कोई भाषा पढ़िये लेकिन हिन्दी भाषा की कृतियों को अवश्य पढ़ना चाहिए
मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा आयोजित मैथिलीशरण गुप्त, बाबू गंगाशरण सिंह एवं तुलसीदास के जयंती समारोह के अवसर पर विद्वानों ने कहा कि "सुगम काम है बोलना लेकिन, कठिनतम कार्य है सुनना! आप श्रोता सबसे महान है, क्योंकि आप हमें सुन रहे हैं।
डॉ. दिवाकर पांडेय ने गुप्तजी की काव्य शैली को रेखांकित करते हुए कहा कि "प्रभावपूर्ण और सहज शैली में उन्होंने कविताओं का सृजन किया। गुप्त जी ने जो मार्ग बनाया उसपर स्वयं भी चले। उन्होंने आम लोगों की भाषा में,यानी सरल भाषा में कविता लिखा, जिसके कारण वे अधिक सराहे गए।"
गुप्त जी की लोकप्रियता जब बढ़ने लगी तब, तथाकथित समीक्षकों -विद्वानों ने उनका उपहास करना शुरू कर दिया।खिल्ली उड़ाते थे। किंतु जब निराला ने कहा कि "मैं गुप्त की कविताएं गुनगुनाना हूं, तब कविताएं लिखता हूं। अज्ञेय जैसे महान कवि ने जब कहा कि" मेरे काव्य गुरु रहे हैं मैथिलीशरण गुप्त। तब समीक्षकों के कान खड़े हो गए। गुप्त के पहले नारियों को सर्वश्रेष्ठ स्थान किसी कवियों ने नहीं दिया था। "सखि, वे मुझसे कह कर जाते!" - उनकी श्रेष्ठ कविताओं में से एक है। वे नारी के पक्ष में कहा करते थे कि "नारी घर से बाहर जाए तो कुल्टा और पुरुष घर से बाहर निकल भागे तो योगी?" ,
डॉ. छाया सिन्हा ने कहा कि "हिन्दी भाषा में खड़ी बोली के वे प्रवर्तक थे। अछूतोद्धार का वे हिमायती थे। गांधीजी के विचार से वे काफी प्रभावित थे। नारी अबला है नहीं, बना दिया गया है। दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी प्रथाओं के खिलाफ थे वे। गुप्त जी विश्वबंधुत्व के प्रतिनिधि कवि रहे हैं। उन्होंने अतुकांत कविताओं का भी सृजन किया है, किंतु आज की तरह सपाटबयानी नहीं रहती थी, उनकी कविताओं में। सच कहा जाए तो, आधुनिक और संवेदनाओं के वे समर्थ कवि रहे हैँ।"
डॉ. कुणाल कुमार ने कहा कि "बाबू गंगाशरण सिंह, अनेक भाषाओं के प्रचंड विद्वान थे। भीषण मधुमेही होने के बावजूद, उन्होंने हिंदी साहित्य की अनवरत साधना की। भारत सरकार एवं स्वैच्छिक संस्थाओं को एक मंच पर लाकर उसे हिन्दी से जोड़ने का, उन्होंने अद्भुत काम किया।"
अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण ने कहा, "एक बार अज्ञेय ने कहा कि सबसे प्रिय कवि कौन है? किसी ने गुप्त का नाम नहीं लिया। तब अज्ञेय ने कहा कि आपने मैथिलीशरण गुप्त को नहीं पढ़ा है क्या? गुप्त जी मेरे प्रिय कवि ही नहीं, मेरे काव्य गुरु भी रहे हैं। परंपरा को नकारे बिना भी आधुनिक हुआ जा सकता है। गुप्त जी खड़ी बोली को काव्य भाषा बना कर अपनी अलग पहचान बनाई। गुप्त जी की कविता, मस्तिष्क से नहीं, ह्दय से पढ़ी जाती है।"
तुलसीदास की जयंती सत्र का आरम्भ करते हुए, निदेशक इम्तियाज अहमद ने कहा, "अपने आप में इनके जीवन की अपनी कहानियां भी कुछ कम रोचक नहीं है। रामचरित मानस ग्रंथ ने उन्हें सर्वाधिक श्रेष्ठ कवियों की श्रेणी में ला खड़ा किया। चाहे आप दुनिया की कोई भी भाषा पढि़ए लेकिन हिन्दी भाषा की कृतियां और ग्रंथों को अवश्य पढ्ना चाहिए।
अम्बिका जी ने कहा-"रामचरितमानस मानव का स्वर्णमुकूट है, तो साहित्यकारों का गायन ग्रंथ है। सत्य और त्याग, जीवन के दो मूल तत्व है। तुलसी जी ने दोनों को समान रुप से अपनाया।
श्रीकांत सिंह ने कहा-"तुलसीदास के जीवन के सारे तथ्य एकमत से विवादपूर्ण है। तुलसीदास का जीवन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रहा। अपनी भूख और गरीबी का जैसा चित्रण तुलसीदास ने किया, वैसा किसी कवि ने नहीं लिखा। लोकभाषा में रचना करने के कारण उन्हें तत्कालीन रचनाकारों और समीक्षकों ने खूब उपहास किया। बावजूद उन्होंने स्वांतः सुख के लिए अपनी रचनाओं को लोक भाषा में लिपिबद्ध किया और सृजनरत रहे।" तुलसीदास साथ रहितां, पार करही साहित्य बतरनी।"
डॉ. शांति जैन ने कहा कि - "तुलसी से तुलसीदास बनने में, उनकी पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उपेन्द्रनाथ पांडेय ने कहा कि "सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता थे, तुलसीदास। उनकी सर्वाधिक श्रेष्ठ महाकाव्य रचना है -" मानस"! आप मानस को तब तक नहीं समझ सकेंगे, जब तक आप समरस न हो जाए और उसके मर्म को न समझ ले। तुलसीदास रचित "विनय पत्रिका," तुलसीदास के मानस के मर्म को समझने में पूरी तरह सक्षम है।
अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण जी ने कहा कि-" तुलसीदास के साहित्य के दो पहलू हैं-साहित्य और भक्ति। वर्ण, अर्थ, रस और छंद के बाद भी कविता तब बनती है, जब उसमें मंगल भावना हो यानी उसमें सार्थक संदेश हो। सच पूछिए तो युगांतकारी कवि थे तुलसीदास। साहित्य की दृष्टि से सर्वाधिक श्रेष्ठ कृति है "विनय पत्रिका!"
पूरे समारोह का संचालन किया, कुंवर जी ने। इस समारोह में विजय प्रकाश, मधुरेशशरण, सिद्धेश्वर, हृदयनारायण झा, कमला प्रसाद, डॉ. अर्चना त्रिपाठी आदि सैंकड़ो साहित्यकारों - विद्वानों, छात्र -छात्राओं की भागीदारी रही।
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आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
लेखक का ईमेल : sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - इस कार्यक्रम के मंचासीन वक्ताओं के साफ चित्रों को इस रपट में जोड़ने करने के लिए ऊपर दिये गए सम्पादक के ईमेल पर भेजिए.
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