अनूठी शैली के यशस्वी कथाकार
"पतितों के देश में, कैदी की पत्नी, जंजीरें और दीवारें, गेहूं और गुलाब जैसी पुस्तकें जेल में लिखीं
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पूरे साहित्यिक आवेग के साथ महान हिंदी साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी की जयंती पटना के कदमकुआँ स्थित बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में 23.12.2019 को मनाई गई।
लघुकथा विधा कहानी विधा के निकट है, ऐसी धारणा है लोगों में। लेकिन सच तो यह है कि लघुकथा आकार- प्रकार, शब्द - शैली और अभिव्यक्ति के आधार पर भी, कहानी से बहुत अलग है। यह गद्य की एक स्वतंत्र विधा के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। प्रेमचंद, मंटो, जयशंकर प्रसाद, राजाराधिकारमण सिंह, और रामवृक्ष बेनीपुरी सरीखे कथाकारों ने भी कई छोटी- छोटी रचनाएं लिखी थी, जिसे लोग लघुकहानी के रुप में पहचानते थे।
यहां पर सवाल यह है कि स्वयं इन कथाकारों भी अपनी इन रचनाओं को लघुकथा का नाम दिया था क्या? यह एक विवादास्पद प्रश्न हो सकता है। किंतु बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक में, समकालीन कथाकारों ने लगातार विचार-विमर्श के बाद विधागत विधान बनाकर और सतत आंदोलन का रूप देकर जब इसका एक सैद्धांतिक और समीक्षात्मक स्वरूप बनाया (जिसका मैं भी साक्षी रहा हूं), तब एक स्वतंत्र विधा के रुप में 'लघुकथा' की पहचान बनी। तब कमलेश्वर, अवधनारायण मुद्गल, वाल्टर भेंगरा, तरुण सरीखे जागरूक संपादकों ने,सारिका, कथायात्रा और कृतसंकल्प जैसी मुख्य धारा की पत्रिकाओं का लघुकथा विशेषांक निकालकर लघुकथा विधा को एक दिशा देने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया था।
अब, जयंती के नाम पर लघुकथा पाठ करवाना तो एक अच्छी बात है। किंतु और अच्छी बात होगी, जब जयंती विशेष कथाकारों को लघुकथा के साथ जोड़कर, उनकी लघुकथाओं पर भी हम चर्चा करें।
अब जो लघुकथा लिखते ही नही, वे तो अब भी आठवें दशक की बात ही दुहराएंगें न कि लघुकथा हस्तलिखित रुप में एक पेज और टंकित रुप में आधे पृष्ठ का हो वही आदर्श लघुकथा है, जैसा कि मंचासीन कवि डॉ. शंकर प्रसाद ने आज के बेनीपुरी जयंती के अवसर पर आयोजित पठित लघुकथा पर टिप्पणी करते हुए कहा।
जबकि समारोह के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने इसे लघुकथा कार्यशाला जैसा स्वरूप बतलाते हुए कहा कि बहुत ही सावधानी के साथ किसी भी लेखक को लघुकथा लिखनी चाहिए। लघुकथा का विस्तार रचना को कमजोर कर देती है। आवश्यक हो तो लघुकथा लिखने के बाद आवश्यक संशोधन कर उसमें कांट- छांट भी करनी चाहिए।
उन्होंने रामवृक्ष बेनीपुरी की जयंती को नमन करते हुए कहा कि "बेनीपुरी की रचनात्मक छवि अद्भुत थी। उन्होंने अपनी लेखनी से सिद्ध किया कि लेखकीय अवदान में बिहार किसी से पीछे नहीं है। हिंदी साहित्य के वे प्रतिनिधि रचनाकार के रुप में परिणित होते रहे हैं। इसमें दो मत नहीं कि वे एक विशिष्ट शैलीकार थे।
उन्होंने बेनीपुरी के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि "बेनीपुरी जी अपने छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख हिस्सा बने। अपनी तप्त लेखनी का मुंह अंग्रेजों और शोषक समुदायों के विरुद्ध खोल दिया था।। वे अप्रतिम साहित्यकार थे और कई वर्षों तक बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भी अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।"
(वैसे प्रसंगवश यह बतला दूँ कि मेरा यह सौभाग्य रहा है कि उनके नाम से ही सही पूर्व मध्य रेल की सेवा करते हुए हमने राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्थित रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय" के पुस्तकाध्यक्ष के पद कर, लगभग दो दशक से अधिक काम किया और इस दौरान ही रामवृक्ष बेनीपुरी के पौत्र और बहू ने रामवृक्ष बेनीपुरी की कलात्मक तस्वीरें और उनकी दर्जनों दुर्लभ पुस्तकें हमें सौंपीं, जो आज भी इस रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय में सुरक्शित हैं। -सिद्धेश्वर)
लघुकथा पाठ के इस संगोष्ठी में मंचासीन लघुकथा लेखिका पूनम आनंद, कुमार अनुपम ने भी, कार्यक्रम को यादगार तो बनाया ही, इस समारोह को गरिमापूर्ण बनाने में समारोह के संयोजक योगेन्द्र मिश्र की भी अहम भूमिका रही।
समारोह के आरंभ में शुभचंद्र सिन्हा ने कहा कि " रामवृक्ष बेनीपुरी जब जब जेल से निकलते थे, उनके हाथों में , ढेर सारी पांडुलिपियाँ होती थीं। सतत सृजनशील रहते थे बेनीपुरी जी।"
डॉ. शंकर प्रसाद ने कहा कि बेनीपुरी जी की लेखनी का जादू पूरा हिंदुस्तान मानता रहा है। वे एक विशिष्ट शैलीकार थे।
वरिष्ठ साहित्यकार नंद मिश्र आदित्य ने अपने उद्गार में कहा कि "पतितों के देश में कैदी की पत्नी, जंजीरें और दीवारें, गेहूं और गुलाब जैसी बहुचर्चित पुस्तकों को उन्होंने अपनी जेल की कालकोठरी में ही लिखा।
छट्ठू ठाकुर ने कहा कि आंदोलनकारियों के बीच बेनीपुरी जी हमेशा उर्जा भरते रहें अपनी लेखनी के माध्यम से।.
आनंद किशोर मिश्र के विचार में रामवृक्ष बेनीपुरी अपनी आयू के तरुणाई काल से मृत्यु तक कलम के योद्धा बन डटे रहें।
डॉ. कुंदन कुमार के अनुसार बेनीपुरी जी अग्नि का पोषण करते रहें। क्रांति और विद्रोह की एक ज्वाला उनके हृदय में सदा धधकती रही।
डौली भदौरिया के विचार से रामवृक्ष बेनीपुरी जी स्वतंत्रता आंदोलन के अमर सिपाही के प्रेरणास्रोत रहें।
कवि त्रृतुराज ने विस्तार से उनकी रचनाओं की चर्चा करते हुए कहा कि "रामवृक्ष बेनीपुरी अपने काल के यशस्वी कथाशिल्पी थे। उनकी लेखनी का जादू पूरे देश को अपनी ओर आकर्षित किया है।"
लघुकथा संगोष्ठी में डॉ. सीमा रानी ने 'प्रतीक्षा', कुमार अनुपम ने "मैं पहले से ही खुश हूं", पूनम आनंद ने "वेरी सिंपल", सिद्धेश्वर ने "फोकट की पढाई'", योगेन्द्र मिश्र ने "खुले आकाश का पंछी", डॉ. शंकर प्रसाद ने "मैं शर्मिंदा हूं", कृष्ण रंजन सिंह ने ''ज्वार भाषा" शीर्षक लघुकथा का पाठ किया तो लता प्रासर ने "मर्म", श्रीकांत व्यास ने' "कोयला और पत्थर", डॉ. मनोज गोवर्धनपुरी ने "रानी मां'", नूतन सिंहा ने "मां - पुत्र", प्रेमलता सिंह ने "पगला बाबा", किरण सिंह ने "आदर्श बाबू", नंद आदित्य ने "छोटा आकार, नम्रता ने "मेरी मां", रेखा भारती ने "पेंशन'", डॉ. पुष्पा जमुआर ने 'जलन' शीर्षक लघुकथा का पाठ किया। साथ ही तरंजन भारती ने "अच्छा कौन', प्रभात कुमार धवन ने 'कारावास '. और राज किशोर वत्स ने "काने राजा का चित्र" शीर्षक लघुकथाएँ अपने- अपने निराले अंदाज में प्रस्तुत की जो एक यादगार लघुकथा की शाम बनकर हमारे जेहन में समा गई। लघुकथाओं पर ऐसी जीवंत संगोष्ठी की जरूरत पहले से अधिक है जो व्यस्त और इलैक्ट्रानिक युग का एक जरूरी हिस्सा बनकर आज भी आम आदमी को साहित्य से जोड़ने में कामयाब है।
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आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर, पूनम आनंद
रपट के लेखक का ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com
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