**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Sunday 25 August 2019

देखना फिर से / लक्ष्मीकांत मुकुल की दो कविताएँ

देखना फिर से शुरू किया दुनिया को 

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)



उस भरी दुपहरी में
जब गया था घास काटने नदी के कछार पर
तुम भी आई थी अपनी बकरियों के साथ
संकोच के घने कुहरे का आवरण लिए
अनजान, अपरिचित, अनदेखा
कैसे बंधता गया तेरी मोहपाश में

जब तुमने कहा कि
तुम्हें तैरना पसंद है
मुझे अच्छी लगने लगी नदी की धार
पूछें डुलाती मछलियाँ
बालू, कंकडों, कीचड़ से भरा किनारा
जब तुमने कहा कि
तुम्हें उड़ना पसंद है नील गगन में पतंग सरीखी
मुझे अच्छी लगने लगी आकाश में उड़ती पंछियों की कतार
जब तुमने कहा कि
तुम्हें नीम का दातून पसंद है
मुझे मीठी लगने लगी उसकी पत्तियां, निबौरियां

जब तुमने कहा कि
तुम्हें चुल्लू से नहीं, दोना से
पानी पीना पसंद है
मुझे अच्छी लगने लगी
कुदरत से सज्जित यह कायनात
जब तुमने कहा कि
तुम्हें बारिश में भींगना पसंद है
मुझे अच्छी लगने लगी
जुलाई -अगस्त की झमझम बारिश, जनवरी की तुषार 

जब तुमने कहा की यह बगीचा
बाढ़ के दिनों में नाव की तरह लगता है
मुझे अच्छी लगने लगी
अमरूद की महक, बेर की खटास
जब तुमने कहा कि
तुम्हें पसंद है खाना तेनी का भात
भतुए की तरकारी, बथुए की साग
मुझे अचानक अच्छी लगने लगीं फसलें
जिसे उपजाते हैं श्रमजीवी
जिनके पसीने से सींचती है पृथ्वी

तुम्हारे हर पसंद का रंग चढ़ता गया अंतस में
तुम्हारी हर चाल, हर थिरकन के साथ
डूबते - खोते - सहेजने लगी जीवन की राह
मकड़तेना के तना की छाल पर
हंसिया की नोक से गोदता गया तेरा नाम, मुकाम

प्रणय के उस उद्दात्त क्षणों में कैसे हुए थे हम बाहुपाश
आलिंगन, स्पर्श, साँसों की गर्म धौकनी के बीच
मदहोशी के संवेगों में खो गये थे
अपनी उपस्थिति का एहसास
हम जुड़ गए थे एक दूजे में, एकाकार
पूरी पवित्रता से, संसार की नज़रों में निरपेक्ष

मनुष्यता का विरोधी रहा होगा वह हमारा अज्ञात पुरखा
जिसने काक जोड़ी को अंग-प्रत्यंग से लिपटे
देखे जाने को माना था अपशकुन का संदेश
जबकि उसके दो चोंच चार पंख आपस में गुंथकर
मादक लय में थाप देते सृजित करते हैं जीवन के आदिम राग
 पूछता हूँ क्या हुआ था उस दिन

जब हम मिले थे पहली बार
अंतरिक्ष से टपक कर आये धरती पर
किसी इंद्र द्वारा शापित स्वर्ग के बाशिंदे की तरह नहीं
बगलगीर गाँव की निर्वासिनी का मिला था साथ
पूछता हूँ कल-कल करती नदी के बहाव से
हवा में उत्तेजित खडखड़ाते ताड़ के पत्तों से
मेड़ के किनारे छिपे, फुर्र से उड़ने वाले ‘घाघर’ से
दूर तक सन्-सन् कर सन्देश ले जाती पवन-वेग से
सबका भार उठाती धरती से
ऊपर राख के रंग का चादर फैलाए आसमान से

प्रश्नोत्तर में खिलखिलाहट
खिलखिलाहटों से भर जाती हैं प्रतिध्वनियाँ
यही ध्वनि उठी थी मेरे अंतर्मन में
जब तुमने मेरे टूटे चप्पल में बाँधी थी सींक की धाग
देखना फिर से शुरू किया मैंने इस दुनिया को
कि यह है कितनी हस्बेमामूल, कितनी मुक़द्दस.
.......
(हस्बेमामूल = हमेशा की तरह, मुकद्दस = पवित्र) 


गूंगी जहाज

सर्दियों की सुबह में 
जब साफ़ रहता था आसमान 
हम कागज़ या पत्तों का जहाज बनाकर 
उछालते थे हवा में 
तभी दिखता था पश्चिमाकाश में 
लोटा जैसा चमकता हुआ 
कौतूहल जैसी दिखती थी वह गूंगी जहाज 

बचपन में खेलते हुए हम सोचा करते
कहा जाती है परदेशी चिड़ियों की तरह उड़ती हुई
किधर होगा बया सरीखा उसका घोसला 
क्या कबूतर की तरह कलाबाजियाँ करते 
दाना चुगने उतरती होगी वह खेतों में 
कि बाज की तरह झपट्टा मार फांसती होगी शिकार 

भोरहरिया का उजास पसरा है धरती पर 
तो भी सूर्य की किरणें छू रही हैं उसे 
उस चमकीले खिलौने को 
जो बढ़ रहा है ठीक हमारे सिर के ऊपर 
बनाता हुआ पतले बादलों की राह
उभरती घनी लकीरें बढती जाती है 
उसके साथ 
जैसे मकड़ियाँ आगे बढती हुई 
छोडती जाती है धागे से जालीदार घेरा 
शहतूत की पत्तियाँ चूसते कीट 
अपनी लार ग्रंथियों से छोड़ते जाते हैं
रेशम के धागे 

चमकते आकाशीय खिलौने की तरह 
गूंगी जहाज पश्चिम के सिवान से यात्रा करती हुई
छिप जाती है पूरब बरगद की फुनगियों में 
बेआवाज तय करती हुई अपनी यात्रायें 
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण निश्चित किनारों पर 
पीछे -पीछे छोड़ती हुई 
काले -उजले बादलों की अनगढ़ पगडंडियां.
....
नोट – हमारे भोजपुरांचल में ऊंचाई पर उडता बेआवाज व गूंगा जहाज को लोगों द्वारा स्त्रीवाचक सूचक शब्द “गूंगी जहाज” कहा जाता है. इसलिए कवि ने पुलिंग के स्थान पर स्त्रीलिंग शब्द का प्रयोग किया है.
.......

कवि-  लक्ष्मीकान्त मुकुल
प्रतिक्रिया हेतु  ईमेल -  editorbejodindia@yahoo.com
परिचय
लक्ष्मीकांत मुकुल
जन्म – 08 जनवरी 1973
शिक्षा – विधि स्नातक
संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य
कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित .
पुष्पांजलि प्रकाशन ,दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रकाशित.
संपर्क : ग्राम – मैरा, पोस्ट – सैसड, भाया – धनसोई, जिला – रोहतास (बिहार) – 802117
मो0 – 9162393009
ईमेल – kvimukul12111@gmail.com

 जाबिर हुसैन,  प्रख्यात साहित्यकार और पूर्व सभापति, बिहार विधान परिषद के साथ 

अक्तूबर, 2018  में साहित्यकारगण  (बायें सए) ब्रजकिशोर दूबे, हेमन्त दास'हिम', लक्ष्मीकांत मुकुल और  डॉ. विजय प्रकाश 

No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.