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Wednesday, 21 August 2019

आरा में रामनिहाल गुंजन सम्मान समारोह 18.8.2019 को सम्पन्न

साहित्य, सस्कृति में खोटे सिक्के नहीं चलते
पाँच राज्यों के साहित्यकार हुए समारोह में शामिल

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नागरी प्रचारिणी सभागार, आरा में रविवार को वरिष्ठ आलोचक, कवि और संपादक रामनिहाल गुंजन का सम्मान समारोह हुआ। शुरुआत इप्टा के गायक-संगीतकार नागेंद्र पांडेय द्वारा गुंजन के गायन से हुई। जितेंद्र कुमार ने लोगों का स्वागत किया और रामनिहाल गुंजन को जनता के पक्ष में खड़ा साहित्यकार बताया। 

पहले सत्र "शब्द-यात्रा और सम्मान" को संबोधित करते हुए बनारस से आए आलोचक अवधेश प्रधान ने कहा कि राजनीति समझती है कि उसने वक्त की बागडोर संभाल रखी है पर साहित्य-संस्कृति की विरासत उससे बहुत बड़ी है। सभ्यता-संस्कृति की जितनी लंबी उम्र है, हम उतनी लंबी उम्र लेकर आए हैं। साहित्य में जुमला संभव नहीं होता। राजनीति में खोटे सिक्के चल जाते हैं पर अर्थनीति और साहित्य-संस्कृति में खोटे सिक्के नहीं चलते। साहित्य में सम्मानीय होने के लिए एक पूरी उम्र देनी पड़ती है। राहुल सांकृत्यायन और रामविलास शर्मा पर रामनिहाल गुंजन की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदी समाज और संस्कृति के लिए इन दोनों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। दिल्ली से आए कवि और ‘अलाव’ पत्रिका के संपादक रामकुमार कृषक ने कहा कि आज के मनुष्य विरोधी समय में कला-साहित्य-संस्कृति का जो क्षेत्र है, वह मनुष्य होने की प्रेरणा देता है। गुंजन की आलोचना और रचना मनुष्यता के लिए समर्पित है। वे परंपरा में मौजूद और समकालीन रचनाओं का समग्रता में मूल्यांकन करने वाले आलोचक हैं।

रांची से आए आलोचक रविभूषण ने कहा कि आरा की जमीन बड़ी जरखेज है। गुंजन के सम्मान समारोह में पांच राज्यों के लेखकों का शामिल होना सामान्य बात नहीं है। गोरखपुर से आए जन संस्कृति मंच के महासचिव चर्चित पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने आज सोचने, बोलने और सवाल उठाने की आजादी का मुद्दा उठाया। लघु पत्रिकाओं की अपेक्षा डिजिटल माध्यम के जरिए कम समय में ज्यादा लोगों पर पहुंचना जरूर संभव है, पर इस माध्यम पर सत्ता प्रतिष्ठान कभी भी अंकुश लगा सकते हैं। इस वक्त का कश्मीर इस बात का साक्ष्य है। प्रगतिशील लेखक संघ, बिहार के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि रामनिहाल गुंजन को कभी भी प्रतिबद्धता से विचलित हुए नहीं देखा।

दूसरे सत्र के अध्यक्ष सुरेश कांटक ने कहा कि गुंजन जी कभी समझौता न करने वाले साहित्यकार रहे हैं। उनमें कभी कोई वैचारिक विचलन नहीं आया। आयोजन में जनपथ पत्रिका के संपादक और कथाकार अनंत कुमार सिंह पर भविष्य में सम्मान समारोह आयोजित करने का प्रस्ताव लिया गया। इस मौके पर चित्रकार राकेश दिवाकर की पेंटिंग और रविशंकर सिंह द्वारा बनाए गए पोस्टर लगाए गए थे। आयोजन स्थल पर एक बुक स्टॉल भी लगा था। मौके परकवि लक्ष्मीकांत मुकुल, कथाकार सिद्धनाथ सागर, प्रो. दिवाकर पांडेय, कवि अरविंद अनुराग, शायर इम्तियाज अहमद दानिश, कुर्बान आतिश, कवि आरपी वर्मा, अरुण शीतांश समेत अन्य मौजूद थे।

पहले सत्र के दौरान रामकुमार कृषक, रविभूषण, नीरज सिंह, अवधेश प्रधान ने गुंजन जी को सम्मानित किया। मान-पत्र का पाठ और सत्र का संचालन सुधीर सुमन ने किया। दूसरे सत्र ‘जीवन-कर्म : संगी-साथी की जुबानी’ संस्मरण केंद्रित था। सत्र की शुरुआत रामकुमार कृषक द्वारा ‘अलाव’ पत्रिका’ में प्रकाशित गुंजन की ‘दिल्ली’ शीर्षक की तीन कविताएं सुनाईं। इस सत्र में लखनऊ से आए कौशल किशोर ने कहा कि स्नेह-प्रेम और संवाद गुंजन की पहचान है। 1970 के वाम क्रांतिकारी आंदोलन का उन पर गहरा असर रहा है।

डॉ. विंध्येश्वरी और कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि वे रचनाओं के प्रकाशित होने पर नोटिस लेकर नये साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने वाले आलोचक हैं। सुनील श्रीवास्तव ने अपने पिता विजेंद्र अनिल और रामनिहाल गुंजन के बीच के दोस्ताना रिश्ते को याद करते हुए कहा कि वे उनके अभिभावक की तरह हैं। चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि तीसरी धारा की संस्कृति की समृद्धि में इनकी बड़ी भूमिका है। सम्मानित साहित्यकार रामनिहाल गुंजन ने कहा कि उनका सम्मान दरअसल एक पूरी परंपरा का सम्मान है। उन्होंने कहा कि वे अपने आप को बहुत सामान्य व्यक्ति मानते हैं जो इस गरीब देश का नागरिक है।
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आलेख - लक्ष्मीकांत मुकुल
छायाचित्र - लक्ष्मीकांत मुकुल
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