**New post** on See photo+ page

बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

यदि कोई पोस्ट नहीं दिख रहा हो तो ऊपर "Current Page" पर क्लिक कीजिए. If no post is visible then click on Current page given above.

Friday 27 December 2019

"साहित्य परिक्रमा" और " राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य-मंच" के द्वारा मासिक काव्य संध्या पटना में 25.12.2019 को सम्पन्न

"हाथ में जब सब के ही पत्थर रहे / कोई सलामत किस तरह फिर घर रहे"

(मुख्य पेज पर जाइये- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटे पर देखते रहें - FB+ Today)




वैसे तो कहने को 2020 एक नया वर्ष के रूप में आ रहा है पर पता नहीं कितनी अशांतियों के मध्य यह आना पसंद करेगा। कवि जन्मजात अमनपसंद होता है लेकिन इसकी अमनपसंदगी समाज से विमुख नहीं बल्कि उसके सापेक्ष होती है अर्थात यह तमाम प्रकार की अशांतियों का पूर्ण निवारण कर अमन लाने में यकीन रखता है। कुछ ऐसा ही प्रसंग रहा हाल ही में सम्पन्न हुई एक कवि गोष्ठी का।

सिर्फ अपनी कविता को मंच पर पढ़ देने की उत्सुकता, कवियों की भीड़ वाली बड़ी गोष्ठियों में देखी जा सकती है किंतु एक दूसरे की सृजनात्मकता को आत्मसात करने की प्रवृत्ति छोटी छोटी गोष्ठियों में ही दिख पड़ती है। कुछ ऐसा ही महौल रहा पटना के रामगोबिंद पथ, कंकड़बाग स्थित कवि मधुरेश नारायण के आवास पर दिनांक 25.12.2019 को क्रिसमस के दिन  आयोजित काव्य संध्या में जो कई मायने से भरपूर सकून दे गया। 

पटना की साहित्यिक संस्था "साहित्य परिक्रमा" और " राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य-मंच" के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मासिक काव्य संध्या का सशक्त संचालन करते हुए उपरोक्त उद्गार, कवि - कथाकार सिद्धेश्वर ने व्यक्त किया। उन्होंने कविता के सौंदर्य बोध को रेखांकित करते हुए कहा कि - "कवि कभी भी अकेला या निहत्था नहीं होता। उसके साथ समाज और समुदाय होता है और होती है संवेदना के साथ संबधों, सरोकारों और शब्दों की रणभेदी ताकत। अंधेरों में भी भीतर के सौंदर्य और सूरज के उजालों को सहेजने की कला कवि अथवा कथाकार के पास ही होती है। यूँ हम कह सकते हैं कि मानवीय.संवेदना की सहज अभिव्यक्ति होती है कविता।"

अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में वरिष्ठ कवि कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने इस तरह की घरेलू गोष्ठियों के प्रति भरपूर संतोष प्रकट करते हुए कहा कि "आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जमाने में निकट के रिश्तों से संबंध साधना भी दुर्लभ होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में इस तरह की गोष्ठियों में साहित्य के साथ- साथ पारिवारिक संवाद की भी पूरी गुंजाइश होती है।" उन्होंने इस तरह की गतिविधियों की निरंतरता के लिए मधुरेश शरण और सिद्धेश्वर की भूरि भूरि प्रशंसा की।

भगवती प्रसाद द्विवेदी ने आज पढीं गई कविताएओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि "सिर्फ कवि गोष्ठी ही नहीं, एक तरह से ऐसा आयोजन एक कार्यशाला का उद्देश्य भी पूरा करता है जहां पर हम अपनी नये सृजन का मूल्यांकन तो करते ही  हैं, हम एक - दूसरे को राय परामर्श भी देते हैं।

उन्होंने कहा कि "आज पढीं गई लगभग सभी कविताओं में ताजगी दिखी। कविता हो या गीत- गजल, समकालीनता से लैस इन कविताओं में, सृजन की कई मूल चिंताओं को अभिव्यक्त किया  गया है। व्यक्ति और समाज की जरूरतों और इतना ही नहीं, सामाजिक विसंगतियों को भी  पूरी प्रतिबद्धता के साथ उजागर किया गया है। प्रतिरोध, क्रोध और प्रेम की अभिव्यक्ति लगगभग सभी कविताओं में हुई है।"

रचनाधर्मियों की इस  सारस्वत संध्या में भगवती प्रसाद द्विवेदी (अध्यक्ष), आर पी घायल (मुख्य अतिथि), राजमणि मिश्र, मधुरेश नारायण, सिद्धेश्वर (संचालन), घनश्याम, मेहता नागेन्द्र सिंह, लता प्रासर, विश्वनाथ प्रसाद वर्मा, सुनील कुमार, नसीम अख्तर और प्रभात कुमार धवन सहित कूल बारह प्रतिनिधि कवियों ने अपनी पसंद की एक नई और एक पुरानी यानी दो - दो कविताओं का पाठ कर, पूरा वातावरण को ही काव्यमय बना दिया।
\
इस साहित्यिक आयोजन के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ शायर आर पी घायल । इस अवसर पर बिहार सरकार के राजभाषा विभाग के अधिकारी ओम प्रकाश वर्मा ने भी, पढीं गई पूरी कविताओं को बहुत ही तन्मयता के साथ सुनने के बाद कहा कि  ऐसे सार्थक प्रयास समाज के हर कोने या प्रांत में होना ही चाहिए, जो राजभाषा हिन्दी और हिंदी साहित्य के उत्थान में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह करता रहे।

नएपन की तलाश में कविगण हमेशा लगे रहते हैं यही कारण है कि नववर्ष का आगमन उनके हृदय के द्वार पर सबसे पहले होता है

 प्रभात कुमार धवन नव्य की आराधना करनेवाले ऐसे ही एक  चिरनूतन कवि हैं -
"नव वर्ष मंगलमय हो!
   स्वर्ण विभूषित
     सूर्य उदय हो!!
      हो प्रभात / मधुर जीवन का
      मिले सुख सार /तरुण जीवन का!!"

राजमणि मिश्र ने मात्र मूर्तियों की प्रतिष्ठा की बजाय उसमें प्राण फूँकने अर्थात अंत:करण  की जीवंतता के महत्व को उजागर किया -
" है तिमिर तुमने रचा
पर रचा दिनमान मैंने!
  मूर्तियां तुमने बनायीं
  किंतु फूंके प्राण मैंने!"

पर्यावरण के कवि मेहता नागेन्द्र सिंह को कोई डर नहीं लगता क्योंकि उनके पास हौसला और हुनर दोनों है -
"हौंसला भी है, हुनर भी है, तो डर कैसा ?
सांस की खातिर शज़र भी है, तो डर कैसा?
पतवार थामें हाथ अपना मजबूत है बाकी!
बेताब दरिया में भंवर भी है तो डर कैसा ? "

हास्यसम्राट विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने आदमी को हवाईजहाज की बजाय आदमी बने रहने की बात की -
"एक कवि कहां-कहां जाएगा
   कहां-कहां गाएगा / आदमी है
कोई हवाई जहाज तो नहीं बन जाएगा? ".  

शायर नसीम अख्तर पत्थरबाजी के आदिम युग की पुनरावृति होते देख नासाज़ नजर आए-
" हाथ में  जब सभी के  ही  पत्थर रहे !
किस तरह फिर सलामत कोई सर रहे !"

प्रेम की वर्षा करनेवाली कवयित्री लता प्रासर ने पहले एक मगही रचना सुनाई फिर डाली-डाली और पत्ते-पत्ते पर अपने हृदय के इष्ट का नाम लिख डाला -
" पत्ता पत्ता डाली डाली परिचय तेरा लिख डालूं ।
  प्रेम प्रीत की वर्णमाला कली कली पर लिख डालूं।
रंग बसंती क्यारी क्यारी खिल रहा प्यारा प्यारा.
पगडंडियों पर हरियाली से नाम तुम्हारा लिख डालूं!"

संचालक सिद्धेश्वर स्वार्थचिंतन के इस दौर में भी इंसानियत की नब्ज टटोलते दिखे -
" दूसरों के लिए यहां सोचता है कौन ?
  दिल  का दरवाजा  खोलता है कौन?!
  बंद  है  पडोस  की  सारी  खिड़कियां!
इंसानियत की नब्ज, टटोलता है कौन ? "
              
शायर सुनील कुमार को अपने उसूलों के पक्के होने के कारण  अनेक परेशानियाँ उठानी पड़ रही हैं-
     - "मैं जिनकी आँख का तारा रहा हूँ!
          उन्हीं नज़रों में गिरता जा रहा हूँ!!
                 उसूलों का ज़रा पक्का रहा हूँ!
                  ज़माने को बहुत खलता रहा हूँ !" 

आज के जमाने में भी जब अनेक प्रकार की अशांति छाई हुई है सबको प्रेमरस में डुबो देने वाले लगे कवि और गोष्ठी के संयोजक गीतकार मधुरेश नारायण - 
          नज़रें बिछाये बैठे हैं हम, आस जगा जाओ..........
जिनके आने से,चारों दिशाओं में
महक उठा है उपवन-उपवन!
आहट पाते ही,रूप दिखाते ही,
चकाचौंध है धरती गगन.!!
      प्रीत भरे गीत गूँजे, सुर मिला जाओ.....
      जाओ कहीं दूर मगर  लौट के चले आओ!! "

गांधी जैसे युगपुरुष द्वारा बड़े जतन से जोड़े गए वतन में विध्वंश के ता-ता धिन्न को देख हिन्दी गजल को एक नयी अभिव्यक्ति देने वाले शायर घनश्याम का मन खिन्न हो गया है-
"हमारा मन सुबह से खिन्न क्यों है ?
   निगोड़ी धारणा भी  भिन्न क्यों है?
            अलाउद्दीन ! ये  क्या  हो  रहा है?
              मेरे आगे खड़ा  यह जिन्न क्यों है?
मेरे   घर   में  ढनकते  हैं   पतीले !
तुम्हारे  घर में ता-ता धिन्न क्यों है ?
             जिसे जोड़ा था गांधी ने जतन से!
             वो रिश्ता प्रेम का विच्छिन्न क्यों है ?
ज़रा "घनश्याम "से पूछो तो आखिर
   बुढ़ापे  में  वो  चक्कर घिन्न क्यों है ? "

विदित हो कि यह काव्य संध्या न सिर्फ प्रभु ईसा मसीह के परम त्याग दिवस बल्कि मधुरेश नारायण और विश्वनाथ प्रसाद वर्मा के जन्मदिनों का भी अवसर रहा।  आगत अतिथियों और कवियों ने उन्हें जन्म दिन की बधाई दी। गोष्ठी लता प्रासर के द्वारा कृतज्ञता और धन्यवाद ज्ञापन के साथ सम्पन हुई।
..............
आलेख - सिद्धेश्वर
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbejodindia@gmail.com




 













3 comments:

  1. शानदार आयोजन, बेहद सुंदर रिपोर्ट।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद महोदय.

      Delete
  2. सुन्दर और सार्थक आयोजन
    बेहतरीन रिपोर्टिंग

    ReplyDelete

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.