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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday, 30 October 2019

हम कौन? / कवि - मनीश वर्मा

कविता

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नाटक "काली सलवार" के एक दृश्य में रास राज और अन्य कलाकार

हम कौन हैं?
हमारा वजूद क्या है?
हम आपकी सरपरस्ती मे ही तो पलते बढते हैं 
कभी  वैधानिक तरीकों से 
तो कभी अवैधानिक तरीकों से

पर हमारी सरपरस्ती बदस्तूर जारी रहती है
सनातन काल से 
 कभी परंपरा तो कभी धर्म के नाम पर 
कभी मंदिरों में तो कभी प्रासादों मे 
हमारा स्वरूप बदलता रहा है 
हमारा नाम बदलता रहा
पर हमारी प्रकृति कभी नही बदली

कभी जोर से तो कभी पैसों की ताकत से
कभी मजबूरी में तो कभी किन्हीं और कारणों से
हम हमेशा से रहे अभिशप्त 
धक्के दिए जाते रहने को

हम समाज के अनचाहे हिस्से हैं 
 ठीक उस बच्चे की तरह 
जो इस दुनिया मे आ गया हो 
 समाज के विपरीत नियमों की वजह से

हमारी नियति है यह!
 लोगों के दमित इच्छाओं की पूर्ति करते हैं
सामाजिक ताने-बाने मे संतुलन का नाम हैं हम!
सामाजिक संतुलन मे बतौर सेफ्टी वाल्व काम करते हैं हम!

इस झूठी दुनिया में
 झूठ ही सही, कुछ देर के लिए ही सही
व्यावसायिक तरीके से ही सही
 एक छद्म आवरण के अंदर अपने को समेटे हुए 
 कंधा मयस्सर कराते हैं अपना!
पर, क्या वजूद है समाज में हमारा!

वेश्याएं हैं हम! हमेशा परोसे जाने को तैयार!
समाज हमें घृणा की दृष्टि से देखता है। 
सामाजिक रूप से तिरस्कृत हैं हम सभी!
क्या समलैंगिक हैं हम? 
अरे! समलैंगिकों को भी हमारे यहां प्राप्त है अधिकार
 कुछ वैधानिक और कुछ सामाजिक भी
हम वेश्याएं कहाँ हैं? और क्यों?
यह जन्मजात तो नही?
वंशानुगत भी नही?
यक्ष प्रश्न?
क्या वन वे ट्राफिक है यह?
सोचिए!
.....
कवि - मनीश वर्मा 
कवि का ईमेल - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

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