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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday, 2 October 2019

अन्तरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस (1 अक्टूबर्) पर लेख्य मंजूषा की अंतराजाल साहित्य गोष्ठी

बैठ जाओ कदमों तले उनके / अबूझ जीवन का हर हल निकाल लो 
जिंदगी जो शेष है बस वही विशेष है

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फाइल चित्र

अन्तरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस सम्पूर्ण विश्व में अक्टूबर मास के १ दिनांक को मनाया जाता है । इस दिन पर वरिष्ठ नागरिको और वरिष्ठ सम्बन्धिओं का सम्मान किया जाता है। वरिष्ठों के हित के लिए चिन्तन भी होता है। विभा रानी श्रीवास्तव ने इस अवसर पर साहित्यकारों और अन्य लोगों से अपने-अपने अनुभव बाँटने का आमंत्रण दिया  अनेक सुधी लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति की जो नीचे प्रस्तुत है -

1. विश्वमोहन (दिल्ली) -
बुजुर्गों के पास क्षमा का हथियार, अहिंसा का अस्त्र. होता है. धन रहते भी धन न देनेवाला से महान  है वह धनहीन जो अपना सर्वस्व समर्पित करनेको उद्धत रहता है... यह बेबसी के बीज से बढ़े वृक्ष नहीं हैं. ये तो आत्मिक सबलता और आंतरिक सोंदर्य से अंकुरित कल्पतरु हैं, जिसकी छाया तले भटके पथिक को जीवन के शाश्वत सत्य के दर्शन होते हैं 

2. रंजना सिंह -
बुजुर्ग हमारे प्रहरी हैं
गाँव के हों या शहरी हैं

3. पूनम देवा -
बुजूर्गु  हमारे घने वट वृक्ष की छाया है
क्या हुआ, अगर जीर्ण क्षीण ,इनकी काया है
उपर वाले की माया है
अगर हम पर इनकी छाया है।

4. प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' -
बुजुर्ग घर के आन मान सम्मान हैं
बच्चों को उनसे मिलता सुंदर ज्ञान है

5. अभिलाषा सिंह -
खत्म होने के कगार पर खड़ी है जिंदगी
किसी खंडहर के द्वार पर पड़ी है जिंदगी
तुम्हारे ही प्यार ने दे रखी है वो ताकत
कि कई दफा मौत से लड़ी है जिंदगी
पास बैठो बुजुर्गों के कि बातें चंद कर सकें
इसी आस में आज तक धरी है जिंदगी।
लग जाना गले से फुर्सत निकाल कर कभी
यही सोचकर कि अब तो आखिरी है जिंदगी।

6. मधुरेश नारायण -
खुद बुजुर्ग हूँ, दूसरे बुजुर्गों के बारे में क्या कहूँ
अपनों को सब सुख मिले, दर्द मैं उनका सहूँ।

7. पूनम (कतरियार) -
सफेद बालों में संजोये दुनियादारी
जीवन-भर की कमाई वफादारी है
अशक्त -कमजोर हो या बीमारी
खुश दिखना इनकी लाचारी है
शब्द घुटते रहते हैं पोपले मुख के,
दिन कटते स्मरण में विगत सुख के।

8. राजेन्द्र पुरोहित (जोधपुर) -
बालों की सफेदी को सम्मान चाहिए
घर में बुजुर्गियत की पहचान चाहिए
दौलत की तबोताब की उनको नहीं है आस
बस वक़्त दीजिये, यही एहसान चाहिए।

9. मीरा प्रकाश -
बुजुर्गों के बिना घर अधूरा है
उनके पांव में स्वर्ग और धरा है
उनका प्यार मिले सभी को-
उनके ज्ञान बिना घर अंधेरा है।

10. मिनाक्षी कुमारी -
जिंदगी जो शेष है बस वही विशेष है
नहीं गुनाह बुढ़ापे का कुछ भी
एक अटल सत्य है आज यह भी।
इच्छा दफन कर जिंदगी भर तालमेल बैठाते रहे
शेष बचे जीवन के क्षण का
बाहें फैलाकर अब आप स्वागत करें।

11. नूतन सिन्हा -
बुजुर्ग हमारे लिये संचय किया हुआ धन से भी बढकर होते हैं उनके आगे धन दौलत भी फीका है धन तो खर्च हो जाता है परन्तु बुजुर्गों का शाया बरगद के पेड़ की तरह शीतल छाया देकर हरवक्त नया मार्गदर्शन देकर हमारी नई पहचान बनाते हैं। बोला जाये तो प्रकृति स्वरुप बुजुर्ग होते हैं जिनकी आवश्यकता हमारे शरीर के रक्त के समान होते हैं।

12. प्रेमलता सिंह -
बुजुर्ग के आशीर्वाद और प्यार से ही हमारा घर स्वर्ग समान बनता हैं।  जैसे पेड़ कितना भी हरा -भरा हो, इसकी जड़ काट दी जाए तो पेड़ सूख जाता हैं। वैसे ही हमारे बुजुर्ग हमारे परिवार की बुनियाद हैं।

13. प्रभास कुमार 'प्रभास' -
जितना माता-पिता बच्चों की सेवा करते हैं
वृद्धावस्था में वो वापस नहीं पा पाते हैं
जब आती है ऋण चुकाने की बारी
तब उनके बच्चे अपना हाथ खड़ा कर देते हैं।

14. संजय कु सिंह -
भागती जिंदगी से कुछ पल निकाल लो
आज नहीं तो कल निकाल लो
बैठ जाओ कदमों तले उनके
अबूझ जीवन का हर हल निकाल लो।

15. राजकांता राज -
दादा-दादी, माता -पिता हमारे बल है
बुजुर्ग हमारे आने वाला कल है
बुजुर्ग पारिवार की नींव है
बुजुर्ग घर की रौनक है

16. विष्णु सिंह -
काँपते हाथ
झुर्रियाँ
किसको पसंद आते हैं
कौन चाहता है, ऐसे हालात में रहना
पर क्या करें समय का तकाज़ा है
अनुभव लेते लेते, सबको आना पड़ता है इस उम्र के पड़ाव पर
सब इन्हें बुजुर्ग कहते हैं
हम इन्हें धरोहर कहते हैं, छत कहते हैं।
ज़रा सोचिएगा,
बिना छत के मकान होते हैं क्या?
आओ मिलकर प्रण लें
झूठा अहंकार त्याग दे आज
ले बुजुर्गों का आशीर्वाद
ले हम बुजुर्गों का आशीर्वाद।

17. संगीता गोविल -
सब कुछ है घर में सिर्फ एक बुजुर्ग की कमी है,
आज खुद पोंछे जो यादों से उनकी आई नमी है।
जब थे वो घर में, सुरक्षित हम आजाद परिंदे थे,
अब गृहाधिपति बने तो जिम्मेदारियों की बर्फ जमी है।

18. कंचन अपराजिता (चेन्नई) -
बरगद के पेड़ को देखे..
कितनी बैठकों के गवाह बने
हमारे बुजुर्ग है उस छाँव जैसे
आभार उनका भी हम करे
उनके चेहरे पर मुस्कान
हम से ही तो रहते है खिले
चलो अपने कुछ पलों को
सिर्फ उनके लिए जी ले।

 19. मधु खोवाला -
जिस घर में हो बुजुर्गो का सम्मान
आसमान भी करता है
उस घर को झुक कर प्रणाम।
.....

प्रस्तुति - विभा रानी श्रीवास्तव
प्रस्तोता का ईमेल - virani.shrivastava@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल -editorbejodindia@yahoo.com

फाइल चित्र



5 comments:

  1. लेख्य-मंजूषा ऋणी है और हम सदा आभारी हैं

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. मेरी पंक्ति 'बैठ जाओ कदमों तले उनके/अबूझ जीवन का हर हल निकाल लो 'को विशेष स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार ।

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  4. संजय कु सिंह

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  5. लेख्य मंजूषा के सदस्य होने पर मुझे गर्व है।

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