये का जुर्माना भरे या वो पचास बार कान पकड़ कर उठक-बैठक करे। चक्रधर एक गरीब लड़का होने के नाते उठक-बैठक करना ही शुरू करता है अब लड़की को अपने कठोर व्यवहार के लिए पछ्तावा होता है और उन लड़कों को झिड़कती है जिन्होंने उस को और चक्रधर को ऐसी शर्मिंदगी परिस्थिति में ला खड़ा किया था। लड़कों को अपनी शरारत पर शर्मिंदगी महसूस होती है।
शुभ्रो भट्टाचार्य की अवधारणा और निर्देशन अत्यंत सशक्त था। जिस तरह से उन्होंने चक्रधर के दिवा-स्वप्नों को नाट्य संगीत के साथ पृष्ठभूमि के पर्दे पर एक बड़ा गुलाबी दिल लगाकर दिखाया, वह प्रभावी था। कक्षा के दृश्य भी प्राकृतिक और असरदार थे। हीरालाल राय ने शानदार तरीके से चक्रधर की भूमिका निभाई। संस्कृत उच्चारण, मुख-भंगिमा, शारीरिक भाषा और आधुनिक नृत्य कौशल के साथ-साथ उनके उच्चारण उत्कृष्ट थे। वह अभिनेताओं की एक दुर्लभ नस्ल लगता है लूसी की भूमिका में अदिति सिंह ने भी एक पाश्चात्य गर्भिष्ठ लड़की की भूमिका में अपनी अभिनय की ताकत दिखायी। लड़का जिसने चक्रधर को बेवकूफ बनाने साजिश रची था, ने भी कॉलेज की छात्रों की टीम के साथ अच्छी तरह से काम किया।
प्रोफेसर, डाकिया, मुन्शी प्रेमचंद, सलामी सूत्रधार और अन्य लोगों के पात्रों ने अभिनय में अच्छा प्रदर्शन किया। सुशील कु., विवेक कु., निशांत प्रियदर्सशी, अभिषेक आर्य, शांडिल्य तिवारी, संदीप तिवारी, रानू बाबू और विजय कु. ने अपने संबंधित पात्रों के साथ न्याय किया। विवेक कुमार ने कहानी के आलेख को चतुराई से आज के संदर्भ में रूपांतरित किया गया था और यह कभी नहीं निकला कि ये कुछ नब्बे साल पहले एक कहानी पर आधारित है। सुधांशु शेखर का ध्वनि-नियंत्रण और राजन कु. सिंह / जीतू का प्रकाश-संंयोजन बिल्कुल उपयुक्त थे। रोहित चंद्र, गौरव, निशा, रवि, समीर और अभिषेक आर्य ने प्रभावशाली संगीत दिया। रमेश सिंह का वस्त्र-विन्यास आवश्यकता के अनुरूप बिल्कुल सही था। बाल मुकुंद, संतोष, रणू और अदिति ने इस नाटक को एक शानदार सफलता बनाने के लिए अपना बहुमूल्य समर्थन दिया।
समीक्षक: हेमन्त दास 'हिम'
आप अपनी प्रतिक्रिया या सुझाव इ-मेल के द्वारा hemantdas_2001@yahoo.com पर भेज सकते हैं.
No comments:
Post a Comment
अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.
Note: only a member of this blog may post a comment.