हिंसा के विरोध में एक कवि
पूर्व मध्य रेल (पटना जंक्शन) में कार्यरत उप-मुख्य टिकट निरीक्षक सिद्धेश्वर प्रसाद गुप्ता सफलतापूर्वक नौकरी करते हुए सेवानिवृत्त हो गए। उनका विदाई समारोह पटना में रेलवे के कार्यालय में 28/09/2019 को हुआ। वे पिछले बीस वर्षों से राजेन्द्र नगर टर्मिनल स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति के सचिव एवं रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय के अध्यक्ष के पद पर भी अपना अभूतपूर्व योगदान देते हुए विचार गोष्ठी, कवि गोष्ठी, राजभाषा बैठक, पुस्तक लोकार्पण आदि गतिविधियों के द्वारा, राजभाषा हिन्दी से रेलकर्मियों को जोड़ने का उत्साहजनक काम किया। वे इन कार्यों के लिए रेल मंत्रालय से लेकर रेल महाप्रबंधक तक के कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हुए।
साहित्य जगत में 'सिद्धेश्वर' के नाम से साहित्य सृजन करनेवाले इस रेलकर्मी ने सर्वश्रेष्ठ साहित्य लेखन और सर्वश्रेष्ठ पुस्तक लेखन के लिए भी रेल मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा दो बार प्रथम पुरस्कार से सम्मानित होकर दानापुर रेल मंडल का नाम रौशन किया है। विदित हो कि रेल मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा इनके काव्य संग्रह "इतिहास झूठ बोलता है" को मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और उनकी कथा संग्रह "ढलता सूरज :ढलती शाम" को प्रेमचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रेल की पत्रिकाओं में भी सिद्धेश्वर के सैंकड़ों कविताएं, कहानियाँ लघुकथाएं, आलोचनात्मक आलेख, भेंटवार्ता तथा रेखाचित्र और पेंटिंग्स भी सम्मान पूर्वक प्रकाशित होते रहे हैं। रेल विभाग में इस तरह की कई प्रतिभाएं, सेवानिवृत्त होने के बाद भी, साहित्य साधना करते रहे हैं। सिद्धेश्वर भी इस दिशा में अग्रसर हैं।
(उपरोक्त जानकारियाँ श्री सिद्धेश्वर एवं उनकी पत्नी श्रीमती बीना गुप्ता द्वारा प्राप्त सूचनाओं के आधार पर है.)
लीजिए प्रस्तुत हैं कवि सिद्धेश्वर रचित कुछ कविताएँ-
1. तू नागन है मैं चंदन
मेरा साथ निभाना होगा
मंजिल तक पहुंचना होगा
मैं जब तन्हा हो जाऊंगा
तेरे साथ जमाना होगा
रूठ के घर से जाने वाले
एक दिन वापस आना होगा
अगर पड़ोसी जालिम है तो
खुद को तुम्हें बचाना होगा
विष का प्याला है सच्चाई
फिर भी मुझे पी जाना होगा
कीचड़ में खिलते हैं फूल
दुनिया को बतलाना होगा
ये धरती, आकाश बताए
मेरा कहां ठिकाना होगा
दुनिया से मत पूछो 'सिद्धेश'
क्या खोना क्या पाना होगा?
...
2. भूख से परेशां
वह
पहले
रोटियां छीन कर
खा लिया करता था!
जब
छीनने पर भी
नहीं मिली रोटी,
तब
'भाई' को खाया उसने
फिर
'बहन' को
फिर
'मां' को
फिर
'बाप' को
फिर
'पत्नी' को
फिर
'बच्चे' को
अंततः
और कोई न बचा
तब..?
खुद को खा गया, वह!
....
युद्ध :तीन क्षणिकाएं
(एक)
युद्ध!
वरदान भी है
अभिशाप भी है
युद्ध
सवाल है
युद्ध को तुम
अपनी लड़ाई का
आरंभिक हथियार बनाते हो
दरअसल है यह अंतिम हथियार.!
(दो)
दो देशों के युद्ध में
हमेशा
जीत होती है
किसी एक देश के
राजा की!
लेकिन
हमेशा हार होती है
हिंसा के विरोध में लड़ रहे
करोड़ों देश की जनता की.
(तीन)
युद्ध में
दो देश के
योद्धाओं के बीच
सिर्फ
अस्त्रों-शस्त्रों से
नहीं होती लडा़ई!
एक लडा़ई होती है
भूख से भी !
जिसके योद्धा होते हैं
युद्धरत सभी देशों की
लाखों में गरीब
और असहाय जनता!
...
प्रस्तुति - बीना गुप्ता
कविताएँ- सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
नोट - इस रपट की लेखिका श्रीमती बीना गुप्ता, सिद्धेश्वर प्रसाद गुप्ता की पत्नी हैं.
सर्वप्रथम सेवानिवृति की बधाई, अब आप साहित्य को अधिक समय दे सकेंगे । युद्ध आधारित तीनों क्षणिकाएँ अच्छी लगी । इस खूबसूरत रपट हेतु आदरणीया वीना जी को बधाई।
ReplyDeleteश्री सिधेश्वर एक लंबे काल खंड से पूर्ण समर्पित साहित्यसेवी हैं। इन्होंने कला संस्कृति और साहित्य के विभन्न पहलुओं को जिया है जिससे हम अक़्सर लाभान्वित होते रहे हैं। मैं इनके स्वस्थ्य और प्रसन्नचित्त जीवन की कामना करता हूँ ताकि ये पूर्व की भाँति लंबे समय तक साहित्य सेवा में लगे रहें।
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