"स्वाधीन भावना को समर्पित थी दिनकर की कविताएँ"
मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग द्वारा आयोजित केदारनाथ मिश्र प्रभात एवं रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर, उनकी कविताओं का राष्ट्रीय पक्ष विषय पर व्याख्यान और कवि गोष्ठी का आयोजन बिहार राज्य अभिलेख भवन सभागार, पटना में सम्पन्न हुआ।
प्रमोद कुमार ने संचालन के क्रम में कहा कि 'प्रभात' की रचनाएं सतत जीवन की उजियाली को दार्शनिकता से रंजित कर यथार्थ बोध के जीवित स्पंदनों से भर देती है -
"बनो कर्म के लिए कल्पना मेघदीप की मणिमाला!
बनो कर्म के लिए प्रेरणा, बनो चेतना की ज्वाला!"
युवा साहित्यकार ऋषिकेश मिश्रा ने कहा कि - "केदारनाथ जी ने कैकयी जैसी उपेक्षित पात्र को सकारात्मक दृष्टि दिया है।" जबकि कुमार गौरव का कहना था कि-"दिनकर ने अपना पूरा जीवन साहित्य में तपाया है। प्रकृतिवादी और मानवतावादी कवि के रूप में पहचाने जाते हैं दिनकर। दिनकर जी अपने समय के सूर्य थे। दिनकर ऐसे इन्द्रधनुष हैं, जिनपर अंगारे भी जलते हैं।"
रेल स्टेशन प्रबंधक निलेश कुमार ने कहा कि-"न मैं वक्ता हूं, न विद्वान हूं। लेकिन फिर भी कहना चाहूंगा कि एक ही विचार दुहराने के अपेक्षा, इन बातों पर विमर्श किया जाए कि दिनकर ही राष्ट्रकवि क्यों? दूसरा क्यों नहीं? दिनकर बचपन से ही विद्रोही थे। केवल एक दिन नहीं सालों भर दिनकर को सम्मान दीजिए। हमने ऐसा ही प्रयास किया है, अपने स्टेशन पटना जं. पर। पटना जंक्शन के बाहर दीवार पर दिनकर की छवि और उनकी काव्य पंक्तियां देखी जा सकती है।"
डॉ. हरज़ान ने कहा कि - "नवयुग की गाथा कह गए दिनकर जी। जनजागरण का जयघोष कर गए दिनकर। वीर रस से ओतप्रोत और देश के स्वाधीन भावना को समर्पित थी दिनकर की कविताएँ।"
विजय कुमार शांडिल्य ने कहा कि -"प्रभात जी हिन्दी काव्य के विभूति थे। आग अंबर में लगाना जानते थे वे।" दूसरी तरफ, शिववंश पांडेय ने कहा कि- "सरकारी भय से बचने के लिए वे छायावाद की ओर मुड़ गए थे और देश की आजादी के बाद प्रभात जी फिर राष्ट्रीय भावना की ओर मुड़ गए।"
राम उपदेश सिंह 'विदेह' ने पहले अपने ही कृतित्वों पर चर्चा की। कुछ देर बाद अपने विषय पर लौटते हुए उन्होंने कहा - "दिनकर की कविताओं को पढ़ते हुए मेरे भीतर कवितापन आया। सच यह भी है कि साहित्य तो राजनीति को शुद्ध नहीं कर पाया, लेकिन राजनीति ने साहित्य को दुषित जरूर कर दिया है।
दिनकर का साहित्य इतना विस्तृत है कि उन पर त्वरित चर्चा संभव नहीं। दिनकर सरकार के विरोध में भी कविताएं लिखा लेकिन अपने नाम से नहीं बल्कि अपने छद्म नाम 'अमिताभ' नाम से। राष्ट्रीय चेतना की एक सशक्त कविता "कलम आज उनकी जय बोल!" सर्वाधिक लोकप्रिय रही है।
दिनकर की काव्य पंक्तियां और अपनी काव्य पंक्तियां प्रस्तुत करते हुए 'विदेह' जी यह प्रमाणित करना चाह रहे थे कि, दिनकर, हरिवंशराय बच्चन और मेरी कविताओं में कितनी समानता है!!
समारोह के बीच में, केदारनाथ प्रभात के पुत्र और पुत्रवधू, मोहन और नम्रता को साल ओढ़ा कर सम्मानित भी किया गया। उन्होंने कहा कि दिनकर और मेरे ससुर प्रभात जी, एक ही मुहल्ले में रहते थे। दोनों को एक साथ नमन किया जाना सुखद अनुभव है। "
कवि गोष्ठी के पूर्व अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में सत्यनारायण जी ने कहा कि - "दिनकर जी अपने समय के अर्धनारीश्वर कवि थे। उन्होंने कुरुक्षेत्र से उर्वशी तक की काव्य रचना किया। दिनकर आशा और विश्वास के कवि थे। उनकी काव्य दृष्टि में कलात्मकता सहज रूप से दिख पड़ता है। अपने समकालीनों से अलग थे दिनकर। बावजूद युवा कवियों ने उनकी कविताओं से प्रेरणा लेते रहें हैं।
चेतना के शिखर पर नंगे पांव चलना क्या होता है, यह प्रभात की कविताओं में देखा जा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में, बिहार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में, रामधारी सिंह दिनकर की रचनाशीलता की अहम भूमिका रही है। हरिवंशराय बच्चन ने आत्मकथा चार खंडों में लिखा है, वह उपन्यास से भी रोचक है। अविस्मरणीय है। उसी तरह "शुद्ध कविता की खोज" जैसा लेख लिखा है दिनकर ने, वह भी चमत्कृत करने जैसा हो। उनका गद्ध लेखन भी कहीं से कमतर नहीं है।
आमंत्रित कवियों में , कविता का आरंभ कवयित्री मनोरमा कुमारी से हुआ -
"मैंने सबको नाच नचाया
मैं कैसा हूं / मैं पैसा हूं!"
कुमारी सरस्वती की गजल भी खूब रही -
"मन का मिलना- मिलाना मुझे आ गया!
दिल किसी से लगाना मुझे आ गया
कैसी हालत मेरी, इश्क में हो गई
गम में भी मुस्कुराना मुझे आ गया!"
पत्रकार हृदयनारायण झा की कविता थी -
"भारत में आकर फिर से लोगों को जगाओ बापू!! "
कवयित्री रानी श्रीवास्तव की कविता, पौराणिक कथाओं पर आधारित थी-
"अनंत काल से चली आ रही तुम्हारे पुरुषत्व की चुनौती नहीं देती मैं!
और पांडवों की एकता का प्रतीक बनाई गई द्रोपदी!"
इस साहित्यिक समारोह में मधुरेश नारायण, विजय प्रकाश, घनश्याम, सिद्धेश्वर, लताप्रासर, ओम प्रकाश, सविता मिश्र माधवी, कमला प्रसाद, डॉ. अर्चना त्रिपाठी, पूनम श्रेयसी आदि साहित्यकारों की भी उपस्थिति रही।
समारोह के अंत में, लाल बाबू पासवान ने सभी साहित्यकारों और श्रोताओं की भीड के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए धन्यवाद दिया।
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आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
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