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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 2 December 2019

"पिंकी का गुल्लक" नाटक, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना द्वारा 1.12.2019 को पटना में मंचित

 मान-सम्मान के लिए अपने ही समाज से लड़ती लड़कियाँ

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"... हाँ मैं हूँ आपके लिए  ... आपकी मान, मर्यादा , साख ... लेकिन पितृसत्तात्मक सोच ने आपको अपने काबू में कर रखा है। क्या आपको मालूम है..."

"हम लड़कियाँ आपके लिए नाक हैं, इज़्जत हैं" 
- नाटक का ये संवाद अपने आप में बहुत कुछ कह जाते है 

यह कहानी हर उस लड़की की हैजिसके  घर में बेटों को हर तरह की आजादी मिलती है पर बेटियों को नहीं इस कहानी की मुख्य पात्र पिंकी है जो मैट्रिक पास कर गई है और अपने भाई की तरह आगे की पढ़ाई करने के लिए शहर जाना चाहती है। पिंकी के घर में सभी पढ़े लिखे हैं पर उसके खानदान से सात पुस्तों में न कोई महिला काम या पढ़ाई करने गांव शहर नही गई है इसलिए पिंकी को शहर जाने की इजाजत नहीं मिलती है। हद तोो तब हो जाती है जब बेटी की शहर जाकर पढ़ाई करने की मांग को एक दूसरे सामाजिक समस्या की रक्षा के नाम पर कुचल दिया जाता है। कहा जाता है कि -गाँव से सभी लोग एक- एक  कर के शहर चले जाएंगे तो गाँव मे कौन रहेगा?

मर्दों के आधिपत्य वाले इस गांव, समाज में मर्दों की गलती होने पर सभी सजा औरतों को ही मिलती है, कहानी उसकी आजादी की है जो बेटियों को जन्म से ही उसे नहीं मिलती है।

हमारे समाज में बढ़ती विकृतियां और विक्षिप्त मानसिकता वाले लोग की बढ़ोतरी काफी हो रही है। मनुष्यों की मानसिकता में नकारात्मकता की इतनी उपज हो रही है कि वह खुद को नहीं पहचान रहे हैं वो कहीं न कहीं खो रहे हैं। इसका कारण यह है कि हमारे समाज में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, बलात्कार जैसी घटनाओं का अंजाम दे रहे हैं। हम भूल गए हैं कि हमारी संस्कृति कि हमारी संस्कृति के मूल्य और आदर्श क्या थे। अपने  समाज के आदर्शों को भूलकर और उसकी सभी विशेषताओं से दूर भागता आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है?
  
और नाटक का यह संवाद मानो इसके सारांश को बयाँ कर रहा हो - .....आपकी इस (पितृसत्तत्मक) होड़ से अलग होकर और आप से ही लड़ कर हम बेटियाँ आपकी मान- सम्मान बढ़ा रहे होते हैं

यह नाट्य मंचन तंरंग_2019 महोत्सव में हुआ जो ए. एन. कॉलेज, पटना में चल रहा है

इसके लेखक - सुभाष कुमार और  निर्देशक -  दीपक कुमार थे और यह पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना द्वारा प्रस्तुत हुआ। एक सार्थक नाटक हेतु लेखक और निर्देशक प्रशंसा के पात्र हैं।

नाटक का आलेेेेख और कलाकारों में थीं रिमझिम कुमारी, पूजा कुमारी, वागीश, शिवानी कुमारी, भव्या, प्रति कुमारी आदि जिन्होंने अपनी अच्छी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन किया  हरि प्रिया के संगीत को भी सराहा गया। इस प्रस्तुति में रीता दास  (  संगीत विभागाध्यक्ष) और  विवेकानंद पाण्डेय (संगीत शिक्षक) का विशेष योगदान रहा। 
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रपट की प्रस्तुति - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
सूचना एवं चित्र स्रोत - सुभाष कुमार
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