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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 23 September 2019

चाणक्य स्कूल आफ पालिटिकल राईट्स एण्ड रिसर्च के द्वारा "हिन्दी साहित्य और राजनीति" विषय पर परिचर्चा और गोष्ठी दि.22.9.2019 को पटना में सम्पन्न

सहित्य का राजनीति से प्रभावित होना एक खतरनाक संकेत

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हिन्दी पखवाड़ा के तहत, चाणक्य स्कूल आफ पालिटिकल राईट्स एण्ड रिसर्च (पटना) के तत्वावधान में "हिन्दी साहित्य और राजनीति" विषय पर परिचर्चा, कवि गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन किया। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन पटना के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नालंदा खुला विश्वविद्यालय के कुलपति रासबिहारी प्रसाद सहित पत्रकारिता, कला आदि के क्षेत्र में पांच गणमान्य व्यक्तियों - राम उपदेश सिंह विदेह, नृपेन्द्रनाथ गुप्त, कृष्ण प्रसाद सिंह केसरी, बांके बिहारी सिंह और कुमार जितेन्द्र ज्योति को सम्मानित किया गया।

हिंदी साहित्य और राजनीति विषयक संगोष्ठी में विभिन्न साहित्यकारों ने अपने - अपने उद्गार व्यक्त किए। आखिर में अनेक कवियों ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

"हिंदी के विरोध करने वाले देश की  राष्ट्रीयता की बात नहीं करते, सिर्फ अपनी राजनीति करते हैं! समारोह में स्वागत भाषण करते हुए संस्था के अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह ने इन बातों को  कहा। 

मुख्य अतिथि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति रास बिहारी प्रसाद ने कहा कि "हमारे एक पूर्व प्रधानमंत्री ने हिंदी को विश्व स्तर पर पहुंचाकर, इसे ग्लोबल का रुप दिया। अंग्रेजी के बजाय स्थानीय भाषा को अंगीकार करना चाहिए। हम खुद हिंदी को उपेक्षित कर रहे हैं। आखिर वह कौन सा कारण है कि हम विश्वविद्यालय के स्तर पर भी, हिंदी की बजाए अंग्रेजी भाषा का चुनाव करते हैं? इन बातों पर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है।"

बिहार राज्य सूचना आयुक्त  ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य रोजगार के लिए है। और रोजगार में अंग्रेजी जानने वालों को ही प्राथमिकता मिलती है। ऐसे में  छात्र  हिंदी के प्रति लगाव क्यों रखेगा? 

विशिष्ट अतिथि  सिद्धेश्वर ने कहा कि राजनीति और साहित्य पर अलग-अलग विचार किया जाना चाहिए। जिनके कंधे पर देश बदलने की जिम्मेदारी दी गई है वे खुद ही नहीं बदल रहे हैं तो देश कैसे बदलेगा? यह भी साहित्य का विषय है। 

उन्होंने कहा कि  हमारे नेता, सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भष्टाचार के आकंठ में डूबे हुए हैं। ऐसे में स्वच्छ प्रशासन की बात बेमानी है। जब राजनीति अपने रास्ते से भटकती है, साहित्य उसे संभाल लेता है। । किंतु राजनीति आज इतनी दलदल में फंस गई है कि लगता है साहित्य ही राजनीति के दलदल में फंसता जा रहा है। सहित्य ही  राजनीति से प्रभावित होने लगी है जो खतरनाक समय का संकेत है। 

इसके बाद एक कवि गोष्ठी भी चली जिसमें कवियों ने अपनी-अपनी रचनाएँ सुनाईं-

कवयित्री आराधना प्रसाद ने सस्वर एक गजल का पाठ किया -
"मौत  को भी मार आई जिंदगी
जिंदगी भर डगमगाई जिंदगी!"

आचार्य विजय गुंजन ने दो नवगीत का पाठ किया -
 "जज्बातों को समझना अगर होता आसान और 
 हिंदी की छोटी बहन, उर्दू है कमसिन 
 "अपने ही घर में है देखो, रानी पड़ी उदास रे 
ऊंचा पद, ऊंचा सिंहासन और मिले सम्मान, उसे खास रे!" 

कवि प्रणय कुमार सिन्हा ने मां के  संदर्भ में काव्य पाठ किया -
"मां मृत्यु तुम्हें कैसे आई? 
मां, तुम तो अब तक मुझमें जीवित हो!" 

पत्रकार कवि प्रभात कुमार धवन की कविता थी -
"अपनी पीड़ाओं के बीच अकेली रहती हैं मां
जो मां सबकी चिंता. करती है 
उनके करीब आने से क्यो भागते हैं लोग? 
रिश्तों की लम्बाई क्यों छोटी पड़ गई, मां? 
    
सुनील की गजल थी -
"मैंने एक सपना देखा है यारों
 आफताब को भी डूबते देखा है यारों! "
   
चंद्र प्रकाश महतो ने कविता सुनाई-
"मां !कौन तुम्हारे कोख की लाज रखे समझ नहीं आता 
अपना दुःख दर्द किससे कहें  
सभी तो नजर आते हैं बेगाने " 
      
 अर्जुन कुमार गुप्ता ने कहा - 
"तू मेरी मुरली की धून 
 मैं तेरा संगीत प्रिय 
             
 संचालक महोदय ने कहा कि -
"बचने को मेरी कविता से 
वो नदी पार कर जाते हैं।" 
       
अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में  श्याम जी सहाय  ने कहा कि -
"कहीं उर्दू की मारी है 
कहीं अंग्रेजी से हारी है! हिन्दी आज भी बेचारी है!"

सच यही है कि शुद्ध राजनीति के कारण ही  हिन्दी आज भी बेचारी बनी हुई है। 
      
समारोह में मात्र एक महिला कवयित्री आई थीं-आराधना प्रसाद। वे भी अपनी कविता पढ़ी और चली गई। ऐसा दुर्भाग्य है  आज की कविता और कवि गोष्ठी की। समारोह का संचालन अशोक प्रियदर्शी ने किया। 
......

आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com                  













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