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राष्ट्रीय संस्था "हिंदी गौरव" के तत्वाधान में इसकी बिहार इकाई के संयोजक युवा कवि मनीष तिवारी व अनुराग कश्यप ठाकुर के संयोजन से आहूत इस कविगोष्ठी के कुशल संचालन का जिम्मा उठाया युवा कवि राहुलकांत पांडेय ने जिसमें युवा कवियों ने विशेष रूप से अपनी प्रस्तुतियों से बेजोड़ समां बाँधा। यह कहते हुए कि “युवा हाथों में हिंदी कविता का भविष्य न केवल सुरक्षित है अपितु उसे एक नया आयाम और ऊँचाई मिलेगी ऐसी आश्वस्ति भी दिखती है” एक सकारात्मक और उत्साहवर्धक टिप्पणी करके युवा कवियों की हौसला अफ़ज़ाई की गई।
इस काव्य गोष्ठी में पधारे वरिष्ठ कवियों और शायरों ने इस गोष्ठी में चार चांद लगा दिये।
पटना बिहार से घनश्याम ने दोहे पढ़े -
“हर भाषा का हम करें यथा योग्य सम्मान
लेकिन हिन्दी से बने भारत देश महान”
पटना निवासी सुप्रसिद्ध शायर समीर परिमल ने भी अपनी ग़ज़लों के अलावा ये दोहा पढ़ा :-
“धर्म का हेवी ब्रेकफास्ट और अफवाहों का लंच
संयम, निष्ठा, प्रेम पर भारी पड़ी प्रपंच।“
पटना में रहनेवाले ही वरिष्ठ शायर संजय कुमार कुंदन ने अपनी एक उम्दा नज़्म प्रस्तुत की -
“फ़रमान लेके घूमते सकाफत के ठेकेदार
हम पहनेंगे क्या, खाएंगे क्या लिखवाया हुआ है।“
गोड्डा से आये सुशील साहिल ने पड़ोसी देश के विरुद्ध एक कविता पढ़ी।
शायरी में प्रौढ़त्व प्राप्त कर चुके युवा कवि कुंदन आनंद ने इश्किया लहजे में एक बड़ा सच सामने रख दिया -
“फिरता है आवारा लड़का
इक लड़की का मारा लड़का
ख्वाबों से डरता है अब तो
ख्वाबों का हत्यारा लड़का।“
उनके बाद अनेक युवा कवि-कवयित्रियों ने अपने जोशीले और इश्किया मिज़ाज में शायरी और कविताओं के नमूने प्रस्तुत किये -
अनुराग कश्यप ठाकुर ने पढ़ा ने उम्र बढ़ने के साथ-साथ बिम्बों के अर्थ में हुए बदलाओं को उजागर किया-
“जो कभी चांद को मामा कहता था,
अब उसे माशूका कहने लगा है।
मेरे अंदर का वो छोटा बच्चा
अब बड़ा होने लगा है।“
मनीष तिवारी ने सरस घनाक्षरी छंद पढ़ कर अपना परिचय कुछ इस प्रकार दिया :-
मेरा प्यारा प्यारा गांव, कदंब की ठंडी छांव,
वहां का मुरारी हूं मैं, आप भान लीजिए।
कवि राहुल कांत पांडे ने ने अपनी माशूका को ग़ज़लों में बसने की बात की -
मुहब्बत के तिरे किस्से सुनाता हूँ मैं मंचो से
तू मेरी शायरी बनकर मेरी गजलों में रहती है।
कवि केशव कौशिक जैसे अंतर्दृष्टि रखनेवालों को माजरा समझने में देर नहीं लगती -
“ये मेरे दूर का रिश्तेदार हैं
ये झूठ तुम कितनो को समझाती हो?”
उत्कर्ष आनंद की ग़ज़ल पर तमाम लोग झूम उठे -
“यूं सज- धज के निकलो न घर से अकेले
कि लड़ते हैं कह सब हमारा हमारा”
मुकेश ओझा ने प्यार की नजाकत को सलीके से रखा -
“अपना हाल- ए -दिल बताऊँ तो बताऊँ कैसे
जो राज दिल में है वो छुपाऊँ तो छुपाऊँ कैसे
एक पल में तो नहीं मिली हैं ये ज़िंदगी की सौगात
फिर इस ज़िंदगी को भूलाऊँ तो भूलाऊँ कैसे।“
कवियत्री सिमरन ने अपना यथार्थवादी तेवर दिखाया -
“सुखी हुई नदी की एक घूँट हूं मैं
हां ये सच है कि एक झूठ हूं मैं”
इसके अलावा कवियत्री निधि राज, डॉ. प्रतिज्ञा, कवि विकास राज, आशुतोष, रंजन, अश्वनी सरकार एवं अन्य नवोदित कवि-कवयित्रियों ने अपने शानदार काव्य पाठ से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष सुनील कुमार ने अपनी दो ग़ज़लों के अलावा एक मस्त हास्य प्रतिगीत पढ़ा जिसे सुनते ही समस्त उपस्थित कवि श्रोता बरबस ठहाकों के बीच झूम उठे।
गीत के बोल कुछ यूँ थे -
“मिली पत्नी से फटकार / अरे रे बाबा ना बाबा
कहो कौन करेगा प्यार / अरे रे बाबा ना बाबा"
वैसे तो युवा कवि-कवयित्रियों ने भी खूब वाहवाही लूटी लेकिन सच यह है कि वरीय कवियों की गरिमामयी उपस्थिति एवं शानदार काव्य पाठ ने काव्य गोष्ठी को साहित्यिक सोपान के एक उच्च स्तर पर प्रतिष्ठापित कर दिया।
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रपट के लेखक - सुनील कुमार
छायाचित्र सौजन्य - हिन्दी गौरव
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
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