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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday, 28 January 2018

'सामयिक परिवेश' पत्रिका के नवम्बर अंक का लोकार्पण समारोह पटना में 27.1.2018 को सम्पन्न

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बड़े साहित्यकारों का जमावड़ा रहा लघु पत्रिका के अंक लोकार्पण में 

पटना, बिहार से निकलनेवाली लघु पत्रिका 'सामयिक परिवेश' के नवम्बर 2018 अंक का लोकार्पण हुआ अभिलेख भवन, पटना में 27 जनवरी  2018 को. लोकार्पण करनेवालों में प्रसिद्ध साहित्यकारों का एक समूह था जिसमें शिवनारायण, कासिम खुरशीद, संजय कुमार कुंदन, विश्वनाथ वर्मा, सिद्धेश्वर प्रसाद, और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ प्रधान संपादक ममता मेहरोत्रा और संपादक समीर परिमल भी शामिल थे. लोकार्पण के बाद कुछ वक्ताओं ने पत्रिका के नए अंक पर अपने विचार प्रकट किये. 

सबसे पहले गुड्डू कुमार सिंह ने बताया कि उन्होंने इस पत्रिका को पूरा पढ़ लिया. एक एक रचना की उन्होंने विस्तारपूर्वक चर्चा की. 'वापसी' कहानी के बारे में कहा कि इसका प्लाट थोड़ा थोडा उषा प्रियंवदा की इसी शीर्षक कहानी से मिलती जुलता है. 

शिवनारायण ने लघु पत्रिकाओं के महत्व पर प्रकाश डाला और स्वतन्त्रता आन्दोलन काल के दो ऐसे पत्रिकाओं की चर्चा की जिनके शिवचंद्र शर्मा जैसे संपादकों ने अपनी स्थापना, दृष्टिकोण, आरती, बिजली जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से त्रिलोचन और सुभद्रा कुमारी चौहान को गुमनामी से निकालकर अति प्रसिद्ध साहित्यकार में परिणत कर दिया. उन्होंने यह भी कहा  कि लोकार्पित अंक वाली पत्रिका भविष्य में अपने नाम के अनुरूप सामयिक परिवेश को और भी ज्यादा अभिव्यक्त करेगी,ऐसी आशा है. प्रतिरोध के दर्द को व्यक्त करने की जरूरत पर भी बल दिया गया.

 संजय कुमार कुंदन ने पत्रिका के साहित्यिक कलेवर की तारीफ की और बताया कि पत्रिका के इस अंक में कविताओं पर जोर नजर आता है जो समीर परिमल जैसे क्षमतावान ग़ज़लगो के सम्पादकत्व में स्वाभाविक है.

कार्यक्रम का सञ्चालन, पत्रिका के सम्पादक समीर परिमल कर रहे थे जिन्होंने अपने विचार भी प्रकट किये और कहा कि पत्रिका को चलाने में इतनी कठिनाई है कि बताई नहीं जा सकती. सबसे बड़ी मुश्किल होती है कि प्राप्त होनेवाली रचनाओं का स्तर जो अक्सर बहुत कम होता है जिसमें व्याकरण की जम कर अवहेला की गई होती है. उनको पूरा सुधारने में काफी श्रम लगता है. उन्होंने यह भी कहा कि पत्रिका के सञ्चालन में कहीं से कोई पैसा नहीं लिया जाता है.

"मैं तो गज़ल सुनाके अकेला रह गया
सब अपने अपने चाहनेवालों में खो गए"
उपर्युक्त पंक्तियों के साथ कासिम खुरशीद ने कहा कि बाजार के माहौल में संवेदनशीलता की तलाश बड़ी कठिन हो जाती है. उन्होंने सम्पादक को अन्य अनुभवी साहित्यकारों से भी सम्पादन में सहयोग लेने की अपील की.साथ ही रचनाओं की स्तरीयता के सम्बंध में सार्थक टिप्पणियों पर ध्यान देने का सुझाव दिया.

सभी वक्ताओं के विचार के बाद कार्यक्रम के संचालक ने कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा.  इस तरह से बिहार में साहित्य की गतिविधियों को बल प्रदान करते हुए यह कार्यक्रम समाप्त हुआ. कार्यक्रम में ई.गणेश सिंह बागी, हेमन्त दास 'हिम,' वसुंधरा पाण्डेय, अक्स समस्तीपुरी, पूनम आनंद, नसीम अख्तर,  प्रीती जैन, सुनील कुमार आदि अनेक सक्रिय रचनाकर्मी भी उपस्थित थे.  
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र- हेमन्त 'हिम'
ईमेल- hemanteas_2001@yahoo.com                                                    

































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