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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Saturday, 29 July 2017

'सामयिक परिवेश' पत्रिका द्वारा प्रेमनाथ खन्ना सम्मान और संस्मरणों का अनोखा साझा-संग्रह 28.7.2017 को पटना में लोकार्पित


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 व्यक्तिगत प्रेम का सामाजिक हित हेतु उदात्तीकरण


     
      अभिलेख भवन, पटना,  28 जुलाई,2017 में प्रसिद्ध साहित्यकार ममता मेहरोत्रा ने अपने पिता की पुण्यतिथि अनोखे ढंग से मनाई जो सब के लिए अनुकरणीय हो सकता है. उन्होंने इस अवसर पर अपनी संस्था 'सामयिक परिवेश' के द्वारा लोगों से संस्मरणो को इकट्ठा करवाया और उसे समीर परिमल के सम्पादकत्व और श्रुति मेहरोत्रा के सह-सम्पादकत्व में 'यादों के दरीचे' पुस्तक का रूप देते हुए प्रकाशित करवाया. साथ ही अनेक साहित्यकारों को सम्मानित भी किया. देश के सुदूर क्षेत्रों में रहने के कारण कुछ रचनाकार  उपस्थित नहीं हो पाए. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं दूरदर्शन (डीडी-बिहार) की उप-केंद्र निदेशिका रत्ना पुरकायस्थ. साथ ही इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार सतीशराज पुष्करणा, कासिम खुरशीद, तारानन्द वियोगी, भावना शेखर, विभारानी श्रीवास्तव, सरोज तिवारी के अलावे समीर परिमल, हेमन्त दास 'हिम, डॉ. रामनाथ शोधार्थी, अविनाश झा, घनश्याम आदि भी उपस्थित थे. मार्ग बियरिग्स प्रा.लि. के शम्भू कुमार विशेष अतिथि थे.

    शुभारम्भ दीप-प्रज्ज्वलन से हुआ. तत्पश्चात उनतीस साहित्यकारों द्वारा लिखे गए उनके संस्मरणों का संग्रह 'यादों के दरीचे' का लोकार्पण हुआ. फिर कुल सत्रह साहित्यकरों को प्रेमनाथ खन्ना सम्मान 2017 प्रदान किये गए. जिसके अंतर्गत प्रत्येक को सम्मानपत्र और चादर दिये गए. 

       ममता मेहरोत्रा ने अपना उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि उनके पिता प्रेमनाथ खन्ना जी 2009 में कैंसर के कारण चल बसे और बहुत ज्यादा लगाव होने के कारण उन्हें यह सदमा बर्दाश्त नहीं हो पाया और वो लगभग पाँच सालों तक भयंकर मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहीं. कोई भी उपाय काम नहीं आ रहा था परंतु जीवन तो जीना होता है अपने अत्यंत प्रिय व्यक्ति के बिना भी.इसलिए उन्होंने बहुत सोच-समझ कर यह तरीका निकाला कि क्यों न ऐसा कुछ किया जाय कि उनके पिता का नाम अमर हो जाए. और अमरता प्रदान करने में रचनात्मक कृति से बढ़ कर कुछ और नहीं हो सकता. 

       इस अवसर पर सम्मानित होनेवाले साहित्यकारों के नाम हैं- डॉ. सतीशराज पुष्करणा, शहंशाह आलम, तारानन्द वियोगी, डॉ. कासिम खुरशीद,  भावना शेखर, विभा रानी श्रीवास्तव, सरोज तिवारी, नरेन्द्र कुमार, हेमन्त दास 'हिम', अविनाश झा, डॉ. नीलम श्रीवास्तव, सुशील भारद्वाज, असित कुमार मिश्र, संगीता सिंंह 'भावना', अनीता मिश्रा, विजयानन्द विजय और मुकेश कुमार सिन्हा.

     ध्यातव्य है कि ममता मेहरोत्रा एक अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं और उनकी एक पुस्तक 'माटी का घर' पर शोधपरक समीक्षा का प्रकाशन दुनिया में सबसे अधिक भाषाओं (आठ भाषाएँ- संस्कृत, अंग्रेजी, अंगिका, बज्जिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली और उर्दू)  में होने के पश्चात उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड्स रिकार्ड में दर्ज हो चुका है. स्पष्ट है कि यदि वो चाहतीं तो स्वयं अपने पिता के संस्मरणों की एक पुस्तक लिख सकती थीं. किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वो स्वयं और पिता के बीच के प्यार को व्यक्तिगत स्तर पर रखने की बजाय इसे समाज के सभी माता-पिता और उनकी सन्तानों के बीच प्रेम को सबल बनाने के प्रयास में रुपांतरित कर दिया ताकि स्वयं तो संतुष्टि मिले ही साथ ही समाज का भी भला हो. यह पुस्तक उसी दिशा में एक छोटा ही सही परन्तु सफल प्रयास है.

     कार्यक्रम का संचालन लोकप्रिय शायर समीर परिमल ने किया और धन्यवाद ज्ञापन लोकार्पित पुस्तक की सह-सम्पादिका श्रुति मेहरोत्रा ने किया. निश्चित रूप से अपने प्रियजन की स्मृति मनाने का यह तरीका व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी और अनुकरणीय कहा जा सकता है.




















































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