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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday, 15 December 2019

समीर परिमल की अध्यक्षता में जॉन एलिया की जयंती पर ऑनलाइन मुशायरा 14.12.2019 को सम्पन्न

'रंजिशों साज़िशों से बेहतर है, जॉन की शायरी में खो जाऊँ'

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समीर परिमल



लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
या मेरा गम ही मेरी फुरसत है
हमने देखा तो हमने ये देखा

जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है (जॉन एलिया)

शायरी में जॉन एलिया का कोई सानी नहीं है।  उन्होंने आसान लफ्ज़ों में जो गहरी से गहरी बातें कह डाली हैं वह उनको मिर्जा गालिब, अहमद फराज़ जैसे दिग्गजों की श्रेणी में लाकर रख देता है जबकि उनकी खासियत यह है कि उन्होंने बिल्कुल आम जीवन की आम बातों को बयाँ करते हुए ही सारी बातें कहीं है. 14  दिसम्बर, 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पैदा होनेवाले भारत-विभाजन के विचारों के खिलाफ थे लेकिन बाद में उन्हें स्वीकार करना ही पड़ा। जॉन एलिया 1957 में पाकिस्तान चले गए जहाँ  लम्बे अरसे तक रहने के बाद कराची में उनकी मौत हो गई। हालांकि उनकी मौत लगभग 70 वर्ष की उम्र में हुई लेकिन उनकी शायरी हमेशा नौजवानों सी रही। उनकी शायरी लफ्जों और बुनावट के लिहाज से बेहद आसान होते हुए भी बहुत गहरे चोट करनेवाली हैं और उसमें इश्किया अंदाज़ ज्यादा प्रबल है।

व्हाट्सएप्प ग्रुप 'बज़्म-ए-अदब' के तत्वाधान में प्रसिद्ध शायर जॉन एलिया की जयंती पर एक ऑनलाइन ऑडियो मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें कई नामचीन शायरों ने हिस्सा लिया। मुशायरे की अध्यक्षता पटना के वरिष्ठ शायर समीर परिमल ने की और संचालन किया ज़ीनत शेख़ ने। इस मौके पर सूरज ठाकुर बिहारी, अक्स समस्तीपुरी, शाज़िया नाज़, केशव कौशिक, पूनम सिन्हा श्रेयसी, मीना श्रीवास्तव आदि ने अपने ख़ूबसूरत कलाम सुनाए। उल्लेखनीय है कि 'बज़्म-ए-अदब' व्हाट्सएप्प ग्रुप विशुद्ध रूप से ग़ज़ल को समर्पित है जिसमें लगातार सीखने-सिखाने की प्रक्रिया चलती रहती है।

समीर परिमल पर जॉन एलिया का वो नशा छाया कि वो बेखुदी में डूब से गए -
क्यों न अब बेख़ुदी में खो जाऊँ
मैं भी आवारगी में खो जाऊँ
रंजिशों, साज़िशों से बेहतर है
जॉन की शायरी में खो जाऊँ

ज़ीनत शेख़ ने प्रेम में दूरी को खत्म करने की गुजारिश की -  
मेरी इक आरज़ू पूरी कर दो
मेरी जां ख़त्म ये दूरी कर दो

अक्स समस्तीपुरी एक अजब फन के उस्ताद हैं -
फ़न है ख़ुद को तबाह करना भी
और इस फ़न में तो मैं माहिर हूँ

शाज़िया नाज़ कुछ अजीब से अहसास से गुजरती दिखीं- 
क्या हुआ क्या कहा कि खफा हो गया
सोचती हूँ तुझे आज क्या हो गया

केशव कौशिक पर जब जॉन सवार होते हैं तो सोने नहीं देते - 
रात बत्तियाँ देर तक जली
एक जौन मुझे छूकर गुज़रा

पूनम सिन्हा श्रेयसी ने बिगड़ी बात को बनने की तस्वीर खींची -
मेरी मुझसे ही ठनने लगी
बात बिगड़ी थी बनने लगी
तेरे शब्दों ने मन को छुआ
और मैं भी पिघलने लगी

इस तरह से जॉन एलिया का यह जन्मदिवस एक यादगार लम्हे के रूप में कायम हो गया. लोग दूर रह कर भी अंतरजाल के अदृश्य तारों के माध्यम से एक दूसरे के करीब थे और सबसे महत्वपूर्ण होता है दिल से एक दूसरे को समझना, सराहना. इस लिहाज से इस कवि गोष्ठी की भरपूर सराहना होनी चाहिए.
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प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
पतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट - जिन प्रतिभागियों की पंक्तियाँ शामिल नहीं हो पाईं हैं कृपया ऊपर दिये गए ईमेल पर भेजिए.

अक्स समस्तीपुरी


ज़ीनत शेख

सूराज ठाकुर बिहारी

शाजिया नाज़

केशव कौशिक

जॉन एलिया






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