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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Thursday 19 December 2019

संवादपूर्ण रपट - "हाशिए पर खड़े लोग" तथा "नवोन्मेष" का लोकार्पण और कवि गोष्ठी पटना में 17.12.2019 को सम्पन्न

आज कविता ही मानव को बचा सकती है 

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"बेझिझक उड़ते रहो
 जब तक प्राण बाकी है ..."
सुषमा कुमारी उस पंछी का नाम है जिसके डैने पिंजरे को सजाने के लिए नहीं बल्कि विचारों के उन्मुक्त गगन में विचरण के लिए बने होते हैं। उनकी एक पुस्तक के नामकरण पर सवाल उठे और शैली पर भी बहस हुई किन्तु वे संभावना से  भरपूर कवयित्री हैं इससे इनकार नहीं है। किसी वक्ता को उनकी कविता में छंद और लय का अभाव दिखा तो कोई उनमें महाकाव्य के सिजनहार को देख रहे हैं।

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में कवयित्री डॉ. सुषमा कुमारी के काव्य संग्रह "हाशिए पर खड़े लोग" तथा "नवोन्मेष" का भव्य लोकार्पण समारोह सम्मेलन सभागार में सम्पन हुआ। मंचासीन साहित्यकारों में सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ, जिया लाल आर्य, मृत्युंजय मिश्र करूणेश, डॉ. शंकर प्रसाद, विजय प्रकाश, मेजर बलवीर सिंह और कवयित्री डॉ. सुषमा कुमारी सुशोभित थे।

पुस्तक के लोकार्पण के तुरंत बाद मंचासीन साहित्यकारों ने एक दूसरे को फूल माला और चादर प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित कर रहे थे। अब पुस्तक लोकार्पण में कवि सम्मेलन भी हो जाए तो ये बात कुछ कुछ समझ में आती है। किंतु आखिर हम सम्मान के क्या इतने भूखे हैं कि लोकार्पित पुस्तक के लेखक को सम्मानित करने  के  साथ साथ खुद एक दूसरे को सम्मानित करने से बचा नहीं पातें?

खैर, ये तमाम ताम- झाम के बाद जब लोकार्पित पुस्तक "हाशिए पर खड़े लोग" पर कुछ बोलने की बारी आई तो विद्वत लोग रचनाओं या कवयित्री की रचनात्मकता पर कुछ बोलने की बजाय सिर्फ शुभकामनाएं देते नजर आएं। वैसे इस अवसर पर अधिक आलोचना की गुंजाइश भी नहीं होतीं। किंतु एक-दो कविताएँ पढ़कर उनका हौसला बढ़ाने का अवसर तो होता ही है न?

हां, कुछ ऐसी बातें जरूर कही गई जो पुस्तक न सही किंतु कविता को जरूर रेखांकित करती रही। शिववंश पांडेय ने कहा कि - "कविताओं पर बोलना बहुत कठिन कार्य है। एक- दो चावल के दाने देखकर भात के पकने का आभास मिल जाता हो। उसी तरह इस पुस्तक की एक- दो कविताएँ पढ़कर उसकी ताजगी का आभास मिल जाता है।"

किंतु प्रायः ऐसा होता नहीं है शिववंश जी। क्योंकि कविता की पुस्तक में भात की तरह एक-सी उष्मा नहीं मिलती कविता को।

खैर, उन्होंने कविता के  संदर्भ में ये बातें सटीक कही कि- "कविता को पढ़कर हम कवि के विचार को जरूर समझ सकते हैं। कविता की अभिव्यक्ति के लिए जो साहित्यिक साधना और मापदंड होना चाहिए, लोकार्पित काव्य पुस्तक की कवयित्री सुषमा कुमारी के पास है।

लेकिन छंद और लय जरूरी है कविता के लिए जिसका अभाव दिख पड़ता है। लयात्मकता का अभाव है उनकी अधिकांश कविताओं में। 

जबकि विजय प्रकाश ने पुस्तक के शीर्षक की प्रशंसा करते हुए कहा कि - "सुषमा जी ने पुस्तक का शीर्षक सटीक दिया है। दरअसल कविता आज निचले तबके की आवाज होती जा रही है। पहले हम यंत्र के अधीन थे और आज मानव ही यंत्र है। संवेदनाएं मरती जा रही है आम लोगों में। सिर्फ और सिर्फ कवियों और कविताओं में ही संवेदना रह गई है। इसलिए कविता ही मानव को बचा सकती है।

 जिया लाल आर्य ने भी पुस्तक के शीर्षक की प्रशंसा करते हुए कहा कि - "शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि हम उस रचना को पढ़ने के लिए मजबूर हो जाएं। इसी में रचना और रचनाकार की सार्थकता है। मन और सोच को प्रभावित करने वाली रचना ही जीवंत और पठनीय होती है।"

मेजर बलवीर सिंह भसीन ने कहा कि "पहली पुस्तक का शीर्षक 'हाशिए पर खड़े लोग' तो समझने लायक है। किंतु दूसरी पुस्तक का नाम 'नवोन्मेष', इतना कठिन है कि मैं साहित्यकार होने के बावजूद ठीक से नहीं समझ सका।"  लेखिका का नाम सुषमा सरस है। अच्छा है। किंतु पुस्तक का नाम ऐसा क्यों कि पाठक के सिर से गुजर जाय? कि कविताएँ भी सिर के ऊपर.से गुजर जाती है। मुक्तछंद की अपेक्षा छंद वाली कविताएं पठनीय है।

संतान जन्म लेता है तो हम जश्न मनाते हैं। उसी प्रकार पुस्तकों के प्रकाशन पर भी लोकार्पण के रुप में हम जश्न मनाते रहे हैं।

विशिष्ट अतिथि कथाकार जियालाल आर्य ने कहा कि "संस्कृत, संस्कृति और सभ्यता को शब्द मिले हैं। "उन्होंने भावना में बहकर यहां तक कह दिया कि कवयित्री में महाकाव्य के सृजन की क्षमता दिखाई देती है।'

नृपेन्द्रनाथ गुप्त ने कहा कि "सुषमा कुमारी की इस पुस्तक को अभी हमने पढ़ा तो नहीं है किंतु पुस्तक के नाम से लगता है कि वे हाशिए के लोगों के प्रति संवेदनशील हैं। '

अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में अनिल सुलभ ने पुस्तक में प्रकाशित कविताओं के प्रति विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि -" डॉ. सुषमा कुमारी मंगलभाव की कवयित्री हैं। इनकी कविताएं पीड़ित मन के आंसू पोंछकर उनके दिल में एक नया उत्साह लाती है। हालांकि उन्होंने कवयित्री को सुझाव भी दिया कि अगर वे मुक्तछंद के अपेक्षा छंद में कविता लिखें तो और उत्तम होगा।"

कवि गोष्ठी का आरंभ राजकुमार प्रेमी के भक्ति गान से हुआ। तत्पश्चात वरिष्ठ शायर मृत्युंजय मिश्र 'करूणेश 'की गजलों में गजब की कशिश देखी गई -
"पांव चलते हुए डगमगाते रहें
जिंदगी में कई मोड़ आते रहें
जिनसे धोखा मिला दोष उनका भी क्या?
 यार तो यार थे , वे आजमाते रहें
कौन से लोग हैं प्यार की राह में
जो नफरत के कांटे बिछाते रहें
गीत ग़ज़लों को हमने न मरने दिया
आखरी सांस तक गुनगुनाते रहें
 पी चुके थे जो 'करुणेश' थे होश में
बिन पिये ही वे डगमगाते रहें।

डां शंकर प्रसाद  ने सस्वर गजल का पाठ किया -
"हर खार हमारा है, हर फूल हमारा है
हमने लहू देकर गुलशन को संवारा है
फिर इश्क की अज़मत पर इल्जाम न आए
दीवाने के होंठों पर नाम तुम्हारा है।

विजय प्रकाश ने तर्कसंगत बातें अपनी कविता में पेश की - 
"नहीं देता अर्ध्य, हे गुरुदेव 
तुम्हें क्यों करूं पूजा? "

 पुष्पा गुप्ता ने बेटी के पक्ष में कहा -
"बेटी तुम  पतंग होना / आकाश में उड़ना 
पर धुर से मत कटना
 कटना है / अस्तित्व खोना!!"

कल्याणी की कविता में प्रेरक बातें थीं जिओ और जीने दो -
"सुख देने वाला ही सुख पाता है 
हिंसक जीवन जीने वाले 
सुख की इच्छा न करना।"

मेजर बलवंत सिंह की कविता में दर्द होने का अहसास था -
"बड़े धोखे खाए हैं हमने अपनों से
कि अपने आप पर मुझे विश्वास नहीं!"

मेहता नागेन्द्र सिंह ने पर्यावरण संरक्षण पर कविता प्रस्तुत किया -
"कुदरत का हूं सेवक  /  फिर मुझे डर कैसा?
हौंसला भी है / हुनर भी है /  तो फिर डर कैसा?"

कवि सिद्धेश्वर ने कुछ मुक्तक की  प्रस्तुति दी -
" दूसरों के लिए यहां सोचता है कौन ?
   दिल का दरवाजा खोलता है कौन ?
    बंद हैं पड़ोस की सारी खिड़कियां 
  इंसानियत की नब्ज टटोलता है कौन? "

 कवि घनश्याम की भी शानदार गजल रही-
 "रंग में भंग होने लगा है 
 व्यर्थ हुड़दंग होने लगा है
नेह की एक मीठी छुअन से 
 संकुचित अंग होने लगा है।   

पुस्तक लोकार्पण की कवयित्री डां सुषमा कुमारी ने कुछ अपनी पसंद की कविताओं का पाठ कर  अपनी मौलिक प्रतिभा को एक अलग पहचान दी -
"मत डरो तुम गिरने से
   हौंसले का पंख लगाकर
  बेझिझक उड़ते रहो
   जब तक प्राण बाकी है 
... क्या तुम भूल चुके हो कि
   पंख मिले ही थे / उड़ने के लिए..!
                
इनके अतिरिक्त जिन कवियों की रचनाएं श्रोताओ को मनमुग्ध कर दिया उनमें प्रमुख थे - सर्वेश्री रवि घोष, सविता मिश्र माधवी,  पुष्पा जमुआर, कुमारी मेनका, सुनील दूबे, शालिनी पांडेय, प्रभात कुमार, धवन, बिंदेश्वर प्र. गुप्ता , नम्रता मिश्र, सुलक्ष्मी कुमारी, डॉ. अर्चना, विनय कु विष्णुपुरी, इंदु उपाध्याय, शकुंतला अरुण, श्रीकांत व्यास, पंकज प्रियतम, श्याम प्रभाकर। पूरे समारोह का सफल संचालन किया - कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने।

इस तरह के आयोजन से जहाँ रचनाकारों को नये पुस्तक के सृजन का हौसला बुलन्द होता है वहीं तमाम रचनाकारों को अपनी रचनाएँ सुनाने का एक अच्छा अवसर भी प्राप्त हो जाता है।  आज के समय में काव्य् के
श्रोता ढूँढना आसान काम नहीं रह गया है ऐसे आयोजन सजग श्रोताओं की मौजूदगी की आश्वस्ति भी है।
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आलेख - सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल - sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - सिद्धेश्वर / धनश्याम {साभार)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट - इस कार्यक्रम के साफ चित्रों को और प्रतिभागी की पंक्तियों को इस रपट में जोड़ने हेतु ऊपर दिये गए सम्पादक के ईमेल आईडी पर भेज सकते हैं।























      

2 comments:

  1. सुन्दर और विस्तृत रिपोर्टिंग

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद।

      Delete

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