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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday 16 January 2018

अक्स पटना द्वारा बादल सरकार रचित 'तीसवीं शातब्दी' का पटना में 10.01.2018 को सफल मंचन / आलेख- राजन कुमार सिंह

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परमाणु युद्ध की विभीषिका का दारुण चित्रण

स्थानीय कालिदास रंगालय में अक्स, पटना ने संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार के सौजन्य से बादल सरकार की कहानी  का मंचन अहमद जमाल के निर्देशन में किया। इस नाटक बादल सरकार 'तीसरी शताब्दी' का हिन्दी  अनुवाद रामगोपाल  बजाज ने किया है। कहानी में शरत एक ऐसा व्यक्ति है जो जापान पर हुए विध्वंस पर रिसर्च कर रहा है। उसकी पत्नी वाणी को अपने पति की ऐसी हालत पर चिंता होती है । शरत अपने रिसर्च को लेकर खुद को बीसवीं शताब्दी का कसूरवार समझने लगता है। इसी क्रम में उसका मित्र साधन विदेश से लौटकर आता है। शरद उसे अपने रिसर्च का हिस्सा बनाते हुए उस विध्वंस की चर्चा करता है। साक्ष्य के रूप में कुछ काल्पनिक गवाहियां भी करवाता है,जिसे सुनकर साधन अवाक रह जाता है। कहता है क्यों पड़े हुए हो इस पचड़े में, ऊपरवाले का काम है युद्ध शुरू करना या बंद करना। 

तकरीबन मानसिक रूप से विक्षिप्त शरत खुद को बीसवीं शताब्दी का कसूरवार मानते हुए अपने ही शताब्दी के लोगों से अपील करता है, जो गलतियां हमने की है उसे आज फिर से न दोहराएं, ताकि बीसवीं शताब्दी हमें अपने कटघरे में खड़ा न कर सके। युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मनुष्य द्वारा बनाए गए परमाणु बम और उनका इस्तेमाल मनुष्य पर ही? इस संसार में एटॉमिक रेस का प्रचलन और इन सबके बीच पिसती इंसानी जिंदगी। युद्ध से सिर्फ अपने अहंकार जीते जा सकते हैं, मगर उसके परिणाम स्वरुप लाखों इंसानों की जिंदगियों के साथ खेलना कहां तक उचित है? ऐसे ही सवाल यह कहानी हमारे बीच छोड़ जाती है।

इस नाटक का नायक यही आग्रह करता है कि जो गलती हमारी शताब्दी कर चुकी है उसे आज न दोहराई जाए। मंच पर अभिनय कर रहे सत्यजीत केसरी ने अपने चरित्र को बहुत ही संजीदगी से जिया। पत्नी और मिसेज इथर्ली की महत्वपूर्ण भूमिका के साथ यूरेका किम न्याय करती दिखीं। वहीं दोस्त अंशुमन के साथ अन्य गवाहों में अमित कुमार, रानू बाबू,सुधीर कमल इस गंभीर नाटक की कथावस्तु के साथ इस कड़ाके की ठंढ में दर्शकों को अंत तक बाँधने में कामयाब रहे। मंच परे कलाकारों में प्रकाश परिकल्पना-राजन कुमार सिंह,रूप सज्जा-आदिल रशीद, वेशभूषा-मोहम्मद सद्दन, ध्वनि संचालन- शशांक शेखर, फोटोग्राफी- राहुल कुमार एवं मंच संचालन विशाल तिवारी ने किया।
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आलेख- राजन कुमार सिंह
ईमेल- rksingh21987@gmail.com
छायाचित्र- हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी दे सकते हैं- hemantdas_2001@yahoo.com
 





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