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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday 14 October 2018

*संस्मरण* - चेन्नै में रह रहे हिन्दी, मैथिली और बज्जिका के कवि ईश्वर करुण के साथ / कैलाश झा किंकर (खगडिया)

मित्र के आचरण जब भी घायल करे / शत्रु के तीखे तीरों को तुम चूम लो



ईश्वर करुण का मूल नाम ईश्वर चन्द्र झा है,जिनका जन्म 14 जनवरी 19570 में मोहीउद्दीन नगर,समस्तीपुर में हुआ था। एम00 (अर्थशास्त्र), एम0बी00 और एल0 आई0आई0 डिग्री प्राप्त ईश्वर करुण की मातृभाषा बज्जिका-मैथिली है।

तूती! चुप मत रहना (लघु लेख संग्रह), पंक्तियों में सिमट गया मन (काव्य संकलन), एक और दृष्टि (सम्वेदना से जुड़े समाचारों पर त्वरित और ललित विश्लेषण), ईश्वर करुण के लोक प्रिय गीत एवम् चुप नहीं है ईश्वर (काव्य संग्रह)  ईश्वर करुण की कृतियाँ है। विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ से विद्यावाचस्पति की उपाधि से विभूषित कवि ईश्वर करुण वर्षों से कवि सम्मेलनों में जाते रहे हैं और अपनी मन-मोहक प्रस्तुतियों से श्रोताओं पर अमिट छाप भी छोड़ते रहे हैं।

हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया, बिहार का दो दिवसीय पंचम महाधिवेशन "दिनकर स्मृति पर्व-2005 "एस0 एन0 उच्च विद्यालय सोनवर्षा, रहीमपुर में मनाया जाना था। परिषद् के महासचिव के रूप में मैं आयोजन की तैयारी से लेकर अतिथियों के स्वागत सत्कार में मशगूल था। उस सत्र के अध्यक्ष कृष्णदेव चौधरी ,उस गाँव के निवासी थे।कार्यक्रम का पहला दिन था। ग्यारह बजे झंडोत्तोलन होना था। फिर 12:00 बजे उद्घाटन सत्र, 02:00 बजे रामधारी सिंह दिनकर के व्यक्तित्व एवम् कृतित्व पर परिचर्चा,शाम सात बजे कविसम्मेलन सत्र,दूसरे दिन 11:00 बजे लोकार्पण समारोह,2:00 बजे सम्मान समारोह और शाम 7:00 बजे सांस्कृतिक आयोजन निर्धारित था।

लगभग 12:00 बजे आदरणीय ईश्वर करुण अपनी पत्नी और बच्चे के साथ हवाई जहाज से कोलकाता होते हुए आयोजन स्थल पर पहुँच गये। मुझे पहचानने में दिक्कत इसलिए नहीं हुई कि तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति मऊ-शेरपुर,समस्तीपुर के वार्षिक आयोजनों में और साहित्यकार संसद समस्तीपुर के वार्षिक आयोजनों में उन्हें पहले ही कई-कई बार सुन चुका था। आयोजन स्थल के ठीक बगल में एक साहित्यप्रेमी ई0 रौशन चौधरी जी के घर ठहरे थे। चूँकि ईश्वर करुण परिवार सहित थे इसलिए ऐसी व्यवस्था जरूरी थी। शेष अतिथि गण एस0एन0 उच्च विद्यालय सोनवर्षा में ही ठहरे थे। खासकर कवि सम्मेलन में ईश्वर करुण ने अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति दी थी। उनकी इन पंक्तियों के दीवाने सभी हो गये थे। जिला एवम् सत्र न्यायाधीश ओम प्रकाश पांडेय ने कागज पर इन पंक्तियों को लिखवा कर रख भी लिया था-

जब निराशा के क्षण तुमको घायल करे
आड़ी-तिरछी लकीरों को तुम चूम लो
मित्र के आचरण जब भी घायल करे
शत्रु के तीखे तीरों को तुम चूम लो
जब स्वयम् का स्वयं से ही हो सामना
पूर्ण हो जब न तेरी मनोकामना
शब्द करने लगें अर्थ की याचना
मन की परतों में पहुँचे न जब प्रार्थना
धूर्त वातावरण जब भी घायल करे
अक्षरों के फकीरों को तुम चूम लो

जिला एवम् सत्र न्यायाधीश श्री ओम प्रकाश पांडेय समेत खगड़िया के सभी न्यायाधीश सपरिवार इनको सुनने आए थे। एस0एन0 उच्च विद्यालय सोनवर्षा का प्रांगण हजारों हजार दर्शकों से भरा हुआ था। खगड़िया शहर से सटे होने के कारण खगड़िया के सभी साहित्य प्रेमियों और साहित्य सेवियों में आयोजन का हिस्सा बनने की होड़ थी। आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र,सम्पादक अग्रसर,मुंगेर ,इन्दु मिश्रा ,छन्दराज, अनिरूद्ध सिन्हा, विजेता मुदगलपुरी, भगवान प्रलय, रामावतार राही समेत सैकड़ों कवियों/साहित्यकारों के मध्य ईश्वर करुण मणिमाला की तरह दमक रहे थे। इनकी लाजवाब प्रस्तुति से श्रोतागण मंत्रमुग्ध थे। दो दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में तमिलनाडु हिन्दी अकादमी के महासचिव ईश्वर करुण पूरी तरह छा चुके थे।"पंक्तियों में सिमट गया मन "(काव्य संकलन) के लिए ईश्वर करुण जी को स्वयम् ओम प्रकाश पाण्डेय,जिला एवम् सत्र न्यायाधीश ,खगड़िया ने जितेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान से सम्मानित किया था।

आयोजन के बाद परिषद् कार्यालय, क्रांतिभवन, चित्रगुप्त नगर,खगड़िया के बगलगीर पेशकार बिनोद कुमार सिन्हा,जो ईश्वर करुण जी के भी मित्र हैं,जबर्दस्ती इन्हें दो दिनों तक रोक लिए। फिर तो मजा आ गया। एकदम पारिवारिक माहौल में हमसब घुलमिल गये। कभी बिनोद कुमार सिन्हा जी के यहाँ तो कभी क्रांति भवन में इनका कविता-पाठ होता था। मुहल्ले भर के लोग सुनने को जमा हो जाते थे।बड़ा अच्छा लगता था। ईश्वर करुण जी का अपनापन छलक रहा था और हमसब अतिथि देवो भव के भाव से भरे हुए थे

इसके बाद भी कई कवि सम्मेलनों में ईश्वर करुण जी को सुनने का अवसर मिला। खगड़िया, मोहीउद्दीन नगर,मऊ-शेरपुर, समस्तीपुर, मुंगेर,दिल्ली, चेन्नै आदि कविसम्मेलनों में ईश्वर करुण जी के साथ कविता-पाठ करने का मौका मिला है। हर आयोजन में ईश्वर करुण जी की रहीमपुर वाली तस्वीर और प्रस्तुति ही मेरी आँखों में स्थाई रूप से छाई रहती है। कहा गया है-फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन। वाकई इनकी लाजवाब प्रस्तुति से मैं लगातार अभिभूत होता रहा हूँ।

02 मार्च 2012 को श्री अग्रवाल सभा चेन्नै के द्वारा कविसम्मेलन का आयोजन श्री अग्रवाल सभा कला परिषद् चेन्नै ने किया था। लखनऊ से प्रसिद्ध गीतकार डा0 सुरेश,बस्ती से रचना तिवारी और खगड़िया से कैलाश झा किंकर ,चेन्नै से ईश्वर करुण, रमेश गुप्त नीरद आदि आमंत्रित थे। संयोजन संचालन ईश्वर करुण ही कर रहे थे। दक्षिण भारत में हिन्दी कविता के इतने दीवाने ! वाह! मजा आ गया। मंच के साथ-साथ एक हजार लोगों के बैठने लायक पूरे हाल को  फूलों और तोरण द्वारों से सजाया गया था। श्रोता दीर्घा बिल्कुल भरी हुई ।सब की प्रस्तुति बड़ी अच्छी रही थी। श्रोतागण अंत तक बने रहे। मधु धवन जी मौजूद थीं। हाँ मैंने भी चार-पाँच कविताएँ / ग़ज़ल पढ़ी थीं। एक-दो शेर संचालन कर रहे ईश्वर करुण जी की ओर मैंने उछाला था होली के माहौल में हँसी मजाक के तौर पर-

चंद सिक्के थमा के लूटेगा
बात मीठी सुना के लूटेगा
है भरोसा नहीं मुझे उस पर
मुझको अपना बना के लूटेगा ।

जिसे ईश्वर करुण ने गंभीरता से ले लिया था। बाद में इस शेर की चर्चा भी उन्होंने की थी। उनके क्षणिक क्रोध को मैंने शान्त करते हुए कहा था-हँसने-हँसाने के लिए ऐसे शेर अपनों पर ही उछाले जाते हैं ताकि श्रोता तक बात आसानी से पहुँच जाए और श्रोता गुदगुदाने लगें। खैर--। नौंक-झोंक से प्रेम बढ़ता ही है।

दूसरे दिन फिर ईश्वर करुण जी की अध्यक्षता और संचालन में 'अनुभूति' संस्था के द्वारा कवि गोष्ठी आयोजित हुई थी जिसमें रतन डालमियां जी ने सभी कवियों को पाँच-पाँच हजार रूपये का पुरस्कार और प्रतीक चिह्न अपनी ओर से दिया था। चेन्नई की यह साहित्यिक यात्रा अविस्मरणीय है। सप्ताह भर हमलोगों को अग्रवाल सभा के वातानुकूलित विश्रामालय में रखा गया था। आयोजक की ओर से एक कार ड्राइवर सहित मुहैया कराई गयी थी। रोज कहीं न कहीं घूमने जाते थे। कभी महाबलीपुरम का नाम सुना था, उन दिनों देखा भी। समुद्री तट पर लहरों की अठखेलियाँ देख देखकर कितना मंत्रमुग्ध हुआ था मैं। रोज शाम में ईश्वर करुण जी मिलने आते थे और कहीं न कहीं मुझे भी घुमाने ले जाते थे। इसी क्रम में एक शाम मधुधवन जी के घर ले गये थे। मधु धवन जी के सुन्दर व्यवहार, स्वागत और सत्कार को मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ।
विद्यापति समारोह -2017 टाउन हाल,समस्तीपुर में मनाया गया था। राज्यपाल श्री केशरी नाथ त्रिपाठी, विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी, पूर्व मंत्री मदन मोहन झा, जिला परिषद् अध्यक्ष प्रेम लता, जिलाधिकारी प्रणव कुमार आदि की मौजूदगी में डा0 बुद्धि नाथ मिश्र, ईश्वर करुण, चाँद मुसाफिर, कैलाश झा किंकर भीमनाथ चौधरी समेत लगभग दो दर्जन कवियों का पाठ और सम्मान हुआ था।इस आयोजन में भी ईश्वर करुण जी की मैथिली भाषा में प्रस्तुति श्लाघ्य थी-

मधु -मखान आ मंत्र महादेव
सबहक सुन्दर मेल छै
मिथिला के महिमा के आगू
सौंसे दुनिया फेल छै
अष्टावक्र, जनक के' दर्शन
बाजू केकरा धरती सँ
सीता सन बेटी जनमल छथि
मिथिले टा के' परती सँ
याज्ञवल्क्य के' ऋचा कंठ मे
"साते भवतु" खेल छै।

13 जनवरी 2018 की शुरूआत में भी विश्व पुस्तकमेला ,नई दिल्ली में कविता कोश के बैनर तले आयोजित लोकरंग कविसम्मेलन में ईश्वर करुण जी बज्जिका के कवि और मैं अंगिका के कवि के रूप में कविता पाठ करने के लिए पहुँचे थे। लोकरंग कविसम्मेलन की शुरुआत ईश्वर करुण जी की कविता से ही हुई थी। गजब की प्रस्तुति थी इनकी। इन्होंने तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य कई -कई कविताओं का पाठ किया था-

रक्खो' हाथ करेजा पर
किरिया खा पहलेजा पर
सत्ते मन से' बोलो' तोरा
केतना प्यार करच्छियो ।

इनके बाद ही मंच संचालिका मृदुला शुक्ला ने सभी कवियों से एक-एक कविता ही पाठ करने का निवेदन किया।ताकि,समय सीमा के अन्तर्गत सभी कवियों को अवसर मिल सके। इस लोकरंग कविसम्मेलन में हरियाणवी भाषा से सुनीता काम्बोज,पंजाबी भाषा से कर्मजीत कम्मो,बुंदेली भाषा से संजीव वर्मा सलिल,अंगिका भाषा से कैलाश झा किंकर, बज्जिका भाषा से ईश्वर करुण, ब्रज भाषा से उर्मिला माधव, भोजपुरी भाषा से राजेश कुमार माँझी, मैथिली भाषा से निवेदिता मिश्रा ,राजस्थानी भाषा से राजूराम बिजारणियां और हिन्दी भाषा से राहुल शिवाय मंचस्थ थे। उसके बाद ईश्वर करुण साहब चेन्नै लौट गये और हमलोग दीक्षित दनकौरी जी के ग़ज़ल-कुम्भ में शामिल होने के लिए रुक गये थे।

19-20 मई 2018 को हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया, बिहार के सोलहवें महाधिवेशन" हरिवंश राय बच्चन स्मृति पर्व -2018 का आयोजन श्यामलाल ट्रस्ट भवन खगड़िया में हुआ था।जिसके उद्घाटन कर्ता थे बिहार अंगिका अकादमी ,पटना के अध्यक्ष डा0 लखनलाल सिंह आरोही। इस वर्ष का सर्वोच्च " स्वर्ण सम्मान " के लिए ईश्वर करुण जी की किताब "चुप नहीं है ईश्वर " चयनसमिति के द्वारा चुनी गयी थी। इस समय ईश्वर करुण चेन्नै से खगड़िया पधारे थे और हरिवंश राय बच्चन स्मृति पर्व-2018 में भी चार चाँद लगाए थे। 19 मई को उद्घाटन सत्र, परिचर्चा सत्र और कवि सम्मेलन सत्र रखा गया था जबकि 20 मई 2018 को कवयित्री सम्मेलन सत्र, अभिनय सत्र, सम्मान सत्र और साँस्कृतिक कार्यक्रम का सत्र निर्धारित था। सभी सत्रों के अध्यक्ष, मंच संचालक और अतिथि गण अलग-अलग निर्धारित थे। ईश्वर करुण सम्मान सत्र के मुख्य अतिथि थे। इस बार ईश्वर करुण जी अकेले खगड़िया आए थे। न पत्नी न बच्चे लाए थे। वजह जो भी हो ।खैर –।

सभी सत्र अपने निर्धारित समय से सम्पन्न हो रहे थे। पहले दिन के कविसम्मेलन में ईश्वर करुण, डा0 संजय पंकज,दीनानाथ सुमित्र, हीरा प्रसाद हरेन्द्र, बाबा बैद्यनाथ, राहुल शिवाय, अश्विनी कुमार आलोक,राजेन्द्र राज, बिनोद कुमार हँसौड़ा, कैलाश झा किंकर समेत लगभग छ: दर्जन कवियों का कविता पाठ हुआ था।यहाँ भी कवियों के मध्य अपनी खास पहचान रखने वाले ईश्वर करुण की प्रस्तुति को दर्शकों और श्रोताओं ने खास बना दिया था। इनका कंठ -स्वर अद्भुत है। आरोह-अवरोह का ऐसा सुन्दर तारतम्य कि श्रोता मंत्र -मुग्ध हुए बिना रह ही नहीं सकता। शब्दों का सही उच्चारण, अद्भुत बिम्बों का प्रयोग,यति, गति, ताल ,लय जब दुरुस्त हों तो कवि कवि-सम्मेलन का लाड़ला हो ही जाता है। इस मायने में ईश्वर करुण बेजोड़ कवि हैं। उन्होंने गाया था-

थोड़ा खोने के लिए थोड़ा पाने के लिए
गीत लिखता हूँ जग को सुनाने के लिए
मुझसे आती है पढ़ने रती मेनका
मेरे हिस्से में है ऊर्वशी की अदा
भाव देता नहीं मैं कभी इन्द्र को
मेरी कुटिया पे अलकापुरी है फिदा
आबोदाने के लिए आशियाने के लिए
गीत लिखता हूँ जग सुनाने के लिए ।

संवेदनशील इतने कि खगड़िया के इस महाधिवेशन में साहित्यकारों को स्टेशन से आयोजन स्थल पर पहुँचाने बाली ई-रिक्शा चालक बसंती से भी घुलमिल कर उसकी संघर्षपूर्ण- गाथा को फुर्सत से सुनते रहे थे।

सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि ईश्वर करुण अपने कर कमलों से चयनित साहित्यकारों को रजत पत्रादि से सम्मानित / पुरुस्कृत धैर्यपूर्वक करते रहे। और,सबसे अन्त में सर्वोच्च स्वर्ण सम्मान से हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया के द्वारा सम्मानित हुए। स्वर्ण स्मृति सम्मान से अब तक फजल इमाम मल्लिक, डा0 मृदुला झा, शिवनन्दन सलिल, अनिरुद्ध सिन्हा, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, गुरेश मोहन घोष सरल, डा0 तेज नारायण कुशवाहा, भगवान प्रलय, डा0 श्यामानन्द सरस्वती और ईश्वर करुण सम्मानित/पुरुस्कृत हो चुके हैं।

बिहार से लगभग 28 वर्ष पहले ईश्वरकरुण ने तमिलनाडु का रुख किया था। आवास, आजीविका और साहित्य का विस्तृत फलक इन्होंने गैरहिन्दी क्षेत्र तमिलनाडु में विकसित किया। तमिलनाडु में हिन्दी अकादमी के आप संस्थापक महासचिव हुए। राष्ट्रीय हिन्दी सेवी संघ चेन्नै के प्रथम अध्यक्ष हुए। बिहार एसोसिएशन चेन्नै के सचिव के रूप में भी आपकी सेवा श्लाघ्य है। अनेक राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में सहभागिता निभाई।दर्जनों पुरुस्कारों/सम्मानों के हकदार हुए। आपने चमकता सितारा,तमिलनाडु दूत,दक्षिण प्रकाश आदि का सम्पादन भी किया है। साउथ चक्र और मंदाकिनी के अतिथि सम्पादक भी आप रहे। अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं को आपने अपना सम्पादन सहयोग भी दिया है। जिसमें, उन्मुक्त, सूर-सौरभ, कागज, मलयज आदि शामिल हैं। आकाशवाणी चेन्नै और दरभंगा केन्द्र से आपकी रचनाएँ लगातार प्रसारित हुईं हैं।


हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया बिहार की ओर से "ईश्वर करुण अभिनन्दन ग्रंथ " के लिए ईश्वर करुण जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। सम्पादक ऋषभदेव शर्मा जी के प्रति हार्दिक आभार कि साहित्य का इतना बड़ा काम हो रहा है।

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आलेख- कैलाश झा किंकर
मोबाइल-9430042712
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
इस आलेख के लेखक महासचिव, हिन्दी भाषा साहित्य परिषद् खगड़िया (बिहार) हैं



  

 



   






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