**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Wednesday, 14 August 2019

परिकल्पना मंच द्वारा "पिंकी का गुल्लक" का मंचन 13.8.2019 को पटना में सम्पन्न

पितृसत्तत्मकता को चुनौती कौन देगी?

(मुख्य पेज पर जायें- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Watch Bejod India)


            
दिनांक 13अगस्त 2019 को प्रेमचंद रंगशाला, पटना में नाटक का मंचन हुआ। नाटक  "पिंकी का गुल्लक" के लेखक, सुभाष कुमार थे और परिकल्पना व निर्देशन था यूरेका का। यह प्रस्तुति, परिकल्पना मंच की ओर से थी जिसमें सहयोग था  द स्ट्रगलर का

यह कहानी हर उस लड़की की है, जिसके  घर में बेटों को हर तरह की आजादी मिलती है। पर बेटियों को नहीं इस कहानी की मुख्य पात्र पिंकी है, जो मैट्रिक पास कर गई है और अपने भाई की तरह आगे की पढ़ाई करने के लिए शहर जाना चाहती है। पिंकी के घर में सभी पढ़े लिखे हैं पर उसके खानदान से सात पुस्तों में न कोई महिला काम या पढ़ाई करने गांव शहर नही गई है, इसलिए पिंकी को शहर जाने की इजाजत नहीं मिलती है, मर्दों को इस गांव, समाज में औरतों की गलती होने पर सभी सजा औरतों को ही मिलती है, कहानी उसकी आजादी की है जो बेटियों को जन्म से ही उसे नहीं मिलती है।

हमारे समाज में बढ़ते विकृतियां और विछिप्त  मानवता वाले लोगों की बढ़ोतरी काफी हो रही है । मनुष्य की मानसिकता में नकारात्मकता की इतनी उपजती जा रही है कि वह खुद को नहीं पहचान रहे हैं! वो कहीं न कहीं खो रहे हैं। इसका कारण यह है कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, बलात्कार जैसी घटनाओं का अंजाम दे रहे हैं। हम भूल गए हैं कि हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा क्या था। हम क्या जानते थे, क्या पढ़ते थे, क्या सोचते थे, लेकिन इन सभी विशेषताओं से दूर दूर भागते आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है?

नाटक के कुछ  संवाद :- 
* गाँव से सभी लोग एक-एक  कर के शहर चल जाएगा, तो गाँव मे कौन रहेगा?
* हम लड़कीयां आपके लिए नाक हैं, इज़्जत हैं ... हाँ मैं हूँ आपके लिए  ... आपकी मान, मर्यादा , शाख ... लेकिन पितृसत्तात्मक सोंच आपको अपने काबू में रखा है। क्या आपको मालूम है...
*हम भूल गए हैं, कि हमारी संस्कृति, परंपरा क्या थी । हम क्या जानते थे, क्या पढ़ते थे,क्या सोचते थे, लेकिन इन सभी विशेषताओं से दूर... भागते... आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है। आपके इस होड़ से अलग होकर हम बेटियाँ आप से ही लड़ कर आपकी मान- सम्मान बढ़ा रहे होते हैं.

     कलाकार 
पिंकी:- यूरेका 
दादी :-अलका सिंह
 बिरजू:- दीपक कुमार
प्रधान,पवन :- दिग्विजय तिवारी
बिरजू की पत्नी:- हेमा राज
 गोपाल:- भीम गिरी
अमर:- विवेक मिश्रा
 मोहन:- अंशु कुमार
 रोहित, झोल्टन :-  प्रदुमन कुमार 
विक्की, कमल, विजय :- निशांत कुमार 
 ग्रामीण :- अभिषेक कुमार,अंशु

मंच परे:- 
मंच संचालन :- समीर चंद्रा
निर्माता :- मिथिलेश प्रसाद
प्रकाश परिकल्पना :- रोशन कुमार
 संगीत :- वैभव
मीडिया प्रभारी:- दिग्विजय तिवारी
वस्त्र विन्यास:- दीपक कुमार
वीडियो एव फ़ोटो:- स्वस्तिक सौम्य, यशवंत मिश्रा
मेकअप :- जितेंद्र कुमार
मंच निर्माण :- संतोष राजपूत
 नृत्य संरचना :- रिबेका

निर्देशिका का परिचय:

15 सालों से अभिनेत्री के तौर पर यह कार्यरत हैं पिछले साल उन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से दरभंगा से नाट्यशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की है, वर्तमान में प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से नृत्य एवं गायन की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। वर्ष 2004 में उन्होंने नाट्यदल अक्षरा आर्ट से निर्देशक कुणाल झा के सानिध्य में नाटक वैशाली से रंगकर्म की शुरुआत की, इसी साल इन्होंने 'मिस बिहार' का खिताब भी जीता। नाटक और मॉडलिंग के साथ-साथ आप डॉक्यूमेंट्री, टेली फिल्म एवं सीरियल में भी कर चुकी है, जिसमें नमामि गंगे, विभा: एक मिसाल, भारत की आजादी की कहानी, जुर्म का जाल एवं बलचनमा मुख्य हैं ।

गंगा देवी महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा 'पटना पुस्तक मेला' 2010 में उन्होंने नुक्कड़ नाटक 'ये भी तो हिंसा है' से निर्देशन की शुरुआत किए। उन्होंने अक्षरा आर्ट्स, कला जागरण, अभियान सांस्कृतिक मंच,प्रेरणा(जसमो), रंगमार्च, मध्यम फाउंडेशन एवं आदि कई दलों के साथ काम किया है। वैशाली, मधुशाला,एक मंत्री स्वर्ग लोक में, बिल्लेसुर बकरीहा, हम जमीन, आधी रात का सपना, सुसाइड, गोरा, लड़ाई, तीसरी कसम, तीसरी शताब्दी, सिक्का, सांसे, सपनों का मर जाना, जेबकतरा, दिल की रानी आदि 40 नाटकों में अभिनय कर चुकी हैं।

सुभाष कुमार 
जन्म 12 मार्च 1991,ठेंगहा राजनपुरा, खजौली, मधुबनी, बिहार में हुआ।
 रंगमंच की शुरुआत 2008 मधुबनी में "शतरूपा" लाइट एंड साउंड ड्रामा डिविज़न,भारत सरकार से हुआ। 
रंगमंच की आरंभिक शिक्षा 'श्री हरिवंश' (भिखारी ठाकुर स्कूल ऑफ ड्रामा, पटना) जी ,और श्री कुणाल जी से मिला। 

ललित नारायण मिथिला विश्यविद्यालय, दरभंगा से नाट्यशास्त्र में स्नातकोत्तर(M.A in Dramatics Art) की शिक्षा प्राप्त किया है।
संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली, मैथली नाट्य लेखन कार्यशाला 2017, संगीत नाट्य अकादमी एवम साहित्य कला परिषद के संयुक्त नाट्य लेखन कार्यशाला, नई दिल्ली , 2019 में चयनित अभ्यर्थियों के रूप में आप शामिल हुए। 

वर्तमान समय में "परिकल्पना मंच" नाट्य संस्था में सक्रिय हैं।
रंगमंच के साथ साथ फ़िल्म में भी अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं।
कई शार्ट फिल्मों में निर्देशन व सह निर्देशन का कार्य जारी है।
2016 में   नेशनल फ़िल्म डेवेलपमेंट करपरेशन लिमिटेड (NFDC) , भारत सरकार सम्मानित हैं।
2017 में  चेतना समिति , विद्यापति जयंती समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए शैलवाला मिश्र सम्मान से सम्मनित, निर्देशक कुणाल । 
.............

सामग्री स्रोत - सुभाष कुमार 
छायाचित्र - परिकल्पना मंच
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com













2 comments:

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.